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भगवई
वेज्जा। पभू णं गोयमा! तओ एगमेगे देवे गौतम! ततः एकैकः देवः तान् चतुरः ते चत्तारि बलिपिंडे धरणितलमसंपत्ते बलिपिण्डान धरणितलमसम्प्राप्तान क्षिप्रमेव खिप्पामेव पडिसाहरित्तए। ते णं प्रतिसंहर्तुम। ते गौतम! देवाः तया गोयमा! देवा ताए उक्किट्ठाए तुरियाए उत्कृष्टया त्वरितया चपलया चण्डया चवलाए चंडाए जइणाए छेयाए सीहाए जयिन्या छेकया सिंहया शीघ्रया उद्भुतया सिग्घाए उल्छुयाए दिव्वाए देवगईए एगे दिव्यया देवगत्या एकः देवः पौरस्त्याभिदेवे पुरत्थाभि-मुहे पयाते एगे देवे मुखः प्रयातः, एकः देवः दक्षिणाभिमुखः दाहिणाभिमुहे पयाते, एगे देवे प्रयातः, एकः देवः पश्चात्याभिमुखः पच्चत्थाभिमुहे पयाते, एगे देवे प्रयातः, एकः देवः उत्तराभिमुखः प्रयातः, उत्तराभिमुहे पयाते, एगे देवे उड्डा-भिमुहे एकः देवः ऊर्ध्वाभिमुखः प्रयातः, एकः देवः पयाते एगे देवे अहोभिमुहे पयाते। अधोभिमुखः प्रयातः।
तेणं कालेणं तेणं समएणं वास- तस्मिन् काले तस्मिन् समये वर्षसहस्रासहस्साउए दारए पयाते। तए णं तस्स युष्कः दारकः प्रजातः। ततः तस्य दारकस्य दारगस्स अम्मापियरो पहीणा भवंति, अम्बपितरौ प्रहीणौ भवतः, नो चैव ते देवा नो चेव णं ते देवा लोगंतं संपाउणंति। लोकान्तं सम्प्राप्नुवन्ति। ततः तस्य तए णं तस्स दारगस्स आउए पहीणे दारकस्य आयुष्कं प्रहीणो भवति, नो चैव ते भवति, नो चेव णं ते देवा लोगंतं देवाः लोकान्तं सम्प्राप्नुवन्ति। ततः तस्य संपाउणंति। तए णं तस्स दारगस्स दारकस्य अस्थिमज्जाः प्रहीणाः भवन्ति, अद्विमिंजा पहीणा भवंति, नो चेव णं ते नो चैव ते देवाः लोकान्तं सम्प्राप्नुवन्ति। देवा लोगंतं संपाउणंति। तए णं तस्स ततः तस्य दारकस्य आसप्तमोऽपि कुलवंशः दारगस्स आसत्तमे वि कुलवंसे पहीणे प्रहीणो भवति, नो चैव ते देवाः लोकान्तं भवति, नो चेव णं ते देवा लोगंतं सम्प्राप्नुवन्ति। ततः तस्य दारकस्य संपाउणंति। तए णं तस्स दारगस्स नामगोत्रमपि प्रहीणं भवति, नो चैव ते देवाः नामगोए वि पहीणे भवति, नो चेव णं ते लोकान्तं सम्प्राप्नुवन्ति। देवा लोगंतं संपाउणंति। तेसि णं भंते! देवाणं किं गए बहुए? तेषां भदन्त ! देवानां किं गतः बहकः ? अगए बहुए?
अगतः बहुकः? गोयमा! गए बहुए, नो अगए बहुए, गौतम! गतः बहुकः, नो अगतः बहुकः। गयाओ से अगए असंक्खेज्जइभागे, गतात् तस्य अगतः असंख्येयभागः. अगयाओ से गए असंखेज्जगुणे। लोए अगतात् तस्य गतः असंख्येयगुणः। लोकः णं गोयमा! एमहालए पण्णत्ते॥ गौतम! इमन्महान् प्रज्ञसः।।
श. ११ : उ. १० : सू. १०९,११० गौतम! प्रत्येक देव उन चार बलिपिण्डों का भूमि के तल पर गिरने से पूर्व शीघ्र ही प्रतिसंहरण करने में समर्थ है। गौतम! उन देवों ने उत्कृष्ट, त्वरित, चपल, चण्ड, जविनी, छेक, सैंही शीघ्र, उद्धृत और दिव्य देव गति से प्रस्थान किया। एक देव ने पूर्व दिशा की ओर प्रयाण किया, एक देव ने दक्षिण की ओर प्रयाण किया, एक देव ने पश्चिम की ओर प्रयाण किया, एक देव ने उत्तर की ओर प्रयाण किया। एक देव ने ऊर्ध्व-दिशा की ओर प्रयाण किया। एक देव ने अधोदिशा की ओर प्रयाण किया। उस काल और उस समय में एक हजार वर्ष की आयु वाले शिशु का जन्म हुआ। उस शिशु के माता-पिता प्रक्षीण-मृत्यु को प्राप्त हुए, फिर भी वे देव लोक का अंत नहीं पा सके। उस शिशु का आयुष्य भी प्रक्षीण हो गया, फिर भी वे देव लोक का अंत नहीं पा सके। उस शिशु की अस्थि मज्जा प्रक्षीण हो गई। फिर भी वे देव लोक का अंत नहीं पा सक। उस शिशु के सात कुल-वंश (पीढ़ियां) प्राण हो गए फिर भी वे देव लोक का अंत नहीं पा सके। उस शिशु का नाम गोत्र प्रक्षीण हो गया फिर भी वे देव लोक का अंत नहीं पा सके। भंते! उन देवों का गत-क्षेत्र बहत है? अगत-क्षेत्र बहुत है? गौतम! गत-क्षेत्र बहुत है, अगत-क्षेत्र बहुत नहीं है। गतक्षेत्र से अगतक्षेत्र असंख्येय भाग है और अगत क्षेत्र से गतक्षेत्र असंख्येयगुणा है। गौतम! लोक इतना बड़ा प्रज्ञप्त है।
अलोयस्स परिमाण-पदं
अलोकस्य परिणाम-पदम् ११०. अलोएणं भंते ! केमहालए पण्णत्ते? अलोकः भदन्त ! कियन्महान् प्रज्ञप्तः?
गोयमा! अयण्णं समयखेत्ते पणया- गौतम! इदं समयक्षेत्रं पञ्चचत्वारिंशत् लीसं जोयणसयसहस्साई आयाम- योजनशतसहस्राणि आयामविष्कम्भेण, विक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बाया- एका योजनकोटिः द्विचत्वारिंशच्च शतसह- लीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साई स्राणि त्रिंशच्च सहस्राणि द्वयोः च एकोन- दोण्णि य अउणापन्न-जोयणसए किंचि पञ्चाशदयोजनशते किंचित विशेषाधिके
अलोक का परिमाण-पद ११०. भंते! अलोक कितना बड़ा प्रजप्स है ? गौतम! इस समयक्षेत्र में पैंतालीस लाख योजन लम्बा-चौड़ा है। उसकी परिधि एक करोड़ बयालीस लाख तीस हजार दो सौ उनपचास (१.४२.३०,२४९) योजन से कुछ अधिक है।
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