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श. ११ : उ. ११ : सू. १५५-१५८
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भगवई
नामकरणं वा परंगामणं वा पचंकामणं नामकरणं वा पर्यङ्गनं वा पदचंक्रामणं वा वा पजे-मामणं वा पिंडवद्धणं वा प्रजेमापनं वा पिंडवर्द्धनं वा प्रजल्पावनं वा पजपावणं वा कण्णवेहणं वा संवच्छर- कर्णवेधनं वा संवत्सर- प्रतिलेखनं वा पडिलेहणं वा चोलोयणगं वा उवणयणं चूलापनयनं वा उपनयनं वा, अन्यानि वा वा, अण्णाणि य बहूणि गब्भा-धाण- बहूनि गर्भाधान-जन्मादिकानि कौतुकानि जम्मणमादियाई कोउयाई करेंति॥ कुर्वन्ति ।
भूमि पर रेंगना, पैरों से चलना, भोजन प्रारंभ करना, ग्रास को बढ़ाना, संभाषण सिखाना, कर्ण वेधन, संवत्सर प्रतिलेखन (वर्षगांठ-मनाना) चूड़ा धारण करना, उपनयन संस्कार (कलादि ग्रहण) और अन्य अनेक गर्भाधान, जन्म महोत्सव आदि कौतुक किए।
१५६. तए णं तं महब्बलं कुमारं ततः तं महाबलं कुमारं अम्बापितरौ १५६. माता-पिता ने महाबल कुमार को
अम्मापियरो सातिरेगट्ठवासगं जाणित्ता सातिरेकाष्टवर्षकं ज्ञात्वा शोभने तिथिसोभणंसि तिहि-करण-नक्खत्त- करण-नक्षत्र-मुहुर्ते कलाचार्यस्य उपनयतः, तिथि, करण, नक्षत्र और मूहूर्त में मुहत्तंसि कलायरियस्स उवणेति, एवं एवं यथा दृढप्रतिज्ञः यावत् अलंभोगसमर्थः कलाचार्य के पास भेजा। इस प्रकार जहा दढप्पइण्णे जाव अलंभोगसमत्थे जातः चापि अभवत्।
दृढप्रतिज्ञ की भांति वक्तव्यता यावत् भोग जाए याविहोत्था॥
का उपभोग करने में समर्थ हुआ।
१५७. तए णं तं महब्बलं कुमारं ततः तं महाबलं कुमारं उन्मुक्त- बालभावं १५७. महाबल कुमार बाल्यावस्था को पार उम्मुक्कबालभावं जाव अलंभोग- यावत् अलंभोगसमर्थं विज्ञाय अम्बापितरौ कर यावत् भोग के उपभोग में समर्थ है. यह समत्थं विजाणित्ता अम्मापियरो अट्ठ अष्ट प्रासादावतंसकान् कारयतः-अभ्युद्गत- जानकर माता-पिता ने आठ प्रासादपासायवडेंसए कारेंति-अब्भुग्णय- उच्छित-प्रहसितान् इव वर्णकः यथा अवतंसक बनवाए-अत्यंत ऊंचे, हंसते हुए मूसिय-पहसिए इव वण्णओ जहा राजप्रश्नीये यावत् प्रतिरूपान्। तेषां श्वेतप्रभा पटल की भांति श्वेत वेदिकारायप्पसेणइज्जे जाव पडिवे। तेसिं णं प्रासादा-वतंसकानां बहमध्यदेशभागे, अत्र संयुक्त-रायपसेणइय की भांति वक्तव्यता पासायवडेंसगाणं बहुमज्झ-देसभागे, च महान्त-मेकं भवनं कारयतः-अनेक- यावत् प्रतिरूप थे। उन आठ प्रासादएत्थणं महेगं भवणं कारेंति- स्तम्भशत-सन्निविष्टं वर्णकः यथा अवतंसक के बह मध्य-भाग में एक महान अणेगखंभसयसंनिविट्ठ वण्णओ जहा राजप्रश्नीये प्रेक्षागृहमण्डपे यावत् भवन बनवाया-अनेक सैकड़ों स्तंभों पर रायप्पसेणइज्जे पेच्छाघरमंडवंसि जाव प्रतिरूपान्।
अवस्थित था, रायपसेणइय की भांति पडिरूवे॥
वर्णक-प्रेक्षाघर मंडप यावत् प्रतिरूप था।
१५८. तए णं तं महब्बलं कुमारं ततः तं महाबलं कुमारं अम्बापितरौ अन्यदा १५८. उस महाबल कुमार ने किसी समय
अम्मापियरो अण्णया कयाइ सोभ- कदाचित् शोभने तिथि-करण-दिवस- शोभन तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र और गंसि तिहि-करण-दिवस-नक्खत्त- नक्षत्र-मूहूर्ते स्नातं कृतबलिकर्माण मुहूर्त में स्नान किया. बलिकर्म किया, मुहत्तंसि पहायं कयबलिकम्मं कय- कृतकौतुक-मंगल-प्रायश्चित्तं सर्वालंकार- कौतुक, मंगल और प्रायश्चित्त किया, सर्व कोउय-मंगल-पायच्छित्तं सव्वा- विभूषितं प्रम्रक्षणक-स्नान-गीत-वादित्र- अलंकारों से विभूषित हआ। सौभाग्यवती लंकारविभूसियं पमक्खणग-हाण- प्रसाधन-अष्टांगतिलक-कंकण-अविध- स्त्रियों ने अभ्यंगन, स्नान, गीत. वादित गीय-वाइय-पसाहण-अटुंगतिलग- ववधूपनीतं मंगलसुजम्पितैः च वरकौतुक- आदि से प्रसाधन तथा आठ अंगों पर कंकण-अविहवबहुउवणीयं मंगल- मंगलोप-चारकृतशान्तिकर्म, सदृशीनां तिलक किए. कंकण के रूप में लाल डोरे सुजंपिएहि य वरकोउय-मंगलोवयार- सदृग्त्वचानां सदृखतानां सदृग्लावण्य- को हाथ में बांधा. दधि अक्षत आदि मंगल कयसंतिकम्मं सरि-सियाणं सरित्तयाणं रूप-यौवनगुणोपपेतानां विनीतानां एवं मंगल गीत आशीर्वाद के रूप में गाए, सरिव्वयाणं सरिसलावण्ण-रूव- कृतकौतुक- मंगलप्रायश्चित्तानां सदृग्भ्यः प्रवर कौतुक एवं मंगल-उपचार के रूप में जोव्वणगुणोव-वेयाणं विणीयाणं कय- राजकुलेभ्यः आनीतानाम् अष्टानां शांति कर्म आदि उपनय किए। माता पिता कोउय-मंगलपायच्छित्ताणं सरिसएहिं राजवरकन्यकानाम् एकदिवसेन पाणिम् ने एक दिन समान जोड़ी वाली. समान रायकुलेहितो आणिल्लियाणं अट्ठण्हं अग्राह्यताम्।
त्वचा वाली, समान वय वाली, समान रायवरकन्नाणं एगदिवसेणं पाणिं
लावण्य, रूप, यौवन गुणों से उपेत, गिण्हाविंसु॥
विनीत, कौतुक, मंगल एवं प्रायश्चिन की
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