________________
श. ८ : उ. १ : सू. ४२,४३
वीससापरिणति-पदं
४२. वीससापरिणया णं भंते! पोग्गला कतिविहा पण्णत्ता?
रस
गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता, तं जहावण्णपरिणया, गंधपरिणया, परिणया, फासपरिणया, संठाणपरिणया । जे वण्णपरिणया ते पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - कालवण्णपरिणया जाव सुक्किल - वण्णपरिणया । जे गंधपरिणया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहासुब्भि-गंधपरिणया,
दुब्भिगंध -
परिणया ।
जे रसपरिणया ते पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - तित्तरसपरिणया जाव महुररसपरिणया । जे फासपरिणया ते अट्ठविहा पण्णत्ता, तं जहा - कक्खडफासपरिणया जाव लुक्ख फासपरिणया ।
जे संठाणपरिणया ते पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - परिमंडलसंठाण-परिणया जाव आयतसंठाण-परिणया । जे वण्णओ कालवण्ण-परिणया ते गंधओ सुब्भिगंध- परिणया वि, दुब्भिगंधपरिणया वि। एवं जहा पण्णवणाए तहेव निरवसेसं जाव जे संठाणओ आयतसंठाण-परिणया ते वण्णओ कालवण्ण-परिणया वि जाव लुक्खफास-परिणया वि ॥
४३. एगे भंते! दव्वे किं पयोग - परिणए ? मीसापरिणए ? वीससा परिणए ?
गोयमा ! पयोगपरिणए वा, मीसापरिणए वा, वीससापरिणए वा ।।
१. सूत्र - ४२
छत्तीसवें सूत्र में वर्ण आदि का निरूपण किया गया है। वह जीव कृत प्रायोगिक परिणमन का निरूपण है। एगं दव्वं पडुच्च पोग्गलपरिणति-पदं
१. द्रष्टव्य जैन दर्शन मनन और मीमांसा पृ. ३३०|
Jain Education International
१८
विस्रसापरिणति-पदम् विस्रसापरिणताः भदन्त। पुद्गलाः कतिविधाः प्रज्ञप्ताः ?
गौतम! पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-वर्णपरिणताः, गन्धपरिणताः, रसपरिणताः, स्पर्शपरिणताः, संस्थानपरिणताः । ये वर्णपरिणताः ते पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथाकालवर्णपरिणताः यावत् शुक्लवर्ण
परिणताः ।
ये गन्धपरिणताः ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद् यथा - सुरभिगन्धपरिणताः, दुरभिगन्धपरिणताः ।
ये रसपरिणताः ते पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः, तद् यथा- तिक्तरसपरिणताः यावत् मधुररसपरिणताः । ये स्पर्शपरिणताः ते अष्टविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-कक्खटस्पर्शपरिणताः यावत् रुक्षस्पर्शपरिणताः । ये संस्थानपरिणताः ते पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- परिमण्डलसंस्थानपरिणताः यावत् आयतसंस्थानपरिणताः । ये वर्णतः कालवर्ण-परिणताः ते गन्धतः सुरभिगन्धपरिणताः अपि दुरभिगन्धपरिणताः अपि । एवं यथा प्रज्ञापनायां तथैव निरविशेषं यावत् ये संस्थानतः आयतसंस्थानपरिणताः ते वर्णतः कालवर्णपरिणताः अपि यावत् रुक्षस्पर्शपरिणताः अपि ।
भाष्य
है ।
एकं द्रव्यं प्रतीत्य पुद्गलपरिणति-पदम् एकं भदन्त ! द्रव्यं किंप्रयोगपरिणतम् ? मिश्रपरिणतम् ? विस्रसापरिणतम् ?
गौतम ! प्रयोगपरिणतं वा, मिश्रपरिणतं वा, विस्रसापरिणतं वा ।
भगवई
प्रस्तुत सूत्र में पुद्गल द्रव्य के स्वाभाविक परिणमन का निरूपण
For Private & Personal Use Only
विस्रसा परिणति पद
४२. ' भन्ते ! विस्रसा परिणत पुद्गल कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! विस्रसा परिणत पुद्गल पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- वर्णपरिणत, गंधपरिणत, रसपरिणत, स्पर्शपरिणत, संस्थानपरिणत। जो वर्ण परिणत हैं वे पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- कालवर्ण परिणत यावत् शुक्लवर्ण परिणत। जो गंध परिणत हैं वे दो प्रकार के प्रज्ञस हैं, जैसे सुगंधपरिणत और दुर्गन्धपरिणत ।
जो रस परिणत हैं वे पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- तिक्तरसपरिणत यावत् मधुररसपरिणत। जो स्पर्श परिणत हैं वे आठ प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- कठोर स्पर्शपरिणत यावत् रूक्षस्पर्शपरिणत | जो संस्थान परिणत हैं वे पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- परिमण्डल संस्थान परिणत यावत् आयत संस्थान परिणत। जो वर्ण से कालवर्णपरिणत हैं वे गन्ध से सुगंध परिणत भी हैं, दुर्गन्धपरिणत भी हैं। जैसे प्रज्ञापना में है वैसे ही अविकल रूप में वक्तव्य हैं यावत् जो संस्थान से आयत संस्थान परिणत हैं वे वर्ण से कालवर्ण परिणत भी हैं यावत रूक्षस्पर्श परिणत भी हैं।
एक द्रव्य की अपेक्षा पुद्गल परिणत -
पद
४३. 'भन्ते ! एक द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत है? मिश्र परिणत है? अथवा विस्रसा परिणत है?
गौतम! वह प्रयोगपरिणत है अथवा मिश्रपरिणत है अथवा विस्रसा परिणत है।
www.jainelibrary.org