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भगवई
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श. ११ : उ. १० : सू. १००-१०२
लोकालोको जीवाजीव-मार्गणा-पदम् अधोलोकक्षेत्रलोकः भदन्त ! किं १. जीवाः २. जीवदेशाः ३. जीवप्रदेशाः ४. अजीवाः ५. अजीवदेशाः ६. अजीव-प्रदेशाः?
लोयालोए जीवाजीव-मग्गणा-पदं १००. अहेलोयखेत्तलोए णं भंते! किं १. जीवा २. जीवदेसा ३. जीव-पदेसा ४. अजीवा ५. अजीवदेसा ६. अजीवपदेसा? गोयमा! जीवा वि, जीवदेसा वि, जीवपदेसा वि, अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपदेसा वि।
लोक-अलोक जीव-अजीव मार्गणा-पद १००. 'भंते! अधोलोक क्षेत्रलोक क्या १.
जीव हैं २. जीव के देश हैं ३. जीव के प्रदेश हैं ४. अजीव हैं ५. अजीव के देश हैं ६. अजीव के प्रदेश हैं? गौतम ! जीव भी है, जीव के देश भी हैं, जीव के प्रदेश भी हैं। अजीव भी हैं, अजीव के देश भी हैं, अजीव के प्रदेश भी
गौतम! जीवा अपि, जीवदेशा अपि, जीवप्रदेशा अपि, अजीवा अपि, अजीवदेशा अपि, अजीवप्रदेशा अपि।
जे जीवा ते नियमा एगिदिया बेइंदिया ये जीवाः ते नियमात् एकेन्द्रियाः द्वीन्द्रियाः । तेइंदिया चउरिंदिया पंचिंदिया, वीन्द्रियाः चतुरिन्द्रियाः पञ्चेन्द्रियाः, अणिदिया।
अनिन्द्रियाः। जे जीवदेसा ते नियमा एगिदियदेसा जाव ये जीवदेशाः ते नियमात एकेन्द्रियदेशाः अणिंदियदेसा।
यावत् अनिन्द्रियदेशाः। ये जीवप्रदेशाः ते जे जीवपदेसा ते नियमा एगिदिय-पदेसा । नियमात् एकेन्द्रियप्रदेशाः द्वीन्द्रियप्रदेशाः बेइंदियपदेसा जाव अणिंदियपदेसा। यावत् अनिन्द्रियप्रदेशाः।
रसात
जे अजीवा ते दुविहा पण्णत्ता, तं ये अजीवाः ते द्विधा प्रज्ञसाः, तद्यथा-रूपि जहा-रूविअजीवा अरूवी अजीवा य। अजीवाः च, अरूपि अजीवाः च। जे रूविअजीवा ते चउब्विहा पण्णत्ता- ये रूपि अजीवाः ते चतुर्विधाः प्रज्ञसाः, खंधा, खंधदेसा, खंध- पदेसा, तद्यथा-स्कन्धाः, स्कन्धदेशाः, स्कन्धपरमाणुपोग्गला।
प्रदेशाः, परमाणुपुद्गलाः। जे अरूविअजीवा ते सत्तविहा पण्णत्ता, ये अरूपि अजीवाः ते सप्तविधाः प्रज्ञप्ताः, तं जहा-१. नोधम्मत्थिकाए धम्मत्थि- तद्यथा-१. नो धर्मास्तिकायः धर्मास्तिकायस्स देसे २. धम्मत्थिकायस्स कायस्य देशः २. धर्मास्तिकायस्य प्रदेशाः पदेसा ३.नोअधम्मत्थिकाए अधम्मत्थि- ३. नो धर्मास्तिकायः अधर्मास्तिकायस्य कायस्स देसे ४. अधम्मत्थिकायस्स देशः ४. अधर्मास्तिकायस्य प्रदेशा: ५. नो पदेसा ५.नोआगासत्थिकाए आगास- आकाशास्तिकायः आकाशास्तिकायस्य थिकायस्स देसे ६. आगास- देशः ६. आकाशास्तिकायस्य प्रदेशाः ७. त्थिकायस्स पदेसा ७.अद्धासमए॥ अध्वसमयः।
जो जीव हैं वे नियमतः एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय और अनिन्द्रिय हैं। जो जीव के देश है वे नियमतः एकेन्द्रियदेश यावत् अनिन्द्रिय के देश हैं। जो जीव-प्रदेश हैं वे नियमतः एकेन्द्रियप्रदेश, द्वीन्द्रिय-प्रदेश यावत् अनिन्द्रियप्रदेश हैं। जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-रूपी अजीव, अरूपी अजीव। जो रूपी अजीव हैं वे चार प्रकार के प्रजप्त हैं, जैसे-स्कंध, स्कन्ध-देश, स्कन्धप्रदेश, परमाणु-पुद्गल। जो अरूपी- अजीव हैं, वे सात प्रकार के प्रज्ञप्त हैं जैसे-१. धर्मास्तिकाय नहीं है, धर्मास्तिकाय का देश है २. धर्मास्तिकाय का प्रदेश है ३. अधर्मास्तिकाय नहीं है, अधर्मास्तिकाय का देश है १. अधर्मास्तिकाय का प्रदेश है ५. आकाशास्तिकाय नहीं है, आकाशास्तिकाय का देश है ६. आकाशास्तिकाय का प्रदेश है। ७. अध्वा समय है।
१०१. तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते! किं तिर्यगलोकक्षेत्रलोकः भदन्त ! किं जीवाः? १०१. भंते ! तिर्यक्लोक क्षेत्रलोक क्या जीव जीवा? जीवदेसा? जीवपदेसा? जीवदेशाः ? जीवप्रदेशाः।
हैं? जीव-देश हैं ? जीव-प्रदेश हैं? एवं चेव। एवं उड्डलोयखेत्तलोए वि, एवं चैव। एवं ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोकः अपि, पूर्ववत वक्तव्यता, इतना विशेष है-अरूपी नवरं-अख्वी छब्बिहा, अद्धासमयो नवरम्-अरूपिणः षड्विधाः अद्धासमयः अजीव के छह प्रकार है, अध्वा समय नत्थि ॥ नास्ति।
वक्तव्य नहीं है।
१०२. लोए णं भते! किं जीवा? लोकः भदन्त ! किं जीवाः? जीवदेशाः? १०२. भंते! लोक क्या जीव है ? जीव-देश जीवदेसा? जीवपदेसा? जीवप्रदेशाः?
हैं? जीव-प्रदेश हैं? जहा बितियसए अत्थिउद्देसए लोयागासे, यथा द्वितीयशते अस्ति-उद्देशके द्वितीय शतक के अस्तिकाय-उद्देशक में नवरं-अरूवि अजीवा सत्तविहा लोकाकाशः, नवरम्-अरूपि अजीवाः लोकाकाश की भांति वक्तव्यता, इतना पण्णत्ता, तं जहा-धम्म- त्थिकाए सप्तविधा प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-धर्मास्तिकायः विशेष है-अरूपी अजीव सात प्रकार के नोधम्मत्थिकायस्स
देसे, नो धर्मास्तिकायस्य देशः, धर्मास्तिकायस्य प्रज्ञात है, जैसे-१. धर्मास्तिकाय है, धर्मास्ति
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