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________________ भगवई श. १० : उ. ५ : सृ. ८२-८७ ३५८ अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ आर्य! चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद् पण्णत्ताओ, तं जहा-कमला, कमल-, यथा-कमला, कमलप्रभा, उत्पत्ला, प्पभा, उप्पला, सुदंसणा। तत्थ णं सुदर्शना। तत्र एकैकस्याः देव्याः एकैकं एगमेगाए, देवीए एगमेगं देवीसहस्सं देवीसहस्रं परिवारः. शेषं यथा चमरपरिवारो, सेसं जहा चमरलोग-पालाणं। लोकपालानाम्। परिवारः तथैव, नवरंपरिवारो तहेव नवरं-कालाए कालायां राजधान्यां, काले सिंहासने, शेषं रायहाणीए, कालंसि सीहासणंसि, सेसं तच्चैव। एवं महाकालस्यापि। तं चेव । एवं महाकालस्स वि।। आर्यो! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञाप्त है, जैसेकमला, कमलप्रभा, उत्पला, सुदर्शना। उनमें प्रत्येक देवी के एक-एक हजार देवी का परिवार है। शेष चमर लोकपाल की भांति वक्तव्य है। उसी प्रकार परिवार की वक्तव्यता, इतना विशेष है-काल राजधानी में काल सिंहासन पर, शेष पूर्ववत्। इसी प्रकार महाकाल की वक्तव्यता। ८३. सुरुवस्स णं भंते! भूतिंदस्स सुरूपस्य भदन्त! भूतेन्द्रस्य ८३. भंते! भूतराज भूतेन्द्र सुरूप की पृच्छा। भूतरण्णो–पुच्छा। भूतराजस्य-पृच्छा। अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ। आर्य! चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद् आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं. जैसेपण्णत्ताओ, तं जहा-रुववई, बहुरूवा, यथा-रूपवती, बहुरूपा, सुरूपा, सुभगा। रूपवती, बहुरूपा, सुरूपा, सुभगा। उनमें सुरूवा, सुभगा। तत्थ णं एगमेगाए देवीए तत्र एकैकस्याः देव्याः एकैकं देवीसहस्रं प्रत्येक देवी के एक एक हजार देवी का एगमेगं देवीसहस्सं परिवारे, सेसं जहा । परिवारः, शेषं यथा कालस्य। एवं परिवार है, शेष काल की भांति वक्तव्यता। कालस्स। एवं पडिरूवस्स वि॥ प्रतिरूपस्यापि। इसी प्रकार प्रतिरूप की वक्तव्यता। ८१. भंते ! यक्षेन्द्र पुण्यभद्र की पृच्छा। ८४. पुण्णभद्दस णं भंते! जक्खिदस्स- पुण्यभद्रस्य भदन्त ! यक्षेन्द्रस्य-पृच्छा। पुच्छा । अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ आर्य! चतस्र अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद् पण्णत्ताओ, तं जहा-पुण्णा, बहुपुत्तिया, यथा- पुण्या, बहुपुत्रिका, उत्तमा, तारका। उत्तमा, तारया। तत्थ णं एगमेगाए देवीए तत्र एकैकस्याः देव्याः एकैकं देवीसहस्रं एगमेगं देवीसहस्सं परिवारे, सेसं जहा। परिवारः, शेषं यथा कालस्य। एवं कालस्स। एवं माणिभद्दस्स वि॥ माणिभद्रस्यापि। आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पुण्या, बहुपुत्रिका, उत्तमा, तारका। उनमें प्रत्येक देवी के एक एक हजार देवी का परिवार है, शेष काल की भांति वक्तव्यता। इसी प्रकार मणिभद्र की वक्तव्यता। ८५. भंते! राक्षसेन्द्र भीम की पृच्छा। ८५. भीमस्स णं भंते! रक्खसिंदस्स- भीमस्य भदन्त ! राक्षसेन्द्रस्य-पृच्छा। पुच्छा । अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ आर्य! चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद् पण्णत्ताओ, तं जहा-पउमा, वसुमती, यथा--पद्मा, वसुमती, कनका, रत्नप्रभा। कणगा, रयणप्पभा। तत्थ णं एगमेगाए तत्र एकैकस्याः देव्याः एकैकं देवीसहस्रं देवीए एगमेगं देवी-सहस्सं परिवारे, सेसं परिवारः, शेषं यथा कालस्य। एवं जहा कालस्स। एवं महाभीमस्स वि॥ महाभीमस्यापि। आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त है, जैसेपद्मा, वसुमती. कनका, रत्नप्रभा। उनमें प्रत्येक देवी के एक एक हजार देवी का परिवार है, शेष काल की भांति वक्तव्यता। इसी प्रकार महाभीम की वक्तव्यता। ८६. किन्नरस्स णं-पुच्छा। किन्नरस्य-पृच्छा। अज्जो! चतार अग्गमहिसीओ आर्य! चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद् पण्णत्ताओ, तं जहा–वडेंसा, केतुमती, यथा-अवतंसा, केतुमती, रतिसेना, रतिसेणा, रइप्पिया। तत्थ णं ऐगमेगाए रतिप्रिया। तत्र एकैकस्याः देव्याः एकैकं देवीए एगमेगं देवीसहस्सं परिवारे, सेसं देवीसहस्रं परिवारः, शेषं तच्चैव। एवं तं चेव । एवं किंपुरिसस्स वि॥ किंपुरुषस्यापि। ८६. किन्नर की पृच्छा। आर्य! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-अवतंसा, केतुमती, रतिसेना, रतिप्रिया। उनमें प्रत्येक देवी के एक एक हजार देवी का परिवार है, शेष पूर्ववत। इसी प्रकार किंपुरुष की वक्तव्यता। ८७. सप्पुरिसस्स णं-पुच्छा। सत्पुरुषस्य-पृच्छा! ८७. सत्पुरुष की पृच्छा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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