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________________ भगवई ३५९ अज्जो! चतारि अग्गमहिसीओ आर्य! चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद् पण्णत्ताओ, तं जहा-रोहिणी, नवमिया, यथा-रोहिणी, नवमिका, ही, पुष्पवती। हिरी, पुष्फवती। तत्थ णं एगमेगाए देवीए तत्र एकैकस्याः देव्याः एकैकं देवीसहस्रं एगमेगं देवीसहस्सं परिवारे, सेसं तं । परिवारः, शेषं तच्चैव। एवं चेव । एवं महापुरिसस्स वि।। महापुरुषस्यापि। श. १० : उ. ५ : सू. ८७-९१ आर्य ! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञाप्त हैं, जैसेरोहिणी, नवमिका, ही, पुष्पवती। उनम प्रत्येक देवी के एक एक हजार देवी का परिवार है, शेष पूर्ववत। इसी प्रकार महापुरुष की वक्तव्यता। ८८. अतिकायस्स ण-पुच्छा। अतिकायस्य-पृच्छा। अज्जो! चत्तारि अग्ग्महिसीओ आर्य! चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रजाताः, तद् पण्णत्ताओ, तं जहा-भुयगा, भुयगवती, यथा-भुजगा, भुजगावती, महाकच्छा, महाकच्छा, फुडा। तत्थ णं एगमेगाए स्फुटा। तत्र एकैकस्याः देव्याः एकैकं देवीदेवीए एगमेगं देवीसहस्सं परिवारे, सेसं सहस्त्रं परिवारः शेषं तच्चैव। एवं तं चेव । एवं महाकायस्स वि॥ महाकायस्यापि। ८८. अतिकाय की पृच्छा। आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञाप्त हैं, जैसेभुजगा, भुजगवी, महाकक्षा, स्फुटा। उनमें प्रत्येक देवी के एक एक हजार देवी का परिवार है, शेष पूर्ववत। इसी प्रकार महाकाय की वक्तव्यता। ८९. गीतरति की पृच्छा ८९. गीयरइस्स णं-पुच्छा गीतरतेः-पृच्छा। अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्ण- आर्य! चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञसाः, त्ताओ, तं जहा-सुघोसा, विमला, सु. तद्यथा-सुघोषा, विमला, सुस्वरा, स्सरा, सरस्सई। तत्थ णं एगमेगाए सरस्वती। तत्र एकैकस्याः देव्याः एकैकं देवीए एगमेगं देवीसहस्सं परिवारे, सेसं देवीसहवं परिवारः, शेषं तच्चैव। एवं तं चेव। एवं गीयजसस्स वि। सव्वेसिं गीतयशसः अपि। सर्वेषाम् एतेषां यथा एएसिं जहा कालस्स, नवरं-सरिसना- कालस्य, नवरं-सदृशनामिकाः राजधान्यः मियाओ रायहाणीओ सीहासणाणि य, सिंहासनानि च, शेषं तच्चैव। सेसं तं चेव॥ सुघोषा, विमला, सुस्वरा. सरस्वती। उनमें प्रत्येक देवी के एक-एक हजार देवी का परिवार है, शेष पूर्ववत। इसी प्रकार गीतयश की वक्तव्यता। इन सबकी काल की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष हैराजधानी और सिंहासन सदृश नाम वाले हैं, शेष पूर्ववत्। ९०. चंदस्स णं भंते! जोइसिंदस्स चन्द्रस्य भदन्त! ज्यौतिषेन्द्रस्य ज्योती- ९०. भंते ! ज्योतिषराज ज्योतिषेन्द्र चन्द्र की जोइसरण्णो-पुच्छा। राजस्य-पृच्छा। पृच्छा। अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ आर्य! चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद् आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त है, जैसेपण्णत्ताओ, तं जहा-चंदप्पभा, यथा-चन्द्रप्रभा, ज्योत्स्नाभा, अर्चिमाली, चन्द्रप्रभा, ज्योत्स्नाभा, अर्चिमाली दोसिणाभा, अच्चिमाली, पभंकरा। एवं प्रभंकरा। एवं यथा जीवाभिगमे ज्योति- प्रभंकरा। इस प्रकार जैसे जीवाभिगम जहा जीवाभिगमे जोइसिय-उद्देसए तहेव ष्कोद्देशके, तथैव सूरस्यापि सूरप्रभा, (३/९९८-१०३६) में ज्योतिष्क उद्देशक सूरस्स वि सूरप्पभा, आयवा, आतपा, अर्चिमालिनी. प्रभंकरा। शेषं की वक्तव्यता। इसी प्रकार सूर्य की चार अच्चिमाली पभंकरा। सेसं तं चेव जाव तच्चैव यावत् नो चेव मैथुनप्रत्ययम्। अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं-सूर्यप्रभा, आतपा, नो चेव णं मेहुणत्तियं। अर्चिमाली, प्रभंकरा। शेष पूर्ववत यावत परिवार की ऋद्धि का उपभोग करते हैं. मैथुन रूप भोग का नहीं। ९१. इंगालस्स णं भंते! महग्गहस्स कति अङ्गारस्य भदन्त! कति अग्रमहिष्यः- अग्गमहिसीओ-पुच्छा। पच्छा । अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ आर्य! चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद् पण्णत्ताओ, तं जहा-विजया, वेजयंती, यथा-विजया, वैजयन्ती, जयन्ती, अपराजयंती, अपराजिया। तत्थ णं एगमेगाए जिता। तत्र एकैकस्याः देव्याः एकैकं देवीए एगमेगं देवीसहस्सं परिवारे, सेसं देवीसहस्रं परिवारः, शेषं यथा चन्द्रस्य, जहा चंदस्स, नवरं-इंगालवडेंसए विमाणे, नवरम्-अङ्गारावतंसके विमाने, अङ्गारके इंगालगंसि सीहासणंसि, सेसं तं चेव। सिंहासने, शेषं तच्चैव। एवं विकालएवं वियालगस्स वि। एवं अट्ठासीतिए वि कस्यापि। एवम् अष्टाशीतिः अपि ९१. भंते! महाग्रह इंगाल के कितनी अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त है-पृच्छा। आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-- विजया, वैजयंती, जयंती, अपराजिता। उनमें प्रत्येक देवी के एक-एक हजार देवी का परिवार है। शेष चन्द्र की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है-- अंगारावतंसक विमान, अंगारक सिंहासन पर, शेष पूर्ववत्। इसी प्रकार विकालक की For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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