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________________ भगवई २१ गोयमा! सुहमपुढविकाइयएगिदिय जाव गौतम! सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिययावत् परिणए वा, बादरपुढ-विक्काइय जाव परिणतः वा, बादरपृथ्वीकायिक यावत् परिणए वा॥ परिणतः वा। श. ८ : उ. १ : सू. ५३-५५ कायप्रयोग-परिणत है? गौतम! सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत है अथवा बादर पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत है। ५३. जइ सुहमपुढविक्काइय जाव परिणए यदि सूक्ष्मपृथ्वीकायिक यावत् परिणतः किं किं पज्जत्तासुहुमपुढ-विक्काइय जाव पर्याप्तकसूक्ष्मपृथ्वीकायिक यावत्- परिणए? अपज्जत्तासुहमपुढविक्काइय परिणतः? अपर्याप्तकसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जाव परिणए? यावत् परिणतः? ५३. यदि सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत है तो क्या पर्याप्त सूक्ष्म पृीकायिक एकेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत है? अथवा अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत है? गोयमा! पज्जत्तासुहमपुढविक्का-इय गौतम! पर्याप्तकसूक्ष्मपृथ्वीकायिक यावत् जाव परिणए वा, अपज्जत्ता- परिणतः वा, अपर्याप्तकसूक्ष्मपृथ्वीकायिक सुहमपुढविक्काइय जाव परिणए वा। एवं यावत् परिणतः वा। एवं बादरा अपि। एवं बादरा वि। एवं जाव वणस्सइकाइयाणं यावत् वनस्पतिकायिकानां चतुष्ककः भेदः। चउक्कओ भेदो। बेइंदिय-तेइंदिय- द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रियाणां द्विककः चउरिंदियाणं दुयओ भेदो-पज्जत्तगाय भेदःपर्याप्तकाश्च अपर्याप्तकाश्च। अपज्जत्तगा य॥ गौतम! वह पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत है, अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत है। इसी प्रकार बादर पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत की वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक के चार-चार भेदों की वक्तव्यता। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय के दो-दो भेद पर्याप्तक और अपर्यासक की वक्तव्यता। ५४. जइ पंचिंदियओरालियसरीर. यदि पञ्चेन्द्रिय-औदारिकशरीरकाय- ५४. यदि पंचेन्द्रिय औदारिकशरीरकायकायपयोगपरिणए किं तिरिक्ख. प्रयोगपरिणतः किं तिर्यक्योनिक- प्रयोगपरिणत है तो क्या तिर्यक्योनिक जोणियपंचिंदियओरालियसरीर-काय- पञ्चेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोग- पंचेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपयोगपरिणए? मणुस्स-पंचिंदिय जाव। परिणतः? मनुष्यपञ्चेन्द्रिय यावत् परिणत है? अथवा मनुष्य पंचेन्द्रिय परिणए? परिणतः? औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत है? गौतम! तिर्यक्योनिक पंचेन्द्रिय गोयमा! तिरिक्खजोणिय जाव परिणए गौतम ! तिर्यक्योनिक यावत् परिणतः वा, औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत है अथवा वा, मणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए वा॥ मनुष्यपञ्चेन्द्रिय यावत् परिणतः वा। मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिकशरीरकाय प्रयोगपरिणत है। ५५. जइ तिरिक्खजोणिय जाव परिणए यदि तिर्यक्योनिक यावत् परिणतः किं किं जलचरतिरिक्ख-जोणिय जाव जलचरतिर्यक्योनिक यावत् परिणतः? परिणए? थलचर-खहचर जाव स्थल-चर-खेचर यावत् परिणतः? परिणए ? ५५. यदि तिर्यक्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत है तो क्या जलचर तिर्यकयोनिक औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत है? अथवा स्थलचरखेचर तिर्यक्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत है? इस प्रकार तिर्यक्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत यावत् एवं चउक्कओ भेदो जाव खहचराणं॥ एवं चतुष्ककः भेदः यावत् खेचराणाम् वा।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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