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भगवई
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५९. जइ वेउव्वियसरीरकायपयोग- यदि वैक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणतः किम् परिणए किं एगिदियवेउव्वियसरीर- एकेन्द्रियवैक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणतः? कायपयोगपरिणए? पंचिंदिय- पञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीर यावत परिणतः? वेउब्वियसरीर जाव परिणए? गोयमा! एगिदिय जाव परिणए वा, गौतम! एकेन्द्रिय यावत् परिणतः वा पञ्चेपंचिंदिय जाव परिणए वा।
न्द्रिय यावत् परिणतः वा।
श. ८ : उ. १ : सू. ५९-६१ ५९. यदि वैक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणत है
तो क्या एकेन्द्रियवैक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणत है? अथवा पंचेन्द्रियवैक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणत है? गौतम! एकेन्द्रियवैक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणत है अथवा पंचेन्द्रियवैक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणत है।
६०. जइ एगिदिय जाव परिणए किं यदि एकेन्द्रिय यावत् परिणतः किं वायु- ६०. यदि एकेन्द्रियवैक्रियशरीरकायप्रयोगवाउक्काइयएगिंदिय जाव परिणए? कायिकैकेन्द्रिय यावत् परिणतः? अवायु- परिणत है तो क्या वायुकायिक एकेन्द्रियअवाउक्काइयएगिदिय जाव परिणए? कायिकैकेन्द्रिय यावत् परिणतः?
वैक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणत है? अथवा अवायुकायिक एकेन्द्रियवक्रियशरीर
कायप्रयोगपरिणत है? गोयमा! वाउक्काइयएगिदिय जाव गौतम! वायुकायिकैकेन्द्रिय यावत् । गौतम! वायुकायिक एकेन्द्रियवैक्रियपरिणए, नो अवाउक्काइयएगिदिय जाव परिणतः, नो अवायुकायिकैकेन्द्रिय यावत् शरीरकायप्रयोगपरिणत है, अवायुकायिक परिणए। एवं एएणं अभिलावेणं जहा । परिणतः। एवम् एतेन अभिलापेन यथा एकेन्द्रियवैक्रियशरीरकाय - प्रयोगपरिणत ओगाहणसंठाणे वेउब्वियसरीरं भणियं अवगाहना- संस्थाने वैक्रियशरीरं भणितं नहीं है। इस प्रकार इस वायुकाय के तहा इह वि भाणियव्वं जाव पज्जत्ता - तथा इहापि भणितव्यं यावत् पर्याप्त- अभिलाप के अनुसार जैसी अवगाहना सव्वट्ठसिद्धअणुत्तरो . ववाइय- कसर्वार्थसिद्ध . अनुत्तरौपपातिककल्पा- संस्थान नामक प्रज्ञापना के २१वे पद म कप्पातीतावेमाणियदेव-पंचिंदिया तीतक - वैमानिकदेव - पञ्चेन्द्रियवैक्रिय- वैक्रियशरीर की वक्तव्यता है वैसा यहां भी वेउव्वियसरीर-काय-पयोगपरिणए वा, शरीरकायप्रयोगपरिणतः वा, अपर्याप्तक- वक्तव्य है। यावत् पर्याप्तक सर्वार्थसिद्ध अपज्जत्ता-सव्वट्ठ-सिद्धअणुत्तरो- सर्वार्थसिद्ध . अनुत्तरौपातिक यावत् अनुत्तरौपपातिक कल्पातीतगवैमानिक देव ववाइय जाव परिणए वा॥ परिणतः वा।
पंचेन्द्रियवैक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणत है अथवा अपर्याप्तक सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक कल्पातीतग वैमानिक देवपंचेन्द्रियवैक्रिय : शरीरकायप्रयोग - परिणत है।
६१. जइ वेउव्वियमीसासरीरकाय- यदि वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगपरिणतः ६१.यदि वैक्रिय मिश्रशरीरकायप्रयोगपरिणत पयोगपरिणए किं एगिदियमीसा- किम् एकेन्द्रियमिश्रकशरीरकायप्रयोगपरि- है तो क्या एकेन्द्रिय मिश्रशरीरकायसरीरकायपयोगपरिणए? जाव पंचिं- णतः? यावत् पञ्चेन्द्रियमिश्रकशरीरकाय- प्रयोगपरिणत है? अथवा यावत् पंचेन्द्रिय दियमीसासरीर-कायपयोग-परिणए। प्रयोगपरिणतः?
मिश्रशरीरकायप्रयोगपरिणत है? एवं जहा वेउब्वियं तहा वेउब्विय-मीसगं एवं यथा वैक्रियं तथा वैक्रियमिश्रकमपि, इस प्रकार जैसे वैक्रिय की वक्तव्यता है पि, नवरं-देव-नेरइयाणं अपज्जत्तगाणं, नवरं-देव-नैरयिकाणाम् अपर्याप्तकानाम्, वैसे ही वैक्रिय मिश्र की भी वक्तव्यता। सेसाणं अपज्जत्त-गाणं जाव नो शेषाणां पर्याप्तकानां यावत् नो पर्याप्तक- केवल इतना विशेष है-देव नैरयिकों के पज्जत्ता-सव्वट्ठ सिद्धअणुत्तरोववाइय । सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक यावत् अपर्याप्सक और शेष के पर्याप्तक यावत जाव परिणए, अपज्जत्तासव्वट्ठसिद्ध- परिणतः, अपर्याप्तकसर्वार्थसिद्ध- पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरीपपातिक देव अणुत्तरोववाइय . देवपंचिंदिय- अनुत्तरौपपातिकदेव . पञ्चेन्द्रियवैक्रिय- पंचेन्द्रियवैक्रियमिश्रशरीरकाय . प्रयोगवेउब्वियमीसासरीरकाय-पयोग- मिश्रकशरीर-कायप्रयोग-परिणतः।
परिणत नहीं हैं, अपर्याप्त सर्वार्थसिद्ध परिणए।
अनुत्तरौपपातिक देव पंचेन्द्रियवैक्रिय मिश्रशरीरकायप्रयोगपरिणत है।
१.पण्ण.२१.५०-५५
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