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________________ भगवई ३५७ श. १० : उ. ५ : सू. ७८-८२ परिवार के साथ। शेष रायपसेणइय (सूत्र ७) की भांति वक्तव्य है। ७९. धरणस्स णं भंते! नागकुमारिंदस्स धरणस्य भदन्त! नागकुमारेन्द्रस्य ७९. भंते! नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र नागकुमाररण्णो कालवालस्स महारण्णो नागकुमारराजस्य कालपालस्य महाराजस्य धरण धरण के लोकपाल महाराज कालवास के कति अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ? कति अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः? कितनी अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त है ? अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ। आर्य! चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद् । आर्यो! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसेपण्णत्ताओ, तं जहा-असोगा, विमला, यथा-अशोका, विमला, सुप्रभा, सुदर्शना।। अशोका, विमला, सुप्रभा, सुदर्शना। उनमें सुप्पभा, सुदंसणा। तत्थ णं एगमेगाए तत्र एकैकस्याः देव्याः एकैकं देवीसहसं प्रत्येक देवी के एक एक हजार देवी का देवीए एगमेगं देवीसहस्सं परिवारो, परिवारः, अवशेषं यथा चमरलोक- परिवार है। शेष चमर लोकपाल की भांति अवसेसं जहा चमरलोगपालाणं। एवं पालानाम्। एवं शेषाणां तिसृणामपि। वक्तव्यता। इसी प्रकार धरण के शेष तीन सेसाणं तिण्ह वि॥ लोकपालों की वक्तव्यता। ८०. भूयाणंदस्स भंते!-पुच्छा भूतानन्दस्य भदन्त ! पृच्छा-1 अज्जो! छ अग्गमहिसीओ पण्ण-त्ताओ, आर्य! षट् अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद् यथा- तं जहा-रूया रूयंसा, सुख्या, रूपा, रूपांशा, सुरूपा, रूपकावती, रूयगावती, रूयकता, रूयप्पभा। तत्थ । रूपकान्ता, रूपप्रभा। तत्र एकैकस्याः णं एगमेगाए देवीए छ-छ देवीसहस्सं । देव्याः षट्-षट् देवीसहस्रं परिवारः, अवशेष परिवारे, अवसेसं जहा धरणस्स॥ यथा धरणस्य। ८०. भंते ! भूतानंद की पृच्छा। आर्यो! छह अग्रमहिषियां प्रज्ञाप्त हैं, जैसेरूपा, रूपांशा, सुरूपा, रूपकावती, रूपकांता, रूपप्रभा। उनमें प्रत्येक देवी के छह-छह हजार देवी का परिवार है। अवशेष धरण की भांति वक्तव्य है। ८१. भूयाणंदस्स णं भंते! नाग- भूतानन्दस्य भदन्त ! नागकुमारेन्द्रस्य ८१. भंते! नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र कुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो नाग- नागकुमारराजस्य नागचित्रस्य पृच्छा। भूतानंद के लोकपाल नागचित्त की चित्तस्स-पुच्छा पृच्छा। अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ आर्य! चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञसाः, तद् । आर्यो! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, पण्णत्ताओ, तं जहा-सुणंदा,सुभद्द, यथा-सुनंदा, सुभद्रा, सुजाता, सुमना। तत्र जैसे-सुनंदा, सुभद्रा, सुजाता, सुमना। सुजाया, सुमणा। तत्थ णं एगमे-गाए एकैकस्याः देव्याः एकैकं देवीसहसं उनमें प्रत्येक देवी के एक एक हजार देवी देवीए एगमेगं देवीसहस्सं परिवारे, परिवारः, अवशेषं यथा चमरलोकपाला- का परिवार है। शेष चमर लोकपाल की अवसेसं जहा चमरलोग-पालाणं। एवं । नाम्। एवं शेषाणां त्रयाणामपि लोकपाला- भांति वक्तव्य है। इसी प्रकार भूतानंद के सेसाणं तिण्ह वि लोगपालाणं। नाम्। शेष तीन लोकपालों की वक्तव्यता। जे दाहिणिल्ला इंदा तेसिं जहा ये दाक्षिणात्याः इन्द्राः तेषां यथा जो दक्षिण दिशा के इन्द्र हैं, उनकी धरणिंदस्स, लोगपालाण वि तेसिं जहा धरणेन्द्रस्य, लोकपालानामपि तेषां यथा धरणेन्द्र की भांति वक्तव्यता। उनके धरणस्स लोगपालाणं। उत्तरिल्लाणं । धरणस्य लोकपालानाम्। औत्तराहानाम् लोकपालों की भी धरणेन्द्र के लोकपालों इंदाणं जहा भूयाणंदस्स, लोगपालाण वि इन्द्राणां यथा भूतानन्दस्य, लोक- की भांति वक्तव्यता। इतना विशेष है-सब तेसिं जहा भूयाणंदस्स लोगपालाणं, पालानामपि तेषां यथा भूतानन्दस्य इन्द्रों की राजधानी और सिंहासन सदृश नवरं-इंदाणं सव्वेसिं रायहाणीओ। लोकपालानाम्. नवरम्-इन्द्राणां सर्वेषां नाम वाले हैं। परिवार मोक उद्देशक सीहासणाणि य सरिसणामगाणि, राजधान्यः सिंहासनानि च सदृशनामकानि, (भगवई ३/४) की भांति वक्तव्य है। सब परियारो जहा मोउद्देसए। लोग-पालाणं परिवारः यथा मोयोद्देशके। लोकपालानां लोकपालों की राजधानी और सिंहासन सव्वेसिं रायहाणीओ सीहासणाणि य । सर्वेषां राजधान्यः सिंहासनानि च सदृश- भी सदृश नाम वाले हैं, उनका परिवार सरिसणामगाणि, परियारो जहा नामकानि, परिवारः यथा चमरलोक- चमर लोकपाल की भांति वक्तव्य है। चमरस्स लोगपालाणं॥ पालानाम्। ८२. कालस्स णं भंते! पिसायिंदस्स कालस्य भदन्त ! पिशाचेन्द्रस्य पिशाच- ८२. भंते! पिशाचराज पिशाचेन्द्र काल के पिसायरण्णो कति अग्गमहिसीओ राजस्य कति अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः? कितनी अग्रमहिर्षियां प्रज्ञाप्त हैं ? पण्णत्ताओ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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