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श.११ : उ.११ : सू. १४४-१४७
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भगवई
सरिसीए गईए जेणेव सए भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवाग-च्छित्ता सयं भवणमणुपविट्ठा।
तत्रैव उपागच्छति, उपागम्य स्वकं भवनमनुप्रविष्टा।
अत्वरित, अचपल, असंभ्रांत, अविलंबित राजहंसिनी जैसी गति के द्वारा जहां अपना भवन था, वहां आई। वहां आकर अपने भवन में अनुप्रवेश किया।
१४५. तए णं सा पभावती देवी बहाया ततः सा प्रभावती देवी स्नाता कृतबलिकर्मा १४५. प्रभावती देवी ने स्नान किया, बलि कयबलिकम्मा जाव सव्वा-लंकार- यावत् सर्वालंकारविभूषिता तं गर्भं नाति- कर्म किया यावत् शरीर को सर्व अलंकार विभूसिया तं गभं नाति-सीतेहिं शीतैः नात्युष्णैः नातितिक्तैः नातिकटुकैः से विभूषित किया। वह उस गर्भ के लिए न नातिउण्हेहिं नातितित्तेहिं नातिकडुएहिं नातिकषायैः नात्याम्लैः नातिमधुरैः ऋतु- अति शीत, न अति उष्ण, न अति तिक्त. नातिकसाएहिं नातिअंबिलेहिं नाति- भजमानसुखैः भोजनाच्छादन-गंध-माल्यैः । न अति कटुक. न अति कषैला, न अति महुरेहिं उउभय-माणसुहेहिं भोयण- यत् तस्य गर्भस्य हितं मितं पथ्यं गर्भ-पोषणं खट्टा, न अति मधुर, प्रत्येक ऋतु में च्छायण-गंध-मल्लेहिं जं तस्स तत् देशे च काले च आहारमाहरन्ती सुखकर भोजन, आच्छादन और गंध, गब्भस्स हियं मितं पत्थं गब्भपोसणं तं विविक्तमृदुकैः शयनासनैः प्रतिरिक्त- माल्य का सेवन करती। जो आहार हित, देसे य काले य आहारमाहारेमाणी शुभायां मनोनुकूलायां विहारभूम्यां प्रशस्त- मित, पथ्य और गर्भ का पोषण करने वाला विवित्तमउएहिं सयणासणेहिं पइ. दोहदा सम्पूर्णदोहदा सम्मानितदोहदा था उस देश और काल में वही आहार रिक्कसुहाए मणाणुकुलाए विहार- अविमानित-दोहदा व्युच्छिन्नदोहदा करती। दोष रहित कोमल शय्या पर भूमीए पसत्थदोहला संपुण्णदोहला विनीतदोहदा व्यपगतरोग-शोक-मोह-भय- सोती। एकांत सुखकर मनोनुकूल बिहारसम्माणियदोहला अविमाणिय-दोहला परित्रासात् गर्भ सुखेन परिवहन्ति। भूमि में रहती। इस प्रकार अपने दोहद को वोच्छिण्णदोहला विणीय-दोहला
प्रशस्त किया, अपने दोहद को संपूर्ण ववगयरोग-सोग-मोह-भय-परित्तासा
किया, अपने दोहद का सम्मान किया, तं गब्भं सुहंसुहेणं परिवहति॥
अपने दोहद का लेश मात्र मनोरथ भी अधूरा नहीं छोड़ा, दोहद में उत्पन्न इच्छाओं को पूरा किया, दोहद पूर्ण किया। उसने रोग, शोक, मोह, भय और परित्रास से मुक्त होकर उस गर्भ का सुखपूर्वक वहन किया।
१४६. तए णं सा पभावती देवी नवण्हं ततः सा प्रभावती देवी नवानां मासानां १४६. प्रभावती देवी ने बहु प्रतिपूर्ण नौ मास मासाण बहुपडिपुण्णां अट्ठमाण य बहुप्रतिपूर्णानाम् अर्द्राष्टमानां च और साढे सात रात दिन के व्यतिक्रांत राइंदियाणं वीइक्कं-ताणं सुकुमाल- रात्रिंदिवानां
व्यतिक्रान्तानां होने पर सुकुमाल हाथ पैर वाले. अहीन पाणिपायं अहीण-पडिपुण्णपंचिंदिय- सुकुमालपाणिपादम् अहीन- पंचेन्द्रिय शरीर, लक्षण व्यंजन गुणों से सरीरं
लक्खण-वंजणगुणोववेयं प्रतिपूर्णपञ्चेन्द्रियशरीरं लक्षण-व्यंजन- युक्त, मान, उन्मान और प्रमाण से माणुम्माणप्पमाण-पडिपुण्ण-सुजाय- गुणोपपेतं मानोन्मान-प्रमाण-प्रतिपूर्ण- प्रतिपूर्ण, सुजात, सर्वांग-सुन्दर, चंद्रमा के सव्वंगसुंदरंगं ससि-सोमाकारं कंतं सुजात-सर्वांगसुन्दरांगं शशिसौम्याकारं समान सौम्य आकार वाले, कांत, पियदंसणं सुरूवं दारयं पयाया। कान्तं प्रियदर्शनं सुरूपं दारकं प्रजाता। प्रियदर्शन और सुरूप पुत्र को जन्म दिया।
१४७. तए णं तीसे पभावतीए देवीए ततः तस्याः प्रभावत्याः देव्याः अंग- १४७. प्रभावती देवी ने पुत्र को जन्म दिया
अंगपडियारियाओ पभावतिं देविं पसूयं प्रतिचारिकाः प्रभावती देवी प्रसूता ज्ञात्वा है-यह जानकर प्रभावती देवी की अंगजाणेत्ता जेणेव बले राया तेणेव यत्रैव बलः राजा तत्रैव उपागच्छन्ति, प्रतिचारिका जहां राजा बल था, वहां उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल- उपागम्य करतलपरिगृहीतं दशनखं आई। वहां आकर दोनों हथेलियों से
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