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________________ भगवई दारगस्स नामगोए वि पहीणे भवति, नो चेव णं ते देवा अलोयतं संपाउणति । तेसि णं भंते! देवाणं किं गए बहुए ? अगए बहुए ? गोयमा ! नो गए बहुए, अगए बहुए, गयाओ से अगए अनंतगुणे, अगयाओ से गए अनंतभागे। अलोए णं गोयमा ! एमहालए पण्णत्ते ॥ १४ रज्जु १ सूत्र ९०९-११० लोक और अलोक का विभाग आकाश के आधार पर किया गया है। विवरण के लिए दूसरा शतक द्रष्टव्य है।' राजगृह में भगवान स्थविरों ने गति प्रवाद नामक अध्ययन का प्रज्ञापन किया। इसका उल्लेख भगवती के आठवें शतक में तथा प्रज्ञापना के सोलहवें पद में मिलता है। त्वरित गति का वर्णन प्रस्तुत आगम में चार स्थानों में उपलब्ध है १. तमस्काय का प्रकरण* २. कृष्णराज का प्रकरण ३. चमर का प्रकरण' ४. लोक और अलोक का परिमाण" बलिपिण्ड का उल्लेख केवल लोक- अलोक के प्रकरण में है। गति की त्वरा का उल्लेख बहुत आश्चर्यजनक है। दिव्य गति की तुलना में वैज्ञानिक यंत्रों की गति अति मंद प्रतीत हो रही है। छह देव मेरु पर्वत की चूलिका से अपनी यात्रा शुरू करते हैं। पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशा में गति करने वाले देवों को आधा रज्जु की दूरी तय करनी होती है क्योंकि मध्यलोक का विस्तार एक रज्जु है। ऊर्ध्व दिशा में गति करने वाले देव को सात रजु से कम चित्र नं. - एक १. भ. २ १३८ सूत्र एवं भाष्य । २. वी. ८/२९३ । ३. पण १६.१७ ४. भ. ६/७५। Jain Education International १ ५ १ ४१३ नामगोत्रमपि प्रहीणं भवति, नो चैव ते देवाः अलोकान्तं सम्प्राप्नुवन्ति । तेषां भदन्त ! देवानां किं गतः बहुकः ? अगतः बहकः ? गौतम ! नो गतः बहुकः, अगतः बहुकः, गतात् तस्य अगतः अनन्तगुणः अगतात् तस्य गतः अनन्तगुणः । अलोकः गौतम! इयन्महान् प्रज्ञप्तः । ७ भाष्य तथा अधोदिशा में गति करने वाले देव को सात रज्जु से अधिक का अंतर तय करना होता है। इस प्रकार सभी देव एक समान दूरी तय नहीं करते। प्रस्तुत सूत्र में बताए गए समय में सभी देवों की तय की गई दूरी अवशिष्ट रही दूरी से असंख्यात गुना अधिक है अथवा अवशिष्ट रही दूरी तय की गई दूरी का असंख्यातवां भाग है। यह बात संगत कैसे हो सकती है ? इस जिज्ञासा का समाधान अभयदेव सूरि ने लोक को धन चतुरस्राकार (Cube) मानकर किया है। ' लोक को घन चतुरस्राकार मानने पर सभी देवों के द्वारा तय की गई दूरी तथा अवशिष्ट दूरी समान ही होगी। श. ११ : उ. १० : सू. ११० भी वे देव अलोक का अंत नहीं पा सके। भंते! उन देवों का गत क्षेत्र बहुत है ? अगत क्षेत्र बहुत है ? गौतम! गत क्षेत्र बहुत नहीं है, अगत क्षेत्र बहुत है। गतक्षेत्र से अगतक्षेत्र अनंत गुण है। और अगत क्षेत्र से गतक्षेत्र अनंत भाग है। गौतम! अलोक इतना बड़ा प्रज्ञप्त है। दिगंबर परंपरा के महान गणितज़ वीरसेनाचार्य तथा यतिवृषभाचार्य कृत तिल्लोयपण्णत्ति में भी लोक को धन चतुरस्राकार मानकर लोक का आयतन (Volume ) ३४३ घन रज्जु माना है। मध्यलोक लोक सुप्रतिष्ठक आकार वाला है, देखें चित्र नं. १ | घन चतुरस्राकार मानने पर लोक का आकार चित्र नं. २ की भांति होता है। इसमें लोक के मध्यभाग को 'क' के द्वारा प्रदर्शित किया गया है। यदि 'क' बिंदु से छह देव छहों दिशाओं में गति करते हैं तो उनके द्वारा गत क्षेत्र और अगत क्षेत्र समान ही होगा। चित्र नं. -दो ५. वही, ६ / ९५। ६. वही, ३ / ११६-१२०१ ७. वही, १२ / १०९-११०। ८. भ. वृ. ११/ १०९। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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