SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 378
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श. १० : उ. ५ : सू. ७४-७८ ७४. बलिस्स णं भंते! वइरोयणिदस्स- पुच्छा । अज्जो ! पंच अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - सुंभा, निसुंभा, रंभा, निरंभा, मदणा । तत्थ णं एगमंगाए देवीए अट्ठ देवीसहस्सं परिवारो, सेसं जहा चमरस्स, नवरं - बलिचंचाए राय हाणीए, परि-यारो जहा मोउद्देसए । सेसं तं चैव जाव नो चेवणं मेहुणवत्तियं ॥ ७५. बलिस्स णं भंते! वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो सोमस्स महारण्णो कति अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ ? अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - मीणगा, सुभद्दा, विज्जुया, असणी । तत्थ णं एगमेगाए देवीए एगमेगं देवीसहस्सं परिवारो, सेसं जहा चमरसोमस्स एवं जाव वरुणस्स ॥ ७६. धरणस्स णं भंते! नाग- कुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो कति अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ ? अज्जो! अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - अला, सक्का, सतेरा, सोदामिणी, इंदा, घणविज्जुया । तत्थ णं एगमेगाए देवीए छ-छ देवीसहस्सं परिवारो पण्णत्तो ॥ छ-छ ७७. पभू णं ताओ एगमेगा देवी अण्णाई देवि सहस्साई परियारं विउब्वित्तए ? एवामेव सपुव्वावरेणं छत्तीसाई देवि - सहस्साइं । सेत्तं तुडिए । ७८. पभू णं भंते! धरणे ? सेसं तं चेव, नवरं - धरणाए रायहाणीए, धरणंसि सीहासणंसि, सओ परियारो । सेसं तं चेव ॥ Jain Education International ३५६ बलिनः भदन्त ! वैरोचनेन्द्रस्य-पृच्छा । आर्य! पञ्च अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- शुम्भा, निशुम्भा, रम्भा, निरम्भा, मदना । तत्र एकैकस्याः देव्याः अष्टाष्ट देवीसहस्रं परिवारः शेषं यथा चमरस्य, नवरं- बलिचञ्चायां राजधान्याम् परिवारः यथा मोयोकद्देसके शेषं तच्चैव यावत् नो चैव मैथुनप्रत्ययम् । बलिनः भदन्त ! वैराचनेन्द्रस्य वैरोचनराजस्य सोमस्य महाराजस्य कति अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः ? आर्य! चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद् यथा - मीनका, सुभद्रा, विद्युत् अशनि । तत्र एकैकस्याः देव्याः एकैकं देवीसहस्रं परिवारः शेषं यथा चमरसोमस्य एवं यावत् वरुणस्य | धरणस्य भदन्त ! नागकुमारेन्द्रस्य नागकुमारराजस्य कति अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः ? आर्य! षट् अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद् यथाअला, शक्रा, शतेरा, सौदामिनी, इन्द्रा, घनविद्युत् । तत्र एकैकस्याः देव्याः षट् षट् देवीसहस्रं परिवारः प्रज्ञप्तः । प्रभुः ताः एकैका देवी अन्यानि षट् षट् देवीसहस्राणि परिवारं विकर्तुम् ? एवमेव पूर्वापरेण षट्त्रिंशत् देवीसहस्राणि । तदेतत् 'तुडिए' । प्रभुः भदन्त ! धरणः ? शेषं तच्चैव, नवरंधरणायां राजधान्यां धरणे सिंहासने, स्वकः परिवारः । शेषं तच्चैव । For Private & Personal Use Only भगवई ७४. भंते! वैरोचनेन्द्र बलि की पृच्छा । आर्यो! पांच अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसेशुंभा, निशुंभा, रंभा, निरंभा, मदना । उनमें से प्रत्येक देवी के आठ आठ हजार देवी का परिवार प्रज्ञप्त है। शेष चमर की भांति वक्तव्य है, इतना विशेष हैबलिचंचा राजधानी में, परिवार की मोक उद्देशक (भगवई ३/४ ) की भांति वक्तव्यता । शेष पूर्ववत् यावत् मैथुन रूप भोग का नहीं। ७५. भंते! वैरोचनराज वैरोचनेन्द्र बलि के लोकपाल महाराज सोम के कितनी अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं ? आर्यो! चार अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसेमीनका, सुभद्रा, विद्युत्, असनी । उनमें से प्रत्येक देवी के एक एक हजार देवी का परिवार है। शेष सोम चमर की भांति वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् वरुण की वक्तव्यता । ७६. भंते! नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र धरण के कितनी अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं ? आर्यो! छह अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त जैसे- अला, शक्रा, सतेरा, सौदामिनी, इन्द्रा, घन- विद्युत् | उनमें प्रत्येक देवी के छह-छह हजार देवी का परिवार प्रज्ञप्त है। ७७. क्या एक देवी अन्य छह-छह हजार देवी परिवार की विक्रिया करने में समर्थ है ? हां, है । इसी प्रकार पूर्व अपर सहित छत्तीस हजार देवी परिवार विक्रिया करने में समर्थ है। यह है अंतःपुर की वक्तव्यता । ७८. भंते! नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र धरण धरण सिंहासन पर दिव्य भोगाई भोगों को भोगते हुए विहरण करने में समर्थ हैं ? शेष पूर्ववत्, इतना विशेष है- धरण राजधानी में, धरण सिंहासन पर स्व www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy