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________________ भगवई भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं जहेव उसभदत्तो तव एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, तहेव सव्वं जाव सव्वदुक्खप्पहीणे ।। ८८. भंतेति ! भगवं गोयमे ! समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी- जीवा णं भंते! सिज्झमाणा कयरम्मि संघयणे सिज्झति ? संघयणे गोयमा ! वइरोसभणाराय सिज्झति, एवं जहेव ओववाइए तहेव । संघयणं संठाणं, उच्चत्तं आउयं च परिवसणा । एवं सिद्धिगंडिया निरवसेसा भाणियव्वा जाव अव्वाबाहं सोक्खं, अति सासयं सिद्धा ॥ ८९. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति ।। Jain Education International ४०३ प्रदक्षिणां करोति, कृत्वा वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा नमस्थित्वा एवं यथैव ऋषभदत्तः तथैव प्रव्रजितः तथैव एकादश अङ्गानि अधीते, तथैव सर्वं यावत् सर्वदुःखप्रहीणः । भदन्त ! अयि ! भगवान् गौतमः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीद् - जीवाः भदन्त ! सिध्यन्तः कतरे संघयणे सिध्यन्ति ? गौतम ! वज्रऋषभनाराचसंघवणे सिध्यन्ति, एवं यथैव औपपातिके तथैव । संघयणं संस्थानं उच्चत्वम्, आयुष्यकं च परिवसना । एवं सिद्धिकण्डिका निरवशेषा भणितव्या यावत् अव्याबाधं सौख्यं, अनुभवन्ति शाश्वतं सिद्धाः । तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति । For Private & Personal Use Only श. ११ : उ. ९ : सू. ८७-८९ दांयी ओर से प्रारंभ कर तीन बार प्रदक्षिणा करता है, प्रदक्षिणा कर वंदननमस्कार करता है वंदन - नमस्कार कर इस प्रकार जैसे ऋषभदत्त प्रव्रजित हुआ वैसे ही शिवराजर्षि प्रव्रजित हो गया। उसी प्रकार ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, उसी प्रकार सर्व यावत् सर्व दुःखों को क्षीण करने वाला हो जाता है। ८८. भंते ! भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को इस संबोधन से संबोधित कर वंदन नमस्कार किया, वंदन नमस्कार कर इस प्रकार कहा- भंते! सिद्ध होने वाले जीव किस संहनन में सिद्ध होते हैं ? गौतम ! वज्रऋषभनाराच संहनन में सिद्ध होते हैं। इस प्रकार जैसे औपपातिक की वक्तव्यता है वैसे ही संहनन, संस्थान, उच्चत्व, आयुष्य और परिवसन। इस प्रकार सिद्धिगंडिका (औ. सू. १८५१९५) तक निरवशेष वक्तव्य है यावत् सिद्ध अव्याबाध शाश्वत सुख का अनुभव करते हैं। ८९. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है । www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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