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भगवई
अज्जो! अट्ट अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, आर्य! अष्ट अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तं जहा-कण्हा, कण्हराई, रामा, राम- तद्यथा--कृष्णा. कृष्णारात्री, रामा, रक्खिया, वसू, वसुगुत्ता, वसुमित्ता, रामरक्षिता, वसु, वसुगुप्ता, वसुमित्रा, वसुंधरा। तत्थ णं एगमेगाए देवीए । वसुधरा। तत्र एकैकस्याः देव्याः षोडशसोलस-सोलस देवीसहस्सं परिवारे, षोडश देवीसहस्रं परिवारः, शेषं यथा सेसं जहा सक्कस्स॥
शक्रस्य।
श. १० : उ. ५ : सू. ९६-९८ आर्यो! आठ अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-कृष्णा, कृष्णरात्रि, रामा, रामरक्षिता, वसु, वसुगुप्ता, वसुमित्रा, वसुंधरा। उनमें प्रत्येक देवी के सोलह सोलह हजार देवी का परिवार है, शेष शक्र की भांति वक्तव्यता।
९७. ईसाणस्स णं भंते! देविंदस्स ईशानस्य भदन्त ! देवेन्द्रस्य देवराजस्य ९७. भंते! देवराज देवेन्द्र ईशान के देवरण्णो सोमस्स महारण्णो कति सोमस्य महाराजस्य कति अग्रमहिष्यः- लोकपाल महाराजा सोम के कितनी अग्गमहिसीओ-पुच्छा। पृच्छा ।
अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं-पृच्छा। अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्ण- आर्य! चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रजप्त हैं. जैसेत्ताओ, तं जहा-पुहवी, राई, रयणी, तद्यथा-पृथिवी, रात्री, रत्नी, विद्युत्। तत्र पृथ्वी, रात्रि, रतनी, विद्युत्। उनमें प्रत्येक विज्जू। तत्थ णं एगमेगाए देवीए एगमगं एकैकस्याः देव्याः एकैकं देवीसहसं देवी के एक-एक हजार देवी का परिवार देवीसहस्सं परिवारे, सेसं जहा सक्क- परिवारः, शेषं यथा शकस्य लोकपालानाम् है, शेष शक्र के लोकपाल की भांति वक्तस्स लोगपालाणं, एवं जाव वरुणस्स, एवं यावत् वरुणस्य, नवरं-विमानानि यथा व्यता। इसी प्रकार यावत् वरुण की नवरं-विमाणा जहा चउत्थसए, सेसं तं चतुर्थशते, शेषं तच्चैव यावत् नो चैव वक्तव्यता, इतना विशेष है-विमान चतुर्थ चेव जाव नो चेवणं मेहणुवत्तियं ।। मैथुनप्रत्ययम्।
शतक की भांति वक्तव्य है, शेष पूर्ववत् यावत् मैथुन रूप भोग का नहीं।
९८. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति॥
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति।
९८. भंते ! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही
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