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________________ भगवई ३७१ श.११ : उ. १: सू. ६.११ भाष्य १.सूत्र ५ पर होने वाले कमल की नाल की अपेक्षा से इतनी बड़ी अवगाहना वनस्पति का शरीर औदारिक शरीर है। औदारिक शरीर की बतलाई है। अभयदेवसूरि ने लवण समुद्र का नाम लिए बिना इस उत्कृष्ट अवगाहना सातिरेक एक हजार योजन है। वह वनस्पति की तथ्य का प्रतिपादन किया है।' अपेक्षा से बतलाई गई है। आचार्य मलयगिरि ने लवण समुद्र के घाट ६. ते ण भंते! जीवा नाणा-वरणिज्जस्स ते भदन्त ! जीवाः ज्ञानावरणस्य कर्मणः किं कम्मस्स किं बंधगा? अबंधगा? बन्धकाः? अबन्धकाः? गोयमा! नो अबंधगा, बंधए वा, बंधगा। गौतम! नो अबन्धकाः. बन्धकः वा, वा॥ बन्धकाः वा। ६. भंते! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के बंधक हैं ? अबंधक है? गौतम! अबंधक नहीं है, बंधक है (एक वचन) अथवा बंधक हैं (बहुवचन)। ७. एवं जाव अंतराइयस्स, नवरं- आउयस्स-पुच्छा। एवं यावत् आन्तरायिकस्य, नवरं. आयुष्यकस्य-पृच्छा। गोयमा! १.बंधए वा २. अबंधए वा ३. गौतम! १. बन्धकः वा २. अबन्धकः वा ३. बंधगा वा ४. अबंधगा वा ५. अहवा बंधए । बन्धकाः वा ४. अबन्धकाः वा ५. अथवा य अबंधए य ६. अहवा बंधए य अबंधगा। बन्धकश्च अबन्धकश्च ६. अथवा य ७. अहवा बंधगा य अबंधए य ८. बन्धकश्च अबन्धकाश्च ७. अथवा अहवा बंधगा य अबंधगा य-एते अट्ठ। बन्धकाश्च अबन्धकश्च ८. अथवा भंगा॥ बन्धकाश्च अबन्धकाश्च-एते अष्ट भङ्गाः। ७. इस प्रकार यावत् आंतरायिक कर्म की वक्तव्यता, इतना विशेष है-आयुष्य कर्म की पृच्छा। गौतम ! १.बंधक भी है २. अबंधक भी है ३. बंधक भी हैं ४. अबंधक भी हैं ५. अथवा बंधक है और अबंधक है ६. अथवा बंधक है और अबंधक हैं 9. अथवा बंधक हैं और अबंधक है ८. अथवा बंधक हैं और अबंधक हैं-आयुष्य कर्म के ये आठ भंग हैं। ८. ते णं भंते! जीवा नाणा-वरणिज्जस्स कम्मस्स किं वेदगा? अवेदगा? गोयमा! नो अवेदगा. वेदए वा, वेदगा वा। एवं जाव अंतराइयस्स॥ ते भदन्त ! जीवा ज्ञानावरणीयस्य कर्मणः किं वेदकाः? अवेदकाः? गौतम! नो अवेदकाः, वेदकः वा, वेदकाः वा। एवं यावत् आन्तरायिकस्य। ८. भंते! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के वेदक हैं? अवेदक हैं? गौतम! वे अवेदक नहीं है, वेदक है अथवा वेदक हैं। इस प्रकार यावत् आन्तरायिक की वक्तव्यता। ९. ते णं भंते! जीवा किं सायावेदगा? असायावेदगा? गोयमा! सायावेदए वा, असायावेदए वा-अट्ठभंगा। ते भदन्त! जीवाः किं सातवेदकाः? ९. भंते! वे जीव सातावेदक हैं? असाताअसातवेदकाः? वेदक हैं! गौतम! सातवदेकः वा, असातवेदकः । गौतम ! सातावेदक है, अथवा असातावेदक वा-अष्ट भङ्गाः। है-आठ भंग वक्तव्य हैं। १०. ते णं भंते! जीवा नाणा-वरणिज्जस्स ते भदन्त ! जीवाः ज्ञानावरणीयस्य कर्मणः १०. भंते! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के उदय कम्मस्स किं उदई ? अणुदई? किम् उदयिनः? अनुदयिनः ? । वाले हैं ? अनुदय वाले हैं? गोयमा! नो अणुदई, उदई वा, उदइणो गौतम ! नो अनुदयिनः, उदयी वा. उदयिनः गौतम ! वे अनुदय वाले नहीं हैं, उदय वाला वा। एवं जाव अंतराइयस्स॥ वा! एवं यावत् आन्तरायिकस्य। है अथवा उदय वाले हैं। इस प्रकार यावत् आंतरायिक की वक्तव्यता। ११. ते णं भंते! जीवा नाणा-वरणिज्जस्स ते भदन्त ! जीवाः ज्ञानावरणीयस्य कर्मणः ११. भंते! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के १. प्रज्ञा. वृ.प.४१३-ष लवणसमुद्रगोतीर्थादिषु पद्मनालाद्यधिकृत्यावसातव्या, अन्यत्रतावत आदारिकशरीरस्यासंभवान। २. भ. वृ. ११/५-तथाविधसमुद्रगोतीर्थकादाविदमुच्चत्वं उत्पलस्यावसेयम्। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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