SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 439
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवई श. ११ : उ. ११ : सू. ११८-१२१ जाव आणाए आराहए भवइ॥ ११८. तए णं से सुदंसणे सेट्ठी समणस्स ततः सः सुदर्शनः श्रेष्ठी श्रमणस्य भगवतः ११८. वह सुदर्शन श्रेष्ठी श्रमण भगवान भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म महावीरस्य अन्तिकं धर्मं श्रुत्वा निशम्य महावीर के पास धर्म सन कर, अवधारण सोच्चा निसम्म हट्ठतुढे उट्ठाए उढेइ, हृष्टतुष्टः उत्थया उत्तिष्ठति, उत्थाय श्रमणं कर हृष्ट-तुष्ट होकर उठने की मुद्रा में उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो भगवन्तं महावीरं त्रिः आदक्षिण-प्रदक्षिणां उठा। उठकर श्रमण भगवान महावीर को आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ करोति कृत्वा वन्दते नमस्यति. वन्दित्वा दायीं ओर से प्रारंभ कर तीन बार नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी- नमस्थित्वा एवमवादीत प्रदक्षिणा की, प्रदक्षिणा कर वंदननमस्कार किया, बंदन-नमस्कार कर इस प्रकार कहा ११९. भंते! काल कितने प्रकार का प्रजप्त ११९. कतिविहे णं भंते! काले पण्णत्ते? कतिविधः भदन्त ! कालः प्रज्ञप्तः। सुदंसणा! चउविहे काले पण्णत्ते, तं सुदर्शन! चतुर्विधः कालः प्रज्ञप्तः जहा-पमाणकाले, अहाउनिव्व- तद्यथा-प्रमाणकालः यथायुर्निवृत्तिकालः, त्तिकाले, मरणकाले, अद्धाकाले॥ मरणकालः, अध्वाकालः। सुदर्शन ! काल चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-प्रमाण काल, यथायुनिवृत्ति काल, मरण काल, अध्वा काल। १२०.से किं तं पमाणकाले? अथ किं तत् प्रमाणकालः? पमाणकाले दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- प्रमाणकालः द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथादिवसप्पमाणकाले, राइप्पमाण-काले दिवसप्रमाणकालः, रात्रिप्रमाणकालश्च। य। चउपोरसिए दिवसे, चउ- पोरिसिया चतुःपौरुषीकः दिवसः, चतुःपौरुषिका च राई भवइ। उक्कोसिया रात्रिः भवति। उत्कर्षिका अर्द्धपञ्चममुहूर्ता अद्धपंचममुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा दिवसस्य वा रात्र्याः वा पौरुषी भवति। पोरिसी भवइ, जहणिया तिमहत्ता जघन्यिका त्रिमुहर्ता दिवसस्य वा रात्र्याः वा दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ॥ पौरुषी भवति। १२०. वह प्रमाण काल क्या है ? प्रमाण काल दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे दिवसप्रमाण काल, राविप्रमाण काल। चार प्रहर का दिवस और चार प्रहर की रात्रि होती है। दिन अथवा रात्रि का प्रहर उत्कृष्टतः साढे चार मुहूर्त का होता है। दिवस अथवा रात्रि का प्रहर जघन्यतः तीन मुहर्त का होता है। १२१. जदा णं भंते! उक्कोसिया यदा भदन्त ! उत्कर्षिका अर्द्धपञ्चम-मुहूर्त्ता १२१. भंते! जब दिवस अथवा रात्रि का अद्धपंचममुहत्ता दिवसस्स वा राईए वा दिवसस्य वा रात्र्याः वा पौरुषी भवति, तदा उत्कृष्टतः साढ़े चार मुहर्त्त का प्रहर पोरिसी भवइ, तदा णं कति- कतिभागमुहर्त्तभागेन परिहीयमाना- होता है तब दिवस अथवा रात्रि के मुहूर्त भागमहत्तभागेणं परिहायमाणी- परिहीयमाना जन्यिका त्रिमुहर्ता दिवसस्य भाग का कितना भाग कम होते होते परिहायमाणी जहणिया तिमहत्ता वा रात्र्याः वा पौरुषी भवति? यदा जधन्यतः तीन मुहूर्त का प्रहर होता है? दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ? जघन्यिका त्रिमुहूर्त्ता दिवसस्य वा रात्र्याः वा जब दिवस अथवा रात्रि का जघन्यतः जदा णं जहणिया तिमहत्ता दिवसस्स पौरुषी भवति, तदा कतिभागमुहर्त्तभागेन तीन मुहर्त का प्रहर होता है तब दिवस वा राईए वा पोरिसी भवइ? तदा णं परिवर्द्धमाना-परिवर्द्धमाना उत्कर्षिका अथवा रात्रि के मुहूर्त भाग का कितना कतिभागमुहत्तभागेणं परिवड्डमाणी- अर्द्धपञ्चममुहूर्ता दिवसस्य वा रात्र्याः वा भाग बढ़ते बढ़ते उत्कृष्टतः साढे चार परिवहमाणी उक्कोसिया अद्भपंचम- पौरुषी भवति ? मुहूर्त का प्रहर होता है ? मुहत्ता दिव-सस्स वा राईए वा पोरसी भवइ? सुदंसणा! जदा णं उक्कोसिया सुदर्शन! यदा उत्कर्षिका अर्द्धपञ्चममुहूर्त्ता सुदर्शन! जब दिवस अथवा रात्रि का अद्धपंचममुहत्ता दिवसस्स वा राईए वा दिवसस्य वा रात्र्याः वा पौरुषी भवति, तदा उत्कृष्टतः साढ़े चार मुहूर्त का प्रहर होता पोरिसी भवइ, तदा णं बावीस- द्वाविंशतिशतभागमुहर्तभागेन परिहीय- है तब दिवस अथवा रात्रि के मुहूर्त भाग का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy