SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 397
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवई श. ११ : उ. १ : सू. १७.१८ कतिफासा पण्णता? प्रज्ञप्ताः ? वाले प्रजप्त है? गोयमा! पंचवण्णा, पंचरसा, दुगंधा, गौतम ! पञ्चवर्णाः, पञ्चरसाः, द्विगन्धाः, गौतम! उन जीवों के शरीर पांच वर्ण.पांच अट्ठफासा पण्णत्ता। ते पुण अप्पणा अष्टस्पर्शाः प्रज्ञप्ताः। ते पुनः आत्मना रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श वाले प्रज्ञप्त अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा अवर्णाः, अगन्धाः, अरसाः, अस्पर्शाः हैं। वे जीव अपने स्वरूप से वर्ण. गंध. रस पण्णत्ता॥ प्रज्ञसाः। और स्पर्श रहित प्रज्ञाप्त है। भाष्य १. सूत्र १७ और स्पर्श होते हैं। उत्पन पत्र का जीव अमूर्त है इसलिए उसमें वर्ण, प्रस्तुत सूत्र में शरीर और आत्मा की भिन्नता का प्रतिपादन गंध, रस और स्पर्श नहीं हैं।' है। उत्पल पत्र का शरीर पौगलिक है इसलिए उसमें वर्ण, गंध, रस १८. ते णं भंते! जीवा किं उस्सा-सगा? ते भदन्त ! जीवाः किम् उच्छ्वासकाः? १८. भंते ! वे जीव उच्छवास लेने वाले हैं ? निस्सासगा? नोउस्सास- निस्स- निःश्वासकाः? नो उच्छ्वासनिःश्वा- निःश्वास लेने वाले हैं? उच्छवाससिगा? सकाः? निःश्वास नहीं लेने वाले हैं? गोयमा! १. उस्सासए वा २. निस्सासए गौतम! १. उच्छवासक: वा २. निःश्वा- गौतम! १. उच्छवास लेने वाला भी है २. वा ३. नोउस्सासनि-स्सासए वा ४. सकः वा ३.नो उच्छवासनिःश्वासकः वा निःश्वास लेने वाला भी है ३. उच्छवास उस्सासगा वा ५. निस्सासगा वा ६. ४. उच्छवासकाः वा ५. निःश्वासकाः वा निःश्वास नहीं लेने वाला भी है ४. नोउस्सास-निस्सासगा वा १-४.६.नो उच्छ्वासनिःश्वासकाः वा १. उच्छवास लेने वाले भी हैं ५. निःश्वास अहवा उस्सासए य निस्सासए य १-४. ४. अथवा उच्छ्वासकः च निःश्वासकः च लेने वाले भी हैं ६. उच्छवास निःश्वास अहवा उस्सासए य नोउस्सास- १.४. अथवा उच्छ्वासकः च नो नहीं लेने वाले भी हैं १-४. अथवा निस्सासए य१-४.अहवा निस्सासए य उच्छवासनिःश्वासकः च १-४. अथवा उच्छवास लेने वाला है और निःश्वास लेने नोउस्सासनिस्सासए य १-८. अहवा निःश्वासकः च नो उच्छवासनिःश्वासकः वाला है १-४. अथवा उच्छवास लेने वाला उस्सासए य निस्सासए य नोउस्सा- च १-८. अथवा उच्छवासकः च है और उच्छवास निःश्वास नहीं लेने सनिस्सासए य-अट्ठ भंगा। एते छन्वीसं निश्वासकः च नो उच्छवासनिःश्वासकः वाला है १-४. निःश्वास लेने वाला है और भंगा भवंति॥ च-अष्ट भङ्गाः। एते षड़विंशतिः भङ्गाः उच्छवास-निःश्वास नहीं लेने वाला है १. भवन्ति। ८. अथवा उच्छवास लेने वाला है. निःश्वास लेने वाला है और उच्छवासनिःश्वास नहीं लेने वाला है ये आठ भंग हैं। इस प्रकार छब्बीस भंग होते हैं। भाष्य १.सूत्र-१८ से उत्पल पत्र जीव को उच्छवास निःश्वास से शुन्य बतलाया गया अपर्याप्त अवस्था में उच्छवास निःश्वास नहीं होता, इस अपेक्षा है। द्रष्टव्य यंत्र | इक-सांयागिक भंग ६ । त्रि-सायागिक भंग ८ २ | ३ उ. | नि. | ३ १ | | | १२ २० । १ ac ना. | ३ द्वि-सांयोगिक भंग १२ Forma|NEarma-jor Plao-a-a-mmmm । । २२ । २३ । २४ २५ । १५ १ ३ । १.भ.प.१११-शरीगण्येव नेषां पंचवर्णादीनि ते पुनरुत्पलजीवाः अप्पणनि२. वही.११.१८-नो उस्सासनिस्सासपनि पर्याप्तावस्थायाम। स्वरूपेण सवर्णा वर्णादिवर्जिताः अमूर्तत्वानेषामिति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy