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________________ श. ११ : उ. १० : सू. १११,११२ ४१४ भगवई लोगागासे जीवपदेस-पदं लोकाकाशे जीवप्रदेश-पदम १११. लोगस्स णं भंते! एगम्मि आगास- लोकस्य भदन्त ! एकस्मिन् आकाश-प्रदेशे पदेसे जे एगिदियपदेसा जाव पंचिंदिय- ये एकेन्द्रियप्रदेशाः यावत् पञ्चेन्द्रिय- पदेसा अणिदियपदेसा अण्णमण्णबद्धा प्रदेशाः अनिन्द्रियप्रदेशाः अन्योन्यबद्धाः अण्णमण्णपुट्ठा अण्णमण्णबद्धपुट्ठा अन्योन्य-स्पृष्टाः अन्योन्यबद्धस्पृष्टाः अण्ण-मण्णघडताए चिट्ठति? अत्थि णं अन्योन्य-घटतया तिष्ठन्ति? भंते! अण्णमण्णस्स किंचि आबाहं वा अस्ति भदन्त! अन्योन्यस्य किञ्चित् वाबाहं वा उप्पायंति? छविच्छेदं वा अबाधां वा व्याबाधां वा उत्पादयन्ति? करेंति? छविच्छेदं वा कुर्वन्ति? नो इणद्वे समद्रु॥ नो अयमर्थः समर्थः। लोकाकाश में जीव-प्रदेश पद १११. भंते! लोक के एक आकाश-प्रदेश में जो एकेन्द्रिय-प्रदेश यावत् पंचेन्द्रिय प्रदेश, अनिन्द्रिय-प्रदेश, अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट, अन्योन्य-बद्ध-स्पृष्ट और अन्योन्य एकीभूत बने हुए हैं। भंते ! क्या वे परस्पर किञ्चित आबाध अथवा व्याबाध उत्पन्न करते हैं ? छविच्छेद करते है यह अर्थ संगत नहीं है। ११२. से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ- तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-लोकस्य ११२. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा लोगस्स णं एगम्मि आगासपदेसे जे एकस्मिन् आकाशप्रदेशे ये एकेन्द्रियप्रदेशाः रहा है-लोक के एक आकाश-प्रदेश में एगिदियपदेसा जाव अण्णमण्ण-घडत्ताए यावत् अन्योन्यघटतया तिष्ठन्ति, नास्ति जो एकेन्द्रिय-प्रदेश यावत् अन्योन्य चिट्ठति, नत्थि णं भंते! अण्णमण्णस्स भदन्त ! अन्योन्यस्य किञ्चित् आबाधां वा एकीभूत बने हुए हैं, भंते! वे परस्पर किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पायंति, व्याबाधां वा उत्पादयन्ति छविच्छेदं वा किञ्चित् आबाध अथवा व्याबाध उत्पन्न छविच्छेदं वा करेंति? कुर्वन्ति? नहीं करते? छविच्छेद नहीं करते? गोयमा! से जहानामए नट्टिया सिया- गौतम ! अथ यथानामका नर्तिका स्यात्- गौतम! जैसे कोई नर्तिका है-मूर्तिमान, सिंगारागारचारुवेसा संगय · गय- शृङ्गाराकारचारुवेषा, संगत-गत-हसित- शृंगार और सुन्दर वेशवाली, चलने, हसिय- भणिय · चेट्ठिय -विलास- भणित-चेष्टित-विलास-सललित-संलाप- हंसने, बोलने और चेष्टा करने में निपुण, सललिय - संलाव - निउणजुत्तोवयार निपुणयुक्तोपचारकुशला सुन्दरस्तन- तथा विलास और लालित्यपूर्ण संलाप में कुसलासुंदरथण - जघण - वयण-कर- जघन-वदन-कर-चरण-नयन-लावण्य- निपुण, समुचित उपचार में कुशल, सुन्दर चरण-नयण-लावण्ण - रूव - जोव्वण- रूप-यौवन-विलासकलिता रङ्गस्थाने जन- स्तन, कटि, मुख, हाथ, पैर, नयन, विलासकलिया रंगट्ठाणंसि जण- शताकुले (जनसहस्राकुले) जनशत- लावण्य, रूप, यौवन और विलास से सयाउलंसि(जणसहस्साउल सि?) सहस्राकुले द्वात्रिंशद्विधस्य नाट्यस्य कलित। वह नर्तिका सैकड़ों (हजारों?) जणसयसहस्साउलंसि बत्तीसइ- अन्यतरां नाट्यविधिमुपदर्शयेत, अथ नूनं लाखों लोगों से आकुल नाट्यशाला में विहस्स नट्टस्स अण्णयरं नट्टविहिं गौतम! ते प्रेक्षकाः तां नर्तिकाम अनिमिषया बत्तीस प्रकार की नाट्यविधियों में से उवदंसेज्जा, से नूणं गोयमा! ते पेच्छगा दृष्टया सर्वतः समन्तात् समभिलोकन्ते ? किसी एक नाट्यविधि का उपदर्शन करती तं नट्टियं अणिमिसाए दिट्ठिए सव्वओ है। गौतम! वे प्रेक्षक अनिमेष दृष्टि से चारों समंता समभि- लोएंति? ओर से उस नर्तिका को देखते हैं ? हंता समभिलोएंति। हन्त समभिलोकन्ते। हां, देखते है। ताओ णं गोयमा! दिट्ठीओ तंसि ताः गौतम ! दृष्टयः तस्मिन् नर्तिते सर्वतः गौतम! वे दृष्टियां उस नर्तकी की ओर नट्टियंसि सव्वओ समंता सन्नि- समन्तात् सन्निपतिताः ? चारों ओर से गिर रही हैं? पडियाओ? हंता सन्निपडियाओ। हन्त सन्निपतिताः। हां, गिर रही हैं। अत्थि णं गोयमा! ताओ दिट्ठीओ तीसे अस्ति गौतम ! ताः दृष्टयः तस्याः । गौतम ! वे दृष्टियां उस नर्तकी को किञ्चित् नट्टियाए किंचि वि आबाहं वा वाबाहं नर्तिकायाः किंचित् अपि आबाधां वा आबाध अथवा व्याबाध उत्पन्न करती हैं ? उप्पायंति? छविच्छेदं वा करेंति? व्याबाधां वा उत्पादयन्तिं? छविच्छेदं वा छविच्छेद करती हैं? कुर्वन्ति। नो इणढे समढे। नो अयमर्थः समर्थः। यह अर्थ संगत नहीं है। सा वा नट्टिया तासिं दिट्ठीणं किंचि सा वा नर्तिका तासां दृष्टीनां किंचित् वह नर्तकी उन दृष्टियों में किञ्चित् आबाध आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएंति? आबाधां वा व्याबाधां वा उत्पादयति? अथवा व्याबाध उत्पन्न करती है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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