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________________ श. ११ : उ. १० : सू. १०२-१०४ ४०८ भगवई धम्मत्थिकायस्स पदेसा, नोआगा- प्रदेशाः, अधर्मास्तिकायः नो अधर्मास्तिसत्थिकाए आगासत्थिकायस्स देसे, कायस्य देशः, अधर्मास्तिकायस्य प्रदेशाः, आगासत्थिकायस्स पदेसा, अद्धासमए, नो आकाशास्तिकायः आकाशास्तिकायस्य सेसं तं चेव॥ देशः, आकाशास्तिकायस्य प्रदेशाः, अन्द्रासमयः, शेषं तत चैव। काय का देश नहीं है २. धर्मास्तिकाय का प्रदेश है ३. अधर्मास्तिकाय है. अधर्मास्तिकाय का देश नहीं है ४. अधर्मास्तिकाय का प्रदेश है ५. आकाशास्तिकाय नहीं है, आकाशास्तिकाय का देश है। ६. आकाशास्तिकाय का प्रदेश है 9. अध्या-समय है। शेष पूर्ववत्। १०३. अलोए णं भंते! किं जीवा? अलोकः भदन्त! किं जीवा? जीवदेशाः? जीवदेसा? जीवपदेसा? जीवप्रदेशाः? एवं जहा अत्थिकायउद्देसए अलोयागासे, एवं यथा अस्तिकायोद्देशके अलोकाकाशः, तहेव निरवसेसं जाव सव्वागासे तथैव निरवशेषं यावत् सर्वाकाशः अनन्तअणंतभागूणे॥ भागोनः। १०३. भंते! अलोक क्या जीव है ? जीव-देश हैं? जीव-प्रदेश हैं? इस प्रकार जैसे अस्तिकाय उद्देशक की वक्तव्यता वैसे ही निरवशेष वक्तव्य है यावत् अनन्त भाग से न्यून परिपूर्ण आकाश है। भाष्य १. सूत्र १००-१०३ द्रष्टव्य:२/१३८-१४० का भाष्य। १०४. अहेलोगखेत्तलोगस्स णं भंते! अधोलोकक्षेत्रलोकस्य भदन्त ! एकस्मिन् १०४. 'भंते! अधोलोक क्षेत्रलोक के एक एगम्मि आगासपदेसे किं १. जीवा २. आकाशप्रदेशे किं जीवाः २. जीवदेशाः ३. आकाश-प्रदेश में क्या १. जीव हैं? २. जीवदेसा ३. जीवपदेसा ४. अजी', जीवप्रदेशाः ४. अजीवाः ५. अजीवदेशाः जीव-देश हैं? ३. जीव-प्रदेश हैं? ४. अजीवदेसा ६. अजीवपदेसा? ६. अजीवप्रदेशाः? अजीव हैं? ५. अजीव-देश है? ६. अजीव प्रदेश है? गोयमा! नो जीवा, जीवदेसा वि, गौतम! नो जीवाः, जीवदेशाः अपि, जीव गौतम! जीव नहीं हैं, जीव-देश भी हैं, जीवपदेसा वि, अजीवा वि, अजीवदेसा प्रदेशाः अपि, अजीवाः अपि. अजीवदेशाः जीव-प्रदेश भी हैं, अजीव भी हैं, अजीववि, अजीवपदेसा वि। अपि, अजीवप्रदेशाः अपि। देश भी हैं, अजीव-प्रदेश भी हैं। जे जीवदेसा ते नियम १. एगिं-दियदेसा ये जीवदेशाः ते नियमम् १.एकेन्द्रियदेशाः जो जीव देश हैं वे नियमतः १. एकेन्द्रिय २. अहवा एगिदियदेसा य बेइंदियस्स २. अथवा एकेन्द्रियदेशाः च द्वीन्द्रियस्य के देश है २. अथवा एकेन्द्रिय के देश है देसे, ३. अहवा एगिदियदेसा य । देशः ३. अथवा एकेन्द्रियदेशाः च और द्वीन्द्रिय का देश है ३. अथवा बेइंदियाण य देसा। द्वीन्द्रियाणां च देशाः। एवं मध्यमविरहितः एकेन्द्रिय के देश हैं और द्वीन्द्रिय के देश एवं मज्झिल्लविरहिओ जाव अहवा यावत् अथवा एकेन्द्रियदेशाः च हैं। इस प्रकार मध्य विकल्प विरहित एगिदियदेसा य अणिदियाण य देसा। जे अनिन्द्रियाणां च देशाः। ये जीवप्रदेशाः ते यावत एकेन्द्रिय के देश हैं और अनिन्द्रिय जीवपदेसा ते नियम १. नियमम् १. एकेन्द्रियप्रदेशाः २. अथवा के देश हैं। जो जीव प्रदेश, वे नियमतः १. एगिदियपदेसा २. अहवा एगिदियपदेसा एकेन्द्रियप्रदेशाः च द्वीन्द्रियस्य प्रदेशाः ३. एकेन्द्रिय के प्रदेश हैं २. अथवा एकेन्द्रिय य बेइंदियस्स पदेसा, ३. अहवा अथवा एकेन्द्रियप्रदेशाः च द्वीन्द्रिययाणां च के प्रदेश हैं और द्वीन्द्रिय के प्रदेश है ३. एगिदियपदेसा य बेइंदियाण य पदेसा प्रदेशाः, एवम् आदिमविरहितः यावत् अथवा एकेन्द्रिय के प्रदेश हैं और द्वीन्द्रिय एवं आइल्लविरहिओ जाव पचिंदिएस, पञ्चेन्द्रियेषु, अनिन्द्रियेषु त्रिकभङ्गः। के प्रदेश हैं। इस प्रकार प्रथम विकल्प अणिदिएसु तियभंगो। विरहित यावत् पञ्चेन्द्रिय और अनिन्द्रिय के तीन भंग वक्तव्य है। जे अजीवा ते दुविहा पण्णत्ता, तं ये अजीवाः ते विधा प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जहा-रुवी अजीवा य, अरूवी अजीवा रूपिणः अजीवाः च, अरूपिणः अजीवाः जैसे-रूपी अजीव और अरूपी अजीव। य। रुवी तहेव। जे अरूवी अजीवा ते च। रूपिणः तथैव। ये अरूपिणः अजीवाः रूपी पूर्ववत् वक्तव्य है। जो अरूपी अर्जीव पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-नोधम्मत्थि- ते पञ्चविधाः प्रज्ञप्लाः, तद्यथा-नो हैं, वे पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं जैसेकाए धम्मत्थि-कायस्स देसे, धम्मत्थि- धर्मास्तिकायः धर्मास्तिकायस्य देशः, धर्मास्तिकाय नहीं है, धर्मास्तिकाय का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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