SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 440
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श.११ : उ. ११ : सू. १२१-१२४ ४१८ भगवई सयभागमुहत्तभागेणं परिहायमाणी- माना-परिहीयमाना जघन्यिका त्रिमुहर्ता एक सौ बाईसवां भाग कम होते होते परिहायमाणी जहणिया तिमहत्ता दिवसस्य वा रात्र्याः वा पौरुषी भवति। यदा जघन्यतः तीन मुहूर्त का प्रहर होता है। जब दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ। वा जघन्यिका त्रिमुहर्ता दिवसस्य वा रात्र्याः दिवस अथवा रात्रि का जघन्यतः तीन जदा वा जहणिया तिमुहुत्ता दिवसस्स वा पौरुषी भवति. तदा द्वाविंशतिशत- मुहर्त का प्रहर होता है तब दिवस अथवा वा राईए वा पोरिसी भवइ, तदा णं भागमुहूर्तभागेन परिवर्द्धमाना-परिवर्द्धमाना। रात्रि के मुहूर्त भाग का एक सौ बाईसवां बावीससयभाग-मुहत्तभागेण परिवड्ड उत्कर्षिका अर्द्धपञ्चममुहर्ता दिवसस्य वा भाग बढ़ते बढ़ते उत्कृष्टतः साढे चार मुहूर्त माणी-परिवढ-माणी उक्कोसिया रात्र्याः वा पौरुषी भवति। का प्रहर होता है। अद्भपंचममुहत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ॥ १२२. कदा णं भंते! उक्कोसिया कदा भदन्त ! उत्कर्षिका अर्द्धपञ्चम-मुहूर्त्ता १२२. भंते! दिवस अथवा रात्रि का अद्धपंचममुहत्ता दिवसस्स वा राईए वा दिवसस्य वा रात्र्याः वा पौरुषी भवति? उत्कृष्टतः साढे चार मुहर्त का प्रहर कब पोरिसी भवई, कदा वा जहणिया कदा वा जघन्यिका त्रिमुहर्ता दिवसस्य वा होता है? दिवस अथवा रात्रि का तिमुहत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी रात्र्याः वा पौरुषी भवति? जघन्यतः तीन मुहूर्त का प्रहर कब होता भवइ? सुदंसणा! जदा णं उक्कोसए सुदर्शन ! यदा उत्कर्षकः अष्टादशमुहूर्तः सुदर्शन ! जब उत्कृष्टतः अठारह मुहूर्त का अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दिवसः भवति, जघन्यिका द्वादशमुहर्ता दिन होता है, जघन्यतः बारह मुहूर्त की दुवालसमुहत्ता राई भवइ, तदा णं रात्रिः भवति, तदा उत्कर्षिका रात्रि होती है तब दिवस का उत्कृष्टतः उक्कोसिया अद्ध-पंचममुहुत्ता अर्द्धपञ्चममुहूर्त्ता दिवसस्य पौरुषी भवति। साढे चार मुहूर्त का प्रहर होता है और रात्रि दिवसस्स पोरिसी भवइ, जहणिया । जघन्यिका त्रिमुहूर्त्ता रात्र्याः पौरुषी भवति। का जघन्यतः तीन मुहूर्त का प्रहर होता है। तिमुहुत्ता राईए पोरिसी भवइ। जदा णं यदा उत्कर्षिका अष्टादशमुहूर्तिका रात्रिः जब उत्कृष्टतः अठारह मुहर्त की रात्रि उक्को-सिया अट्ठारसमुहुत्तिया राई भवति, जघन्यकः द्वादशमुहूर्तः दिवसः। होती है, जघन्यतः बारह मुहूर्त का दिन भवई, जहण्णिए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति, तदा उत्कर्षिका अर्द्धपञ्चममुहूर्त्ता होता है तब रात्रि का उत्कृष्टतः साढे चार भवइ, तदा णं उक्कोसिया अद्ध- रात्र्याः पौरुषी भवति, जघन्यिका त्रिमुहूर्त्ता मुहूर्त का प्रहर होता है और दिवस का पंचममुहत्ता राईए पोरिसी भवइ, दिवसस्य पौरुषी भवति। जघन्यतः तीन मुहूर्त का प्रहर होता है। जहणिया तिमुहत्ता दिवसस्स पोरिसी भवइ॥ १२३. कदा णं भंते! उक्कोसए कदा भदन्त ! उत्कर्षकः अष्टादश-मुहूर्तः १२३. भंते ! उत्कृष्टतः अठारह मुहूर्त्त का अट्ठारसमहत्ते दिवसे भवइ, जह-णिया दिवसः भवति, जघन्यिका द्वादश-मुहूर्त्ता दिवस कब होता है? जघन्यतः बारह दुवालसमुहुत्ता राई भवई? कदा वा रात्रिः भवति। कदा वा उत्कर्षिका मुहूर्त की रात्रि कब होती है? उत्कृष्टतः उक्कोसिया अट्ठार-समुहत्ता राई भवइ, अष्टादशमुहर्ता रात्रिः भवति, जघन्यकः अठारह मुहूर्त की रात्रि कब होती है? जहण्णए दुवालसमुहत्ते दिवसे भवइ? द्वादशमुहर्त्तः दिवसः भवति? जघन्यतः बारह मुहूर्त का दिवस कब सुदंसणा! आसाढपुण्णिमाए उक्कोसए होता है? अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया सुदर्शन ! आषाढपूर्णिमायाम् उत्कर्षकः सुदर्शन ! आषाढ-पूर्णिमा के दिन उत्कृष्टतः दुवालसमुहुत्ता राई भवइ। पोसपुण्णिमाए अष्टादशमुहूर्त्तः दिवसः भवति, जघन्यिका । अठारह मुहूर्त का दिवस होता है और णं उक्को-सिया अट्ठारसमुहुत्ता राई द्वादशमुहूर्त्ता रात्रिः भवति, पौष पूर्णिमायाम् जघन्यतः बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। भवइ, जहण्णए दुवालसमुहत्ते दिवसे उत्कर्षिका अष्टादशमुहर्ता रात्रिः भवति, पौष पूर्णिमा के दिन उत्कृष्टतः अठारह भव॥ जघन्यकः द्वादशमुहूर्त्तः दिवसः भवति। मुहर्त की रात्रि होती है और बारह मुहर्त्त का दिवस होता है। १२४. भंते क्या दिन और रात्रि समान होते १२४. अत्थि णं भंते! दिवसा य राईओ य समा चेव भवंति? अस्ति भदन्त ! दिवसाः रात्र्यः च समाः चैव भवन्ति? है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy