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श.११: उ.११: सू. १४९-१५२
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भगवई
उत्सव करो। उत्सव कर मेरी आज्ञा मुझे प्रत्यर्पित करो।
१५०. तए णं ते कोडुबियपुरिसा बलेणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठा जाव तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति॥
ततः कौटुम्बिकपुरुषाः बलेन राज्ञा एवम् १५०. वे कौटुम्बिक पुरुष बल राजा के इस उक्ताः सन्तः हृष्टतुष्टाः यावत् ताम् प्रकार कहने पर हृष्ट-तुष्ट हो गए यावत् बल आज्ञप्तिका प्रत्यर्पयन्ति।
राजा की आज्ञा बल राजा को प्रत्यर्पित
की।
१५१. तए णं से बले राया जेणेव ततः सः बलः राजा यत्रैव अट्टनशाला तत्रैव १५१. वह बल राजा जहां व्यायामशाला थी,
अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उपागच्छति, उपागम्य तत् चैव यावत् वहां आया, वहां आकर पूर्ववत् यावत् उवागच्छित्ता तं चेव जाव मज्जण- मज्जनगृहात् प्रतिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य स्नानघर से प्रतिनिष्क्रमण किया। घराओ पडिनिक्खमइ, पडि- उच्छुल्काम उत्कराम् उत्कृष्टाम् अदेयाम् प्रतिनिष्क्रमण कर राजा बल ने निर्देश निक्खमित्ता उस्सुक्कं उक्करं उक्किट्ठ। अमेयाम् अभटप्रवेशाम् अदण्डकुदण्डिमाम् दिया-दस दिवस के लिए कुल मर्यादा के अदेज्जं अमेज्जं अभडप्पवेसं अदंड- अधार्याम् गणिकावरनाटकीयकलिताम् अनुरूप पुत्र जन्म महोत्सव मनाया कोदंडिमं अधरिमं गणियावरनाड- अनेकतालाचरानुचरिताम् अनुद्धूयमृदंगाम् जाए-प्रजा से शुल्क और भूमि का कर्षण इज्जकलियं अणेगतालाचराणुचरियं । अम्लानमाल्यदामं प्रमुदितप्रकीडिताम् न करें, क्रय-विक्रय का निषेध करने के अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदाम । सपुर-जनजानपदं दशदिवसे स्थितिपतितां कारण देने और मापने की प्रणाली स्थगित पमुइयपक्कीलियं सपुरजणजाणवयं करोति।
हो गई है। सुभट प्रजा के घर में प्रवेश न दसदिवसे ठिइवडियं करेति॥
करें। राज दण्ड से प्राप्त द्रव्य और कुदंड-अपराधी आदि से प्राप्त दंड द्रव्य न लें। ऋण धारण करने वालों को ऋण मुक्त करें। गणिका आदि के द्वारा प्रवर नाटक किए जाएं, वहां अनेक ताल बजाने वालों का अनुचरण होता रहे, नगर में सतत मृदंग बजते रहें, अम्लान पुष्प मालाएं (तोरणद्वारों आदि पर) बांधी जाएं। इस प्रकार प्रमुदित और खुशियों से झूमते हुए नागरिक और जनपद वासी पुत्र जन्म उत्सव में सहभागी बनें।
भाष्य
१ सूत्र ११९-१३० शब्द विमर्श
• पसत्थ दोहला-प्रशस्त मनोरथ।। •संपुणा दोहला-अभिलषित प्रयोजन की पूर्ति। • सम्माणिय दोहला-प्राप्त और अभिलषित अर्थ का उपयोग।
• अविमाणिय दोहला-वह मनोरथ जो लेश मात्र भी अपूर्ण नहीं रहा।
• वोच्छिण्ण दोहला-दोहद में उत्पन्न इच्छा की पूर्ति।
• विणीय दोहला-दोहद का पूर्ण होना। • जहामालियं-धारण किए हुए। • चारग सोहणं-बंदी जनों की मुक्ति।
• अदंड कोदंडिम-दण्ड-राजदंड से प्राप्त हुआ, कुदण्ड-अपराधी आदि से प्राप्त दंड द्रव्य न लेना।
अधरिम-ऋण धारण करने वालों को करण मुक्त करना। • पमुइय पक्कीलिय-प्रमुदित और खुशियों से झूमते हुए। • दुगुल्ल-वृक्ष-छाल से निष्पन्न वस्त्र युगल।
१५२. तए णं से बले राया दसा-हियाए ततः सः बलः राजा दशाहिकायां १५२. कुल मर्यादा के अनुरूप चल रहे ठिइवडियाए वट्टमाणीए सइए य स्थितिपतितायां वर्तमानायां शतान् च दसाह्निक महोत्सव में बल राजा बल ने साहस्सिए य सयसाह-स्सिए य जाए य साहसिकान् च शतसाहस्त्रिकान् च यागान सैकडों, हजारों, लाखों द्रव्यों से याग कार्य दाए य भाए य दलमाणे य दवावेमाणेच दायान् च भागान् च ददन् दापयन्, कराए।
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