SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचमो उद्देसो : पांचवां उद्देशक मूल संस्कृत छाया हिन्दी छाया देवाणं तुडिएण सद्धिं दिव्वभोग-पदं देवानां 'तुडिएण' सद्धिं दिव्य-भोग- पदम ६४. तेणं कालेणं तेणं समएणं राय-गिहे तस्मिन् काले तस्मिन् समये राजगृहः नाम नाम नयरे। गुणसिलए चेइए जाव । नगरम्। गुणशिलकं चैत्यम् यावत् परिषद् परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं प्रतिगता। तस्मिन् काले तस्मिन् समये समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स श्रमणस्य भगवतः महावीरस्य बहवः बहवे अंते-वासी थेरा भगवंतो अन्तेवासिनः स्थविराः भगवन्तः जातिजाइसंपन्ना जहा अट्ठमे सए सत्तमुद्देसए सम्पन्नाः यथा अष्टमे शते सप्लमोद्देशके जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा यावत् संयमेन तपसा आत्मानं भावयन्तः विहरंति। तए णं ते थेरा भगवंतो। विहरन्ति। ततः ते स्थविराः भगवन्तः जायसड्डा जायसंसया जहा गोयम- जात-श्रद्धाः जातसंशयाः यथा गौतमस्वामी सामी जाव पज्जुवासमाणा एवं यावत् पर्युपासीनाः एवमवादिषुःवयासी देवों का अंतःपर के साथ दिव्य-भोगपद ६४. उस काल और उस समय राजगृह नाम का नगर था। गुणालक चैत्य यावत् भगवान् ने धर्म कहा। परिषद वापस नगर में चली गई। उस काल और उस समय श्रमण भगवान महावीर के बहुत अंतेवासी स्थविर भगवान जाति-संपन्न जैसे आठवें शतक के सातवें उद्देशक (सूत्र २७२) की वक्तव्यता यावत् संयम और तप से अपने आपको भावित करते हए रह रहे थे। उन स्थविर भगवान के मन में एक श्रद्धा (इच्छा) एक संशय (जिज्ञासा) जैसे गौतम स्वामी की वक्तव्यता यावत् पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले ६५.भंते! असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के कितनी अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं ? ६५. चमरस्स णं भंते असुरिंदस्स चमरस्य भदन्त! असुरेन्द्रस्य असुर- असुरकुमाररण्णो कति अग्गम. कुमारराजस्य कति अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः? हिसीओ पण्णत्ताओ? अज्जो! पंच अग्गमहिसीओ पण्ण- आर्य! पञ्च अग्रमहिष्यः प्रज्ञाप्ताः, तद् ताओ, तं जहा-काली, रायी, रयणी, यथा-काली. रात्री, रजनी, विद्युत्, मेघा। विज्जू, मेहा। तत्थ णं एगमेगाए देवीए तत्र एकैकस्याः देवाः अष्टाष्टदेवीसहसं अट्ठट्ट देवीसहस्सं परिवारो पण्णत्तो॥ परिवारः प्रज्ञप्तः। आर्य ! पांच अग्रमहिषियां प्रज्ञप्त हैं, जैसेकाली, राजी, रजनी, विद्युत्, मेघा। उनमें से प्रत्येक देवी के आठ आठ हजार देवी का परिवार प्रज्ञाप्त हैं। ६६. पभू णं भंते! ताओ एगमेगा देवी अण्णाई अट्ठट्ठ देवसहस्साई परि-यारं विउवित्तए? एवामेव सपुव्वावरेणं चत्तालीसं देवीसहस्सा। सेत्तं तुडिए॥ प्रभुः भदन्त ! ताः एकैका देवी अन्यानि ६६. भंते! क्या एक एक देवी अन्य आठ अष्टाष्ट देवीसहस्राणि परिवारं विकर्तुम? आठ हजार देवी परिवार की विक्रिया (रूप निर्माण) करने में समर्थ है ? एवमेव सपूर्वापरेण चत्वारिंशत् । हां, है। इसी प्रकार पूर्व अपर सहित देवीसहस्राणि तदेतत् 'तुडिए। चालीस हजार देवी परिवार विक्रिया करने में समर्थ है। यह है तुडिय (अंतःपुर) की वक्तव्यता। ६७. पभू णं भंते! चमरे असुरिंदे असुर- प्रभुः भदन्त ! चमरः असुरेन्द्रः असुर- कुमारराया चमरचंचाए रायहाणीए, कुमारराजः चमरचञ्चायां राजधान्यां, ६७. 'भंते! असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर चमरचंचा राजधानी की सुधर्मा सभा में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy