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________________ मूल खेत्तलोय-पदं ९०. रायगिहे जाव एवं वयासी- कतिविहे णं भंते! लोए पण्णत्ते ? गोयमा ! चउव्विहे लोए पण्णत्ते, तं जहा - दव्वलोए, खेत्तलोए, काल- लोए, भावलोए ॥ दसमो उद्देसो : दसवां उद्देशक १. वाद्य यंत्र पृ. २६-२७। Jain Education International संस्कृत छाया क्षेत्रलोक-पदम् राजगृहः यावत् एवमवादीत्क - कतिविधः भदन्त ! लोकः प्रज्ञप्तः ? १. सूत्र - ९० लोक तीन भागों में विभक्त है-अधोलोक, तिर्यक् लोक और उर्ध्व लोक । गौतम ! चतुर्विधः लोकः प्रज्ञप्तः, तद्यथाद्रव्यलोकः, क्षेत्रलोकः, काललोकः, भावलोकः । लोक का प्रमाण चौदह रज्जु है । अधोलोक का प्रमाण कुछ अधिक सात रज्जु है। तिर्यक् लोक का प्रमाण अठारह सौ योजन है। ऊर्ध्व लोक का प्रमाण कुछ न्यून सप्त रज्जु है। अधोलोक तप्र के संस्थान वाला है। झल्लरी भाष्य मध्यलोक झल्लरी संस्थान वाला है। ऊर्ध्वलोक ऊर्ध्वमुख वाले मृदंग के समान है। झल्लरी- वाद्य यंत्र में झल्लरी की संरचना का विशद वर्णन उपलब्ध है - तश्तरी को बीच में से थोड़ा उभार देने पर झांझ व मतीरे बन जाते हैं। आकार व धातु की भिन्नता के आधार पर हिन्दी व्याख्या For Private & Personal Use Only क्षेत्रलोक- पद ९०. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा- भंते! लोक कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ? गौतम! लोक चार प्रकार का प्रज्ञप्त है. जैसे- द्रव्यलोक, क्षेत्रलोक, काललोक, भावलोक । उनकी अनगिनत किस्में हैं। पांच सेंटीमीटर व्यास के मजीरा या जाल्रा से लेकर तीस से भी अधिक सेंटीमीटर व्यास वाले आसाम के बौरताल तक इनकी सभी किस्में कांसे या पीतल की बनी होती हैं। लगभग समतल प्लेट से लेकर गहरी घंटी की आवृत्तियों तक इन वाद्यों के बीच का उभार भी भिन्न-भिन्न मात्राओं में पाया जाता है। इन सभी किस्मों के नाम भी भिन्न-भिन्न हैं। सामान्यतः छोटे आकार वाली किस्मों को जाल्स, झल्लरी, करताल, ताली, तालम, एलन्ताल, कुम्पित्तालम और अपेक्षाकृत बृहदाकर किस्मों को झांझ, झल्लरी बृहत्तालम् ब्रह्मतालम, बौरताल तथा कुछ अन्य नामों से पुकारा जाता है। ' मृदंग - यह दो मुखवाला अनवद्ध वाद्य है। यह लगभग साठ सेंटीमीटर लंबा होता है। यह बीच से फूला होता है, इसका दायां मुख बाएं मुख की अपेक्षा कुछ छोटा होता है। बायां मुख, जिसे टोपी कहा जाता है, दो पर्तों वाला और अपेक्षाकृत कम जटिल होता है। बाहरी पर्त चमड़े का एक छल्ला होती है और इसके किनारे एक छल्ले से जुड़े होते हैं जिन्हें पिन्नल कहा जाता है। इस पर्व में अन्दर की ओर एक गोल झिल्ली होती है जो बाहरी पर्त के अनुपात में होती है। यह पूरी रचना बायें मुख पर लगी होती है। दाएं मुख में तीन पर्ते होती हैं। दो पर्तों के मध्य में तीसरी पर्त खींच कर लगायी जाती है और दोनों पत्तों के किनारों से चिपका दी जाती है। इस जटिल संरचना जिसे तमिल में वालन तलई कहते हैं, दाएं मुख पर मढ़ दी जाती है। बायीं ओर का मुख टोपी और दायीं ओर का वालन चमड़े की डोरियों से कस कर बांध दिए जाते हैं, जो पिन्नल अथवा छेदों से निकलते और अंदर आते हैं। दाएं मुख पर काले रंग का मिश्रण स्थायी तौर पर चिपका दिया जाता है दूसरी ओर टोपी www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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