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________________ भगवई ९१. खेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहाअहेलोयखेत्तलोए तिरियलोयखेत्त-लोए, उड्डलोयखेत्तलोए ॥ मृदंग ९२. अहेलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहारयणप्पभापुढवि अहेलोयखेत्तलोए जाव असत्तमापुढवि अहेलोयखेत्तलोए ।। ९३. तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जविहे पण्णत्ते, तं जहा - जंबुद्दीवे दीवे तिरियलोयखेत्तलोए जाव सयंभूरमणसमुद्देतिरियलोयखेत्तलोए ॥ ९४. उड्डलोयखेत्तलोए णं भंते! कति विहे पण्णत्ते ? गोयमा ! पन्नरसविहे पण्णत्ते, तं जहासोहम्मकप्पउडलोयखेत्तलोए ईसाणसकुमार - माहिंद बंभलोय लंतयमहासुक्क सहस्सार आणय पाणयआरण- अच्चुयकप्पउडलोय-खेत्तलोए, गेवेज्जविमाणउडलोयखेत्तलोए, अणुत्तरविमाणउड्ढलोयखेत्तलाए, ईसिपब्भारपुढविउडलोयखेत्तलोए । ९५. अहेलोयखेत्तलोए णं भंते! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा! तप्पागारसंठिए पण्णत्ते । १. वाद्य यंत्र प. ४३-४४। Jain Education International ४०५ श. ११ : उ. १० : सू. ९१-९५ एक सादा चमड़ा होता है, जिस पर वादन से पहले तुरना आटे की लोई मध्य भाग में लगा दी जाती है, जिसे वादन के उपरान्त हटा दिया जाता है। लकड़ी के टुकड़े और पत्थर से दाएं पिन्नल को ठोक बजाकर वाघ को मिलाया जाता हैं। तिलोयपण्णत्ति के अनुसार ऊर्ध्वलोक का आकार स्वभाव से वेत्रासन के सदृश है, मध्यलोक का आकार खड़े किए हुए आधे मृदंग के ऊर्ध्वभाग के समान है, ऊर्ध्वलोक का आकार खड़े हुए मृदंग के सदृश है। * क्षेत्रलोकः भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथाअधोलोक क्षेत्रलोकः, तिर्यग्लोक क्षेत्रलोकः, ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोकः । अधोलोक क्षेत्रलोकः भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? गौतम! सप्तविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथारत्नप्रभापृथ्वी अधोलोक क्षेत्रलोकः यावत् अधः सप्तमी पृथ्वी अधोलोकक्षेत्रलोकः । तिर्यगुलोक क्षेत्रलोकः भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! असंख्येयविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथाजम्बूद्वीपे द्वीपे तिर्यग्लो क्षेत्रलोकः यावत् स्वयम्भूरमणसमुद्रः तिर्यग्लोकक्षेत्रलोकः । ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोकः भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञसः ? गौतम ! पञ्चदशविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथासौधर्मकल्पोर्ध्वलोक क्षेत्रलोकः ईशानसनत्कुमार- माहेन्द्र ब्रह्मलोक -लान्तकमहाशुक्र - सहस्रार आनत प्राणत आरणअच्युतकल्पोर्ध्वलोक क्षेत्रलोकः ग्रैवेयकविमानोर्ध्वलोक क्षेत्रलोकः अनुत्तरविमानोर्ध्वलोक क्षेत्रलोकः, ईषत्प्राग्भारपृथ्वीऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोकः । अधोलोक क्षेत्रलोकः भदन्तः किं संस्थितः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! तप्राकारसंस्थितः प्रज्ञप्तः । ९१. भंते! क्षेत्रलोक कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ? गौतम ! तीन प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसेअधोलोक क्षेत्रलोक, तिर्यक्लोक क्षेत्रलोक, ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक । For Private & Personal Use Only ९२. भंते! अधोलोक क्षेत्रलोक कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ? गौतम! सात प्रकर का प्रज्ञप्त है, जैसेरत्नप्रभा पृथ्वी अधोलोक क्षेत्रलोक यावत् अधः ससमा पृथ्वी अधोलोक क्षेत्रलोक। ९३. भंते! तिर्यक्लोक क्षेत्रलोक कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ? गौतम! असंख्येय प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- जम्बूद्वीप द्वीप तिर्यक्लोक क्षेत्रलोक यावत् स्वयंभूरमणसमुद्र तिर्यक्लोक क्षेत्रलोक। ९४. भंते! ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ? गौतम! पंद्रह प्रकार का प्रज्ञप्त हैं, जैसेसौधर्मकल्प ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युतकल्प ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक, ग्रैवेयक विमान ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक, अनुत्तर विमान ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक, ईषत् प्राग्भारपृथ्वी ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक । ९५. भंते! अधोलोक क्षेत्रलोक किस संस्थान वाला प्रज्ञप्त है ? गौतम! डोंगी (छोटी नौका) संस्थान वाला प्रज्ञप्त है। २. तिलोय पण्णत्ति / १३७-१३८। www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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