________________
बीओ उद्देसो : दूसरा उद्देशक
मूल सालुयादिजीवाणं उववायादि-पदं ४२. सालुए णं भंते! एगपत्तए किं एगजीवे? अणेगजीवे? गोयमा! एगजीवे। एवं उप्पलुद्देसगवत्तव्वया अपरिसेसा भाणियव्वा जाव अणंतखुत्तो नवरं-सरीरो-गाहणाजहण्णेणं अंगुलस्स असंखे-ज्जइभागं उक्कोसेणं धणु-पुहत्तं, सेसं तं चेव॥
संस्कृत छाया शालूकादि जीवानाम् उपपातादि-पदम् शालूकं भदन्त ! एकपत्रकं किम् एकजीवः ? अनेकजीवः? गौतम! एकजीवः। एवम् उत्पलोदेशकवक्तव्यता अपरिशेषा भणितव्या यावत् अनन्तकृत्वः, नवरं-शरीरावगाहना जघन्येन अङ्गलस्य असंख्येयतमभागम्, उत्कर्षेण धनुः पृथक्त्वं, शेषं तत् चैव।
हिन्दी अनुवाद शालु आदि जीवों का उपपात आदि-पद ४२. 'भंते! एकपत्रक शालु क्या एक जीव वाला है? अनेक जीव वाला है? गौतम! एक जीव वाला है। इस प्रकार उत्पल-उद्देशक की वक्तव्यता सम्पूर्ण रूप से वक्तव्य है यावत् अनन्त बार, इतना विशेष है-शरीर की अवगाहना जघन्यतः अंगुल का असंख्येय भाग, उत्कृष्टतः पृथक्त्व धनुष, शेष पूर्ववत्।
४३. सेवं भंते! सेवं भंते! ति॥
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति।
४३. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org