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________________ श. १० : उ. ५ : सू. ९०-९६ महग्गहाणं भाणि यव्वं जाव भा वकेउस्स, नवरं - वडेंसगा सीहासणाणि य सरिस नामगाणि, सेसं तं चेव ॥ ९२. सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरण्णो- पुच्छा । अज्जो ! अट्ट अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - पउमा, सिवा, सची, अंजू, अमला, अच्छरा, नवमिया, रोहिणी । तत्थ णं एगमेगाए देवीए सोलस-सोलस देवीसहस्सा परिवारो पण्णत्तो ॥ ९३. पभू णं ताओ एगमेगा देवी अण्णाई सोलस - सोलस देवीसह स्साई परिवारं विउव्वित्तए ? एवामेव सपुव्वावरेणं अट्ठावीसुत्तरं देवीसयसहस्सं । सेत्तं तुडिए । ९४. पभू णं भंते! सक्के देविंदे देवराया सोहम्मे कप्पे, सोहम्मवडेंस विमाणे, सभाए सुहम्माए, सक्कंसि सीहासांसि सिद्धिं दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ? सेसं जहा चमरस्स, नवरं - परियारो जहा मोउद्देस ॥ ९५. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरणो सोमस्स महारण्णो कति अग्गमहिसीओ- पुच्छा । अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - रोहिणी, मदणा, चित्ता, सोमा । तत्थ णं एगमेगाए देवीए एगमेगं देवीसहस्सं परिवारे, सेसं जहा चमर- लोगपालाणं, नवरं - सयंप विमाणे, सभाए सुहम्माए, सोमंसि सीहासणंसि, सेसं तं चेव । एवं जाव वेसमणस्स, नवरं - विमाणाई जहा ततियसए ॥ ९६. ईसाणस्स णं भंते ! - पुच्छा । Jain Education International ३६० महाग्रहाणां भणितव्यं यावत् भाव-केतोः, नवरम्-अवतंसकाः सिंहासनानि सदृशनामकानि. शेषं तच्चैव । शक्रस्य भदन्त ! देवेन्द्रस्य देवराजस्यपृच्छा । आर्य! अष्ट अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद् यथा- पद्मा, शिवा, शची. अंजू, अमला, अप्सरा, नवमिका, रोहिणी । तत्र एकैकस्याः देव्याः षोडश - षोडश देवीसहस्राणि परिवारः प्रज्ञप्तः । च प्रभुः ताः एकैका देवी अन्यानि षोडशषोडश देवीसहस्राणि परिवारं विकर्तुम् ? एवमेव सपूर्वापरेण अष्टाविशत्युत्तरं देवशतसहस्रम् । तदेतत् 'तुडिए' । ९४. प्रभुः भदन्त ! शक्रः देवेन्द्रः देवराजा सौधर्मे कल्पे, सौधर्मावतंसके विमाने, सभायां सुधर्मायां शक्रे सिंहासने 'तुडिएणं' सार्धं दिव्यानि भोगभोगानि भुञ्जानः विहर्तुम् । शेषं यथा चमरस्य, नवरं - परिवारः यथा मोयोद्देशके । शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य सोमस्य महाराजस्य कति अग्रमहिष्यः - पृच्छा । आर्य! चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद् यथा- रोहिणी, मदना, चित्रा, सोमा । तत्र एकैकस्याः देव्याः एकैकं देवीसहस्रं परिवारः शेषं यथा चमरलोकपालानाम्, नवरं स्वयंप्रभे विमाने, सभायां सुधर्मायां, सोमे सिंहासने, शेषं तच्चैव । एवं यावत् वैश्रमणस्य. नवरं विमानानि तृतीयशते । यथा ईशानस्य भदन्त ! - पृच्छा । For Private & Personal Use Only भगवई वक्तव्यता। इसी प्रकार अठासी महाग्रहों की वक्तव्यता यावत् भावकेतु की वक्तव्यता, इतना विशेष है-अवतंसक और सिंहासन सदृश नाम वाले हैं, शेष पूर्ववत् । ९२. भंते! देवराज देवेन्द्र शक्र की पृच्छा । आर्य! आठ अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे- पद्मा, शिवा, शची. अंजू, अमला, अप्सरा, नवमिका, रोहिणी । उनमें प्रत्येक देवी के सोलह-सोलह हजार देवी का परिवार प्रज्ञप्त है। ९३. क्या एक देवी अन्य सोलह हजार देवी परिवार की विक्रिया करने में समर्थ है ? हां, है। इसी प्रकार पूर्व अपर सहित एक लाख अट्ठाइस हजार देवियों की वक्तव्यता । यह है अंतःपुर की वक्तव्यता । ९४. भंते! देवराज देवेन्द्र शक्र सौधर्म- कल्प में, सौधर्मावतंसक विमान में, सभा सुधर्मा में शक्र सिंहासन पर अंतःपुर के साथ दिव्य भोगाई भोगों को भोगते हुए विहरण करने में समर्थ है ? चमर की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है- परिवार की मोक उद्देशक की भांति वक्तव्यता। ९५. देवराज देवेन्द्र शक्र के लोकपाल महाराज सोम के कितनी अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं-पृच्छा। आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-रोहिणी, मदना, चित्रा, सोमा । उनमें प्रत्येक देवी के एक-एक हजार देवी का परिवार है। शेष चमरलोकपाल की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है स्वयंप्रभ विमान, सभा सुधर्मा, सोम सिंहासन। शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार यावत् वैश्रमण की वक्तव्यता, इतना विशेष है-विमान तृतीय शतक (३ / २५०-५१ ) की भांति वक्तव्य है। ९६. भंते! ईशान की पृच्छा । www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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