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________________ भगवई ४०. अहं भंते! सव्वपाणा, सव्वभूता, सववजीवा, सव्वसत्ता उप्पलमूलत्ताए, उप्पलकंदत्ताए, उप्पलनालाए, उप्पलपत्तत्ताए, उप्पलकेसरत्ताए उप्पलकण्णियत्ताए, उप्पलथिभुगत्ताए उववन्नपुव्वा ? हंता गोयमा ! असतिं अदुवा अनंतखुत्तो ॥ ३८१ अथ भदन्त ! सर्वप्राणाः सर्वभूताः, सर्वजीवाः सर्वसत्त्वाः उत्पलमूलत्वेन, उत्पलकन्दत्वेन, उत्पलनालतया, उत्पलपत्रत्वेन, उत्पलकेशरत्वेन, उत्पलकर्णिकत्वेन, उत्पलथिभुगत्वेन उत्पन्नपूर्वाः ? हन्त ! गौतम ! असकृत् अथवा अनन्तकृत्वः । Jain Education International १. सूत्र - ४० एक स्थान में बार-बार जन्म लेना और अनंत बार जन्म लेना - ये पुनर्जन्म के नियम हैं। इसकी विस्तृत जानकारी के लिए बारहवां शतक द्रष्टव्य है।' ४१. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति । भाष्य १. भ. १२ १३० १५२ २. भ. वृ. ११ / ४० इह केसराणि कर्णिकायाः परितोऽवयवाः । तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त । इति । उत्पल - केसर-कर्णिका के चारों ओर के अवयव,' फूल के बीच का सींका या रेशा | उत्पल कर्णिका - बीज कोश उत्पल थिभुग-उत्पल का वह भाग, जहां से पत्र निलकते हैं। श. ११ : उ. १ : सू. ४०-४१ ४०. भंते! सर्व प्राण, सर्व भूत, सर्व जीव, सर्व सत्त्व, उत्पल मूल के रूप में, उत्पलकंद के रूप में, उत्पल नाल के रूप में, उत्पल - पत्र के रूप में, उत्पल - केसर के रूप में, उत्पल कर्णिका के रूप में और उत्पल स्तबक (शाखा का वह भाग, जहां से पत्र निकलते हैं) के रूप में पहले उपपन्न हुए हैं? हां गौतम! अनेक बार अथवा अनंत बार। ३. बृहद हिंदी शब्द कोश। For Private & Personal Use Only ४१. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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