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________________ एक्कारसम् सतं : ग्यारहवां शतक पढमो उद्देसो : पहला उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद संगहणी गाथा संग्रहणी गाथा संग्रहणी गाथा १. उप्पल २. सालु ३. पलासे उत्पलः शालूकपलाशे, १. उत्पल २. शालु ३. पलाश ४. कुंभी ५. ४. कुंभी ५. नाली य ६.एउम कुम्भी नाली च पद्म कर्णी च। नाड़ीक ६. पद्म ७. कर्णिका ८. नलिन ९. ७. कण्णी या नलिनं शिवः लोकः शिव १०. लोक-ये दस तथा काल ग्यारहवां ८. नलिण ९. सिव १०. लोग कालालभिके दश द्वौ च एकादशे।। और आलभिका बारहवां उद्देशक है। ११,१२.कालालभिय दस दो य एक्कारे॥१॥ उप्पलजीवाणं उववायादि-पदं उत्पलजीवानाम् उपपातादि-पदम् उत्पल जीवों का उपपात आदि-पद १. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव। तस्मिन् काले तस्मिन् समये राजगृहः यावत् १.'उस काल और उस समय राजगृह नगर पज्जुवासमाणे एवं वयासी- उप्पले णं पर्युपासीनः एवमवादीत्-उत्पलं भदन्त! यावत् पर्युपासना करते हुए गौतम ने इस भंते! एगपत्तए किं एगजीवे? अणेगजी- एकपत्रकं किम् एकजीवः? अनेकजीवः? प्रकार कहा-भंते! एकपत्रक उत्पल एक वे? जीव वाला है ? अनेक जीव वाला है ? गोयमा! एगजीवे नो अणेगजीवे। तेण गौतम! एकजीवः, नो अनेकजीवः। तेन परं गौतम! एक जीव वाला है, अनेक जीव परं जे अण्णे जीवा उववज्जंति ते णं नो ये अन्ये जीवाः उपपद्यन्ते ते नो एकजीवाः वाला नहीं है। प्रथम पत्र के पश्चात् जो एगजीवा अणेगजीवा॥ अनेकजीवाः। अन्य जीव-पत्र उत्पन्न होते हैं, वे एक जीव वाले नहीं हैं, अनेक जीव वाले हैं। भाष्य १.सूत्र १ उत्तरवर्ती अवस्था है। उसमें अनंत जीव उत्पन्न हो जाते हैं। वे अपनी प्रस्तुत आलापक में वनस्पति के जीवों की उत्पत्ति के विषय में स्थितिक्षय के कारण मर जाते हैं। वह मूल जीव उन अनंत जीवों के कुछ पहलुओं का विमर्श किया गया है। उत्पल के एक पत्ते में एक जीव शरीरों को अपने शरीर रूप में परिणत कर लेता है और पत्र अवस्था में होता है, यह सूत्रकार का अभिमत है। वृत्तिकार ने इस विषय में एक आ जाता है। इसीलिए उत्पल पत्र में एक जीव होने का निर्देश किया सूचना दी है। यहां किसलय अवस्था के बाद का पत्र विवक्षित है।' गया है। पत्र की पूर्ववर्ती अवस्था किसलय में अन्य जीव उत्पन्न होते जयाचार्य ने इसकी स्पष्ट व्याख्या की है-किसलय अनंत जीवात्मक हैं और उसके आश्रय में अन्य अनेक जीव उत्पन्न होते हैं, किंतु मूल होता है। वह पत्र के रूप में आकर एक जीव वाला हो जाता है।' पत्र का उत्पादक जीव एक ही होता है। इस अपेक्षा से उत्पल के एक प्रज्ञापना के अनुसार बीज का उत्पादक जीव एक ही होता है। वह पत्र को एक जीव वाला बतलाया गया है।' अंकुरित अवस्था में अकेला ही रहता है। किसलय अवस्था उसकी । १. भ. वृ. ११/१-एकपत्रकं चेह किसलयावस्थाया उपरि द्रष्टव्यम्। (ख) पण्ण.१/४८/५१-५२२. भ. जो. ३/२२५/११-१२-- बीए जोणिब्भूए जीवो वक्कमइ सो व अपणो वा। ए किसलय नव अंकूर ने अवस्था थी ऊपर भूर। जो वि य मूले जीवो, सो वि य पत्ते पढमताए।। किसलय सुओ तो छ अनंतकाय, सूआं पछै एक पत्र थाय॥ सव्वोवि किसलओ खलु, उग्गममाणो अणंतओ भणिओ। एक पत्रपणां थी विशेष एक जीव पिण नहीं छे अनेक। सो चेव विवड्ढतो, होइ परित्तो अणंतो वा।। उत्पल शब्दे ताय, नीलोत्पलादि कहाय ।। (ग) प्रज्ञा, वृ. प. ३८-इह बीजजीवोन्यो वा बीजमूलत्वेनोत्पद्य तंदुत्सूत्रावस्था ३. (क) भ. वृ. ११/१-एग जीवे ति यदा हि एकपत्रावस्थं तदैकजीवं तत्, यदा करोति ततस्तदन्तरभाविनी किसलयावस्थां नियमतोऽनंता जीवाः कुर्वन्ति। नु द्वितीयादिपत्रं तेन समारब्धं भवति तदा नैकपत्रावस्था तस्येति बहवो पुनश्च तेषु स्थितिक्षयात् परिणतेषु असावेव मूलजीवोऽनन्नजीवतर्नु जीवास्तत्रोत्पद्यन्त इति। स्वशरीरतया परिणमय्य तावद्वर्धत यावत् प्रथमपत्रमिति न विरोधः। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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