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भगवई
सुविणस्स अत्थोग्गहणं करेइ, करेत्ता पभावई देवि ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं जाव मंगल्लाहिं मिय-महुर- सस्सिरीयाहिं वग्गूहिं संलव-माणे- संलवमाणे एवं वयासी-ओराले णं तुमे देवी! सुविणे दिट्ठे ? कल्लाणे णं तुमे देवी! सुविणे दिट्ठे जाव सस्सिरीए णं तुमे देवी! सुविणे दिवे, आरोग्ग-तुट्ठि- दीहाउकल्लाण- मंगल्लकारए णं तुमे देवी! सुविणे दिट्ठे, अत्थलाभो देवाणुप्पिए! भोगलाभो देवाणु - प्पिए! पुत्तलाभो देवाप्पिए! रज्जलाभो देवाणु - प्पिए! एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए! नवहं मासाणं बहुपडिपुणाणं अद्धट्टमाण य राइंदियाणं वीइक्कं ताणं अम्हं कुलकेउं कुलदीवं कुलपव्वयं कुलवडेंसयं कुलतिलगं कुलकि-त्तिकरं कुलनंदिकरं कुल- जसकरं कुलाधारं कुलपायवं कुलविवर्द्धणकरं सुकुमालपाणिपायं अहीण पडिपुण्णपंचिदियसरीरं लक्खण- वंजण- गुणोववेयं माणुम्मामाण- पडिपु सुजाय - सव्वंगसुंदरंग ससिसोमाकारं कंतं पिय-दंसणं सुरुवं देवकुमारसमप्पभं दारगं पयाहिसि ।
से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेते जोवणगमणुप्पत्ते सूरे वीरे विक्कंते वित्थिष्णविउलबल - वाहणे रज्जवई राया भविस्सइ । तं ओराले णं तुमे देवी! सुविणे दिट्ठे जाव आरोग्ग-तुट्ठि- दीहाउकल्ला - मंगल्लकारए णं तुमे देवी! सुविदित 'कट्टु भावतिं देवि ताहिं safe जाव वहिं दोच्चं पि तच्चं पि अणुबूहति ॥
१३५. तए णं सा पभावती देवी बलस्स
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करोति, कृत्वा प्रभावतीं देवीं ताभिः इष्टाभिः कान्ताभिः यावत् मांगल्याभिः मित-मधुरसश्रीकाभिः वाग्भिः संपलन्-संपलन् एवमवादीत्- 'ओराले' त्वया देवि ! स्वप्नः दृष्टः, कल्याणं त्वया देवि ! स्वप्नः दृष्टः यावत् सश्रीकः त्वया देवि ! स्वप्नः दृष्टः, आरोग्य तुष्टि दीर्घायु - कल्याण-मांगल्यकारकः त्वया देवि ! स्वप्नः दृष्टः, अर्थलाभः देवानुप्रिये ! भोगलाभः देवानुप्रिये ! पुत्रलाभः देवानुप्रिये ! राज्यलाभः देवानुप्रिये ! एवं खलु त्वं देवानुप्रिये! नवानां मासानां बहुप्रतिपूर्णानाम् अर्धाष्टमानांच रात्रिंदिवानां व्यतिक्रान्तानाम् अस्माकं कुलकेतुं कुलदीपं कुलपर्वतं कुलावतंसकं कुलतिलकं कुलकीर्तिकरं कुलनन्दिकरं कुलयशस्करं कुलाधारं कुलपादपं कुलविवर्धनकरं सुकुमारपाणिपादम् अहीनप्रतिपूर्णपञ्चेन्द्रियशरीरं लक्षण - व्यञ्जनगुणोपेतं मानोन्मान प्रमाण-प्रतिपूर्णसुजात सर्वांगसुन्दरांगं शशिसौम्याकारं कान्तं प्रियदर्शनं सुरूपं देवकुमारसमप्रभं दारकं प्रजनिष्यसि ।
सः अपि च दारकः उन्मुक्तबालभावः विज्ञकपरिणतिमात्रः यौवनकमनुप्राप्तः शूरः वीरः विक्रांतः विस्तीर्ण-विपुलबल-वाहनः राज्यपतिः राजा भविष्यति। तत् 'ओराले' त्वया देवि ! स्वप्नः दृष्टः यावत् आरोग्यतुष्टि-दीर्घायु - कल्याण-मांगल्य-कारकः त्वया देवि ! स्वप्नः दृष्ट इति कृत्वा प्रभावती देवीं ताभिः इष्टाभिः यावत् वाग्भिः द्विः अपि त्रिः अपि अनुबृंहति।
ततः सा प्रभावती देवी बलस्य राज्ञः
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श. ११ : उ. ११ : सू. १३४,१३५ अवग्रहण कर ईहा में प्रवेश किया। ईहा में प्रवेश कर अपने स्वाभाविक मतिपूर्वक बुद्धि-विज्ञान के द्वारा उस स्वप्न के अर्थ का अवग्रहण किया। अर्थ का अवग्रहण कर प्रभावती देवी से इष्ट कांत यावत् मंगल, मृदू, मधुर, श्री संपन्न शब्दों के द्वारा पुनः पुनः संलाप करता हुआ इस प्रकार बोला - देवी! तुमने उदार स्वप्न देखा है। देवी! तुमने कल्याणकारी स्वप्न देखा है। यावत् देवी! तुमने श्री संपन्न स्वप्न देखा है। देवी ! तुमने आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायु, कल्याण और मंगलकारी स्वप्न देखा है । देवानुप्रिये ! तुम्हें अर्थ लाभ होगा। देवानुप्रिये! तुम्हें भोग लाभ होगा। देवानुप्रिये ! तुम्हें पुत्र लाभ होगा। देवानुप्रिये ! तुम्हें राज्य लाभ होगा। इस प्रकार देवानुप्रिये ! तुम बहु प्रतिपूर्ण नौ मास और साढे सात दिनरात व्यतिक्रांत होने पर एक बालक को जन्म दोगी। वह बालक हमारे कुल की पताका, कुलदीप, कुल पर्वत, कुलअवतंस, कुल-तिलक, कुल-कीर्तिकर, कुल को आनंदित करने वाला, कुल के यश को बढ़ाने वाला, कुल का आधार, कुल- पादप, कुल को बढ़ाने वाला, सुकुमाल हाथ पैर वाला, अक्षीण और प्रतिपूर्ण पंचेन्द्रिय शरीर वाला लक्षण और व्यंजन गुणों से उपेत, मान, उन्मान और प्रमाण से प्रतिपूर्ण, सुजात, सर्वांग सुन्दर, चंद्रमा के समान सौम्य आकार वाला, कांत, प्रियदर्शन, सुरूप और देव कुमार के समान प्रभा वाला होगा। वह बालक बाल अवस्था को पार कर विज्ञ और कला का पारगामी बन कर यौवन को प्राप्त कर, शूर, वीर, विक्रांत, विपुल और विस्तीर्ण सेना वाहन युक्त, राज्य का अधिपति राजा होगा। इसलिए देवी ! तुमने उदार स्वप्न देखा है यावत् आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायु, कल्याण और मंगलकारी स्वप्न देखा है। ऐसा कह कर उन इष्ट यावत् मंजुल शब्दों के द्वारा दूसरी तीसरी बार भी प्रभावती देवी के उल्लास को बढ़ाया।
१३५. राजा बल के पास इस अर्थ को
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