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श. ११ : उ. ११ : सू. १४२,१४३
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भगवई
महासुविणाणं अण्णयरं एगं महासुविणं प्रभावत्या देव्या एकः महास्वप्नः दृष्टः, तत् पासित्ता णं पडि-बुज्झंति। इमे य णं 'ओराले' देवानुप्रियाः! प्रभावत्या देव्या देवाणुप्पिया! पभावतीए देवीए एगे स्वप्नः दृष्टः यावत् आरोग्य-तुष्टि-दीर्घायु- महासुविणे दिटे, तं ओराले णं कल्याण-मांगल्यकारकः देवानुप्रियाः! देवाणुप्पिया! पभावतीए देवीए सुविणे । प्रभावत्या देव्या स्वप्नः दृष्टः:. अर्थलाभः दिढे जाव आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउ- देवानुप्रियाः ! भोगलाभः देवानुप्रियाः! कल्लाण-मंगल्लकारए णं देवाणु- पुत्रलाभः देवानुप्रियाः! राज्यलाभः । प्पिया! पभावतीए देवीए सुविणे दिढे, देवानुप्रियाः! एवं खलु देवानुप्रियाः! अत्थलाभो देवाणुप्पिया! भोग-लाभो प्रभावती देवी नवानां मासानां बहुप्रति- देवाणुप्पिया! पुत्तलाभो देवाणुप्पिया! । पूर्णानाम् अर्धाष्टमानां रात्रिंदिवानां रज्जलाभो देवाणु-प्पिया! एवं खलु व्यतिक्रान्तानां युष्माकं कुलकेतुं यावत् देवाणुप्पिया! पभावती देवी नवण्हं देवकुमारसमप्रभं दारकं प्रजनिष्यति। सः मासाणं बहु-पडिपुण्णाणं अट्ठमाण य अपि दारकः उन्मुक्तबालभावः विज्ञकराइंदियाणं वीइक्कंताणं तुम्हें कुलकेउं परिणतमात्रः यौवनकमनुप्राप्तः शूरः वीरः जाव देवकुमारसमप्पभं दारगं विक्रान्तः विस्तीर्ण-विपुलबल-वाहनः पयाहिति।
राज्यपतिः राजा भविष्यति, अनगारः वा से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे भावितात्मा। तत् 'ओराले' देवानुप्रियाः ! विष्णयपरिणयमत्ते जोव्वणग मणुप्यते सूरे प्रभावत्या देव्या स्वप्नः दृष्टः यावत् वीरे विक्कते वित्थिण्णविउल-बलवाहणे आरोग्य-तुष्टि-दीर्घायु-कल्याण-मांगल्यरज्जवई राया भविस्सइ, अणगारे वा कारकः प्रभावत्या देव्या स्वप्नः दृष्टः। भावियप्पा। तं ओराले णं देवाणुप्पिया! पभावतीए देवीए सुविणे दिढे जाव आरोग्ग-तु ट्ठि -दीहाउ-कल्लाण मंगल्लकारए पभावतीए देवीए सुविणे दिद्रु॥
देवानुप्रिय! प्रभावती देवी ने इन स्वप्नों में से एक महास्वप्न देखा है, इसलिए देवानुप्रिय! प्रभावती देवी ने उदार स्वप्न देखा है यावत् देवानुप्रिय! प्रभावती देवी ने आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायु, कल्याण तथा मंगलकारी स्वप्न देखा है। देवानुप्रिय! अर्थ लाभ होगा। देवानुप्रिय! भोग लाभ होगा। देवानुप्रिय! पुत्र-लाभ होगा । देवानुप्रिय' राज्य-लाभ होगा। इस प्रकार देवानुप्रिय! प्रभावती देवी बहु प्रतिपूर्ण नौ मास और साढे सात दिनरात व्यतिक्रांत होने पर तुम्हारे कुलकेतु यावत् देवकुमार के समान प्रभा वाले पुत्र को जन्म देगी। वह बालक बाल्य अवस्था को पार कर, विज्ञ और कला का पारगामी बनकर, यौवन को प्राप्त कर शूर, वीर, विक्रांत, विपुल और विस्तीर्ण सेना-वाहन युक्त, राज्य का अधिपति राजा होगा अथवा भावितात्मा अनगार होगा। इसलिए देवानुप्रिय! (हमारा मत प्रामाणिक है। प्रभावती देवी ने उदार स्वप्न देखा है यावत् प्रभावती देवी ने आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायु, कल्याण और मंगलकारक स्वप्न देखा है।
१४३. तए णं से बले राया सुविण- ततः सः बलः राजा स्वप्नलक्षण-
लक्खणपाढगाणं अंतिए एयमढे सोच्चा पाठकानाम् अन्तिके एनमर्थं श्रुत्वा निशम्य निसम्म हट्ठतुढे करयल-परिग्गहियं हृष्टतुष्टः करतलपरिगृहीतं दशनखं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट शिरसावर्त मस्तके अञ्जलिं कृत्वा तान ते सुविण-लक्खणपाढगे एवं वयासी- स्वप्नलक्षणपाठकान एवमवादीत्-एवमेतद् एवमेयं देवाणुप्पिया! तहमेयं देवाणु- देवानुप्रियाः! तथ्यमेतद् देवानुप्रियाः! प्पिया! अवितहमेयं देवाणु-प्पिया! अवितथमेतद् देवानुप्रियाः ! असंदिग्धमेतद् असंदिद्धमेयं देवाणु-प्पिया! इच्छिय- देवानुप्रियाः! इष्टमेतद् देवानुप्रियाः! मेयं देवाणुप्पिया! पडिच्छियमेयं प्रतीष्टमेतद् देवानुप्रियाः! इष्ट-प्रतीष्टमेतद् देवाणुप्पिया! इच्छियपडिच्छियमेयं देवानुप्रियाः ! तत् यथैव यूयं वदथ इति कृत्वा देवाणु-प्पिया! से जहेयं तुब्भे वदह त्ति तं स्वप्नं सम्यक् प्रतीच्छति, प्रतीष्य कट्ट तं सुविणं सम्म पडिच्छइ, स्वप्नलक्षणपाठकान् विपुलेन अशन-पान- पडिच्छित्ता सुविण-लक्खणपाढए खाद्य - स्वाद्य - पुष्प - वस्त्र - गन्ध- विउलेणं असण-पाण-खाइमसाइम- माल्यालंकारेण सत्करोति, सम्मानयति पुप्फ- वत्थ - गंध · मल्ललंकारेणं सत्कृत्य सम्मान्य विपुलं जीविताहँ सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता प्रीतिदानं ददाति. दत्वा प्रतिविसृजति,
१४३. वह बल राजा स्वप्नलक्षणपाठकों से इस अर्थ को सुनकर, अवधारण कर हृष्ट- . तुष्ट हुआ। दोनों हथेलियों से निष्पन्न संपुट आकार वाली दसनखात्मक अंजलि को सिर के सम्मुख घुमाकर मस्तक पर टिकाकर इस प्रकार बोला-देवानुप्रियो ! यह ऐसा ही है। देवानुप्रियो ! यह तथा (संवादितापूर्ण) है। देवानुप्रियो ! यह अवितथ है। देवानुप्रियो ! यह असंदिग्ध है। देवानुप्रियो ! यह इष्ट है। देवानुप्रियो ! यह प्राप्सित है। देवानुप्रियो ! यह इष्टप्रतीप्सित है। जैसा आप कर रहे हैं. ऐसा भाव प्रदर्शित कर उस स्वप्न के फल को सम्यक स्वीकार किया। स्वीकार कर स्वप्नलक्षणपाठकों का विपुल अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, पुष्प, वस्त्र, गंध और
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