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श. ११ : उ. १० : सू. ९६-९९
९६. तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते ! किंसठिए पण्णत्ते ?
गोयमा ! झल्लरिसंठिए पण्णत्ते ॥
९७. उड्डलोयखेत्तलोए णं भंते! किंसंठिए पण्णत्ते ?
गोयमा ! उमुइंगाकारसंठिए पण्णत्ते ॥
लोयसंठाण-पदं
९८. लोए णं भंते! किंसंठिए पण्णत्ते ?
गोयमा ! सुपइट्टगसंठिए पण्णत्ते, तं जहा - हेट्ठा विच्छिणे, मज्झे संखित्ते, उप्पि विसाले; अहे पलि यंकसंठिए, मज्झे वरवरविग्ग-हिए, उप्प उद्धमुइंगाकारसंठिए ।
तंसि च णं सासयंसि लोगंसि हेट्ठा विच्छिण्णंसि जाव उप्पि उन्द्रमुइंगाकारसंठियंसि उप्पण्णनाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली जीवे वि जाणइ पासइ, अजीवे वि जाणइपासइ, तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाइसव्वु - दक्खाणंअंत करेइ ॥
९. सूत्र ९८
द्रष्टव्य ५/२५४-२५५ का भाष्य ।
अलोयसंठाण-पदं
९९. अलोए णं भंते! किंसठिए पण्णत्ते ?
गोमा ! झुसरगोलसंठिए पण्णत्ते ॥
४०६
तिर्यक्लोक क्षेत्रलोकः भदन्त ! किं संस्थितः प्रज्ञप्तः ?
गौतम! झल्लरिसंस्थितः प्रज्ञप्तः ।
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ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोकः भदन्त ! किं संस्थितः प्रज्ञप्तः ?
गौतम ! ऊर्ध्वमृदङ्गाकारसंस्थितः प्रज्ञप्तः ।
लोकसंस्थान-पदम् लोकः भदन्त ! किं संस्थितः प्रज्ञप्तः ?
गौतम! सुप्रतिष्ठकसंस्थितः प्रज्ञप्तः, तद् यथा - अधः विच्छिन्नः, मध्ये संक्षिप्तः, उपरि विशालः, अधः पर्यंकसंस्थितः, मध्ये वरवज्रवैग्रहिकः उपरि ऊर्ध्वमृदङ्गाकारसंस्थितः ।
तस्मिन् च शाश्वते लोके अधः विच्छिन्ने यावत् उपरि ऊर्ध्वमृदङ्गाकारसंस्थि उत्पन्नज्ञानदर्शनधरः अर्हतु जिनः केवली जीवान् अपि जानाति पश्यति, अजीवान् अपि जानाति पश्यति, ततः पश्चात् सिध्यति 'बुज्झइ' मुच्यते परिनिर्वाति सर्वदुःखानाम् अन्तं करोति ।
भाष्य
अलोकसंस्थान -पदम् अलोकः भदन्त ! किं संस्थितः प्रज्ञप्तः ?
गौतम ! शुषिरगोलसंस्थितः प्रज्ञप्तः ?
भाष्य
१. सूत्र ९९
अलोक अंतः शुषिर गोलक आकार वाला है। श्वेतांबर परंपरा के अनुसार मेरु पर्वत जंबूद्वीप के मध्य में स्थित है। वह एक हजार योजन पृथ्वीतल से नीचे एवं निन्यानवें हजार योजन पृथ्वीतल से ऊपर है। मेरुपर्वत के सौ योजन का भाग अधोलोक १. सू. १/१०-११ एवं उसका टिप्पण
भगवई
९६. भंते! तिर्यकुलोक क्षेत्रलोक किस संस्थान वाला प्रज्ञम है ?
गौतम ! झल्लरी संस्थान वाला प्रज्ञप्त है।
९७. भंते! ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक किस संस्थान वाला प्रज्ञप्त है ?
गौतम! ऊर्ध्वमृदंगाकार संस्थान वाला प्रज्ञप्त है।
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लोकसंस्थान- पद
९८. भंते! लोक किस संस्थान वाला प्रज्ञप्त है ?
गौतम! सुप्रतिष्ठिक संस्थान वाला प्रज्ञप्त है, जैसे- निम्नभाग में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त और ऊपर विशाल है। वह निम्नभाग में पर्यंक के आकार वाला, मध्य में श्रेष्ठ वज्र के आकार वाला और ऊपर ऊर्ध्वमुख मृदंग के आकार वाला है। उस शाश्वत निम्न भाग में विस्तीर्ण यावत ऊपर ऊर्ध्वमुख मृदंग के आकार वाले लोक में उत्पन्न ज्ञान दर्शन का धारक, अर्हत्, जिन, केवली जीवों को भी जानता देखता है, अजीवों को भी जानता देखता है, उसके पश्चात् वह सिद्ध, प्रशांत, मुक्त, परिनिर्वृत और सब दुःखों का अन्त करता है।
अलोकसंस्थान- पद
९९. भंते! अलोक किस संस्थान वाला प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! शुषिरगोलक संस्थान वाला प्रज्ञप्त है।
में, अठारह सौ योजन तिर्यक्लोक में एवं शेष अठानवें हजार सौ (९८१००) योजन ऊर्ध्वलोक में है। इस प्रकार वह तीनों लोकों का स्पर्श करता है।
दिगंबर परंपरा के अनुसार मेरुपर्वत तिर्यक् लोक में अवस्थित है, तिर्यक् लोक की ऊंचाई एक लाख योजन है।
२. ति प १ / १४९-१६३।
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