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छट्ठो उद्देसो : छट्ठा उद्देशक
मूल
संस्कृत छायाः ५१. पउमे णं भंते! एगपत्तए किं एगजीवे? पद्म भदन्त ! एकपत्रकं किम् एकजीवः? अणेगजीवे?
अनेकजीवः? एवं उप्पलुद्देसगवत्तव्वया निरवसेसा । एवम् उत्पलोद्देशकवक्तव्यता निरवशेषा भाणियव्वा॥
भणितव्या।
हिन्दी अनुवाद ५१. भंते ! एकपत्रक पद्म क्या एक जीव वाला है? अनेक जीव वाला है? इस प्रकार उत्पल उद्देशक की वक्तव्यता सम्पूर्ण रूप से कथनीय है।
५२. सेवं भंते! सेवं भंते! ति॥
तदेवं भदन्त! तदेवं भदन्त ! इति।
५२. भंते ! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही
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