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________________ श.११ : उ. १० : सू. ११० भगवई विसेसाहिए परिक्खेवेणं। परिक्षेपेण। तेणं कालेणं तेणं समएणं दस देवा तस्मिन् काले तस्मिन् समये दश देवाः उस काल और उस समय में दस देव महिड्डिया जाव महासोक्खा जंबु-द्दीवे महर्द्धिकाः यावत् महासौख्याः जम्बूद्वीपे महान ऋद्धि वाले यावत् महासुख वाले दीदे मंदरे पव्वए मंदरचूलियं सव्वओ द्वीपे मन्दरे पर्वते मन्दरचूलिकां सर्वतः जम्बूद्वीप द्वीप में मंदर पर्वत पर मंदर समंता संपरिक्खित्ताणं संचिद्वेज्जा, समन्तात संपरिक्षिप्य संतिष्ठेयुः, अधः चूलिका को चारों ओर से घेरे हुए खड़े हैं। अहे णं अट्ठ दिसा-कुमारीओ महत्त- अष्ट दिशाकुमार्यः महत्तरिकाः अष्ट नीचे आठ दिशाकुमारी महनरिकाओं ने रियाओ अट्ठ बलिपिंडे गहाय माणुसुत्त- बनिपिण्डान गृहीत्वा मानुषोत्तरस्य पर्वतस्य आठ बलिपिण्डों को ग्रहण कर मानुषोत्तर रस्स पव्वयस्स चउसु वि दिसासु चतसृषु अपि दिशासु चतसृषु अपि पर्वत की चारों दिशाओं और चारों चउसु वि विदिसासु बहियाभिमुहीओ विदिशासु बहिः अभिमुख्यः स्थित्वा तान् विदिशाओं में बाह्याभिमुख स्थित होकर ठिच्चा ते अट्ठ बलिपिंडे जमगसमगं अष्ट बलिपिण्डान् 'जगमसमगं' बहिः उन आठ बलिपिण्डों को एक साथ बाहर बहियाभिमुहे पक्खिवेज्जा। पभू णं अभिमुखः प्रक्षिपेयुः। प्रभुः गौतम! ततः। फेंका। गोयमा! तओ एगमेगे देवे ते अट्ठ एकैकः देवः तान अष्ट बलिपिण्डान् गौतम! प्रत्येक देव उन आठ बलिपिण्डों बलिपिंडे धरणितलमसंपत्ते खिप्पामेव धरणितलमसम्प्रासान क्षिप्रमेव प्रतिसंहर्तुम्। का भूमि के तल पर गिरने से पूर्व शीघ्र ही पडिसाहरित्तए। ते णं गोयमा! देवा ताए ते गौतम ! देवाः तया उत्कृष्टया त्वरितया प्रतिसंहरण करने में समर्थ है। उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए चपलया चण्डया जयिन्या छेकया सिंहया गौतम! उन देवों ने उत्कृष्ट, त्वरित, जइणाए छेयाए सीहाए सिग्याए उद्ययाए शीघ्रया उद्भुतया दिव्यया देवगत्या लोकान्ते चपल, चण्ड, जविनी, छेक, सैंही शीघ्र, दिव्वाए देवगईए लोगतं ठिच्चा स्थित्वा असद्भावप्रस्थापनया एकः देवः उद्धृत और दिव्य देव गति के द्वारा असब्भावपट्टवणाएएगे देवे पौरस्त्याभिमुखः प्रयातः, एकः देवः लोकांत में स्थित होकर असद्भाव पुरत्थाभिमुहे पयाते, एगे देवे दक्षिण-पौरस्त्याभिमुखः प्रयातः, एकः देवः प्रस्थापन के अनुसार प्रस्थान किया। एक दाहिणपुरत्थाभिमुहे पयाते, एगे देवे दक्षिणाभिमुखः प्रयातः, एकः देवः देव ने पूर्व दिशा की ओर प्रयाण किया, दाहिणाभिमुहे पयाते, एगे देवे दक्षिणपश्चात्याभिमुखः प्रयातः, एकः देवः एक देव ने दक्षिण-पूर्व की ओर प्रयाण दाहिणपच्चत्थाभिमुहे पयाते, एगे देवे पाश्चत्याभिमुखः प्रयातः, एकः देवः किया, एक देव ने दक्षिण की ओर प्रयाण पच्चत्थाभिमुहे पयाते, एगे देवे उत्तराभिमुखः प्रयातः, एकः देवः किया, एक देव ने दक्षिण-पश्चिम की ओर पच्चत्थउत्तराभिमुहे पयाते, एगे देवे उत्तरपौरस्त्याभिमुखः प्रयातः, एकः देवः प्रयाण किया, एक देव ने पश्चिम की ओर उत्तराभिमुहे पयाते एगे देवे ऊर्वाभिमुखः प्रयातः, एकः देवः प्रयाण किया, एक देव ने पश्चिम-उत्तर उत्तरपुरत्थाभिमुहे पयाते, एगे देवे उड्ड अधोऽभिमुखः प्रयातः। की ओर प्रयाण किया, एक देव ने उत्तर भिमुहे पयाते, एगे देवे अहोभिमुहे की ओर प्रयाण किया। एक देव ने उत्तरपयाते। पूर्व की ओर प्रयाण किया। एक देव ने ऊर्ध्व-दिशा की ओर प्रयाण किया। एक देव ने अधोदिशा की ओर प्रयाण किया। तेणं कालेणं तेणं समएणं वास- तस्मिन् काले तस्मिन् समये वर्षशत- उस काल और उस समय एक लाख वर्ष सयसहस्साउए दारए पयाते। तए णं सहस्रायुष्कः दारकः प्रजातः। ततः तस्य की आयु वाले शिशु का जन्म हुआ। उस तस्स दारगस्स अम्मापियरो पहीणा दारकस्य मातापितरौ प्रहीणौ भवतः, नो शिशु के माता-पिता प्रक्षीण हुए, फिर भी भवंति, नो चेव णं ते देवा अलोयतं चैव ते देवाः अलोकान्तं सम्प्राप्नुवन्ति। वे देव अलोक का अंत नहीं पा सके। उस संपाउणंति। तए णं तस्स दारगस्स ततः तस्य दारकस्य आयुष्कः प्रहीणो शिशु का आयुष्य भी प्रक्षीण हो गया, आउए पहीणे भवति, नो चेव णे ते देवा भवति, नो चैव ते देवाः अलोकान्तं फिर भी वे देव अलोक का अंत नहीं पा अलोयंतं संपाउणंति। तए णं तस्स सम्प्राप्नुवन्ति। ततः तस्य दारकस्य सके। उस शिशु की अस्थि मज्जा प्रक्षीण दारगस्स अद्विमिंजा पहीणा भवंति, नो अस्थिमज्जाः प्रहीणाः भवन्ति, नो चैव ते हो गई, फिर भी वे देव अलोक का अंत चेव णं ते देवा अलोयंत संपाउणंति। तए देवाः अलोकान्तं सम्प्राप्नुवन्ति। ततः तस्य नहीं पा सके। उस शिशु के सात कुल णं तस्स दारगस्स आसत्तमे वि कुलवंसे दारकस्य आसप्तमोऽपि कुलवंशः प्रहीणः वंश (पीढ़ियां) प्रक्षीण हो गए फिर भी वे पहीणे भवति, नो चेव णं ते देवा भवति, नो चैव ते देवाः अलोकान्तं देव अलोक का अंत नहीं पा सके। उस अलोयतं संपाउणंति। तए णं तस्स समप्राप्नुवन्ति। ततः तस्य दारकस्य शिशु का नाम-गोत्र प्रक्षीण हो गया। फिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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