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श. ११ : उ. १ : सू. ३१-३३
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भगवई
अपेक्षा जघन्यतः दो जन्म (भव ग्रहण) होते हैं, उसका तीसरा जन्म जीवित रहता है। वहां से च्युत होकर पुनः अन्तर्मुहर्त एक उत्पल-पत्र किसी अन्य काय में होता है. उत्कृष्टतः असंख्य जन्म होता है। के रूप में उत्पन्न होता है। इस प्रकार काल की अपेक्षा उत्पल-पत्र
__ कालादेश-एक उत्पल-पत्र का जीव वनस्पति काय से च्युत की जघन्य स्थिति दो अन्तर्मुहूर्त होती है। होकर पृथ्वीकायिक जीव के रूप में उत्पन्न होकर अन्तर्मुहर्त तक ३१. से णं भंते! उप्पलजीवे, आउजीवे, सः भदन्त! उत्पलजीवः अप्जीवः, पुनरपि ३१. भंते ! वह उत्पल जीव अपकायिक जीव पुणरवि उप्पलजीवेत्ति केवतियं कालं उत्पलजीवः इति कियन्त काल सेवेत? के रूप में उत्पन्न होता है, पुनः उत्पल सेवेज्जा? केवतियं कालं गतिरागतिं कियन्तं कालं गत्यागती कुर्यात् ?
जीव के रूप में उत्पन्न होकर कितने काल करेज्जा ?
तक रहता है? कितने काल तक गति
आगति करता है? एवं चेव। एवं जहा पुढविजीवे भणिए तहा एवं चैव। एवं यथा पृथ्वीजीवः भणितः तथा पूर्ववत् वक्तव्यता। इस प्रकार जैसे जाव वाउजीवे भाणियब्वे॥ यावत् वायुजीवः भवितव्यः।
पृथ्वीकायिक जीव की वक्तव्यता, वैसे यावत् वायुकायिक जीव की वक्तव्यता।
३२. से णं भंते! उप्पलजीवे सेसव-णस्स- सः भदन्त ! उत्पलजीवः शेषवनस्पति- ३२. भंते! वह उत्पल जीव शेष वनस्पति इजीवे से पुणरवि उप्पल-जीवेत्ति जीवः, सः पुनरपि उत्पलजीवः इति कायिक जीव के रूप में उत्पन्न होता है, केवतियं कालं सेवेज्जा? केवतियं कालं कियन्तं कालं सेवेत ? कियन्तं कालं वह पुनः उत्पल जीव के रूप में उत्पन्न गतिरागतिं करेज्जा? गत्यागती कुर्यात् ?
होकर कितने काल तक रहता है ? कितने
काल तक गति-आगति करता है ? गोयमा! भवादेसेणं जहण्णेणं दो गौतम! भवादेशेन जघन्येन द्वे भवग्रहणे, गौतम! भव की अपेक्षा जघन्यतः दो भव भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अणंताई उत्कर्षेण अनन्तानि भवग्रहणानि, काला- ग्रहण (जन्म) करता है, उत्कृष्टतः अनंत भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहण्णेणं दो देशेन जघन्येन द्वौ अन्तर्मुहूत्तौ, उत्कर्षण भव-ग्रहण करता है काल की अपेक्षा अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेण अणतं कालं अनन्त कालं तरुकालं, एतावन्तं कालं जघन्यतः दो अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः तरुकालं, एवतियं काल सेवेज्जा, सेवते, एतावन्तं कालं गतिमागतिं करोति। अनंतकाल वनस्पति काल। इतने काल एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा॥
तक रहता है, इतने काल तक गति
आगति करता है।
भाष्य १. सूत्र-३२
अनंत भव ग्रहण और अनंत-काल का निर्देश किया गया है। तरुकाल वनस्पति की कायस्थिति अनंतकाल की है इसलिए इसमें वनस्पति काल का ही सूचक है। ३३. से णं भंते! उप्पलजीवे बेइंदिय-जीवे, सः भदन्त! उत्पलजीवः द्वीन्द्रियजीवः, ३३. भंते ! वह उत्पल जीव द्वीन्द्रिय जीव के पुणरवि उप्पलजीवेत्ति केवतियं कालं पुनरपि उत्पलजीवः इति कियन्तं कालं रूप में उत्पन्न होता है, पुनः उत्पल जीव सेवेज्जा? केवतियं कालं गतिरागति सेवेत ? कियन्तं कालं गत्यागती कुर्यात् ? के रूप में उत्पन्न होकर कितने काल तक करेज्जा ?
रहता है? कितने काल तक गति-आगति
करता है? गोयमा! भवादेसेणं जहण्णेणं दो गौतम! भवादेशेन जघन्येन द्वे भवग्रहणे, गौतम! भव की अपेक्षा जघन्यतः दो भवभवग्गहणाई, उक्कोसेणं संखेज्जाई उत्कर्षेण संख्येयानि भवग्रहणानि, काला- ग्रहण करता है, उत्कृष्टतः संख्येय भवभवग्गहणाई, कालादेसेणं जहण्णेणं दो देशेन जघन्येन द्वौ अन्तर्मुहूर्तों, उत्कर्षण ग्रहण करता है। काल की अपेक्षा अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं संखेन्जं कालं, संख्येयं कालं एतावन्तं कालं सेवते. जघन्यतः दो अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं एतावन्तं कालं गत्यागती करोति। एवं संख्येय काल। इतने काल तक रहता है, गतिरागतिं करेज्जा। एवं तेइंदियजीवे, त्रीन्द्रियजीवः, एवं चतुरिन्द्रियजीवः अपि। इतने काल तक गति-आगति करता है। एवं चउरिंदियजीवे वि॥
इसी प्रकार त्रीन्द्रिय जीव की वक्तव्यता। इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीव की
वक्तव्यता। १. भ.७.११/३०. भवादसणं ति भवप्रकारेण भवमाश्रित्य इत्यर्थः, जहण्णेण पृथ्वीत्वेनान्तर्मुहूर्न पुनरुत्पलत्वेनान्तर्मुहूर्त्तमित्येवं कालादेशेन जघन्यतो वे
दो भवग्गहणाई ति एकं पृथ्वीकायिकत्वे नतो द्वितीयमुत्पलत्वे ततः परं अन्तर्मुहूर्ते इति। मनुष्यादिति गति गच्छेदिति। कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतो हुत्त त्ति २. पण्ण, १८/१४|
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