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चउत्थो उद्देसो : चौथा उद्देशक
मूल संस्कृत छाया
हिन्दी अनुवाद ४७. कुंभिए णं भंते! एगपत्तए किं कुम्भिक : भदन्त ! एक पत्रकः किम् ४७. भंते! एकपत्रक कुंभी क्या एक जीव एगजीवे? अणेगजीवे? एकजीवः ? अनेकजीवः?
वाला है ? अनेक जीव वाला है? एव जहा पलासुद्देसए तहा भाणियव्वे, एवं यथा पलाशोद्देशके तथा भणितव्यः, इस प्रकार जैसे पलाश उद्देशक की भांति नवरं-ठिती जहण्णेणं अंतोमुहत्तं नवरं-स्थितिः जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् वक्तव्यता, इतना विशेष है-स्थिति उक्कोसेणं वासपुहत्तं सेसं तं चेव॥ उत्कर्षेण वर्षपृथक्त्वं, शेषं तत् चैव। जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः पृथक्त्व
वर्ष, शेष पूर्ववत्।
४८. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति॥
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति।
४८. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही
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