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________________ भगवई श. १० : उ. ४ : सू.५२-५६ ३५० हुआ है। पासत्थ और पासत्थविहारी का अर्थ है शिथिल कुसील, कुसीलविहारी-आचार की विराधना करने वाला। आचारवाला। यथाछंद, यथाछंदविहारी-स्वछंदविहारी, आगम-निरपेक्ष ओसन्न, ओसन्नविहारी-आलस्य और प्रमाद के कारण होकर विहार करने वाला।' आचार का सम्यक् अनुष्ठान न करने वाला। ५२. भंते ! वैरोचनराज वैरोचनेन्द्र बलि के बायस्त्रिंशक देव त्रायस्त्रिंशक देव है? ५२. अत्थि णं भंते! बलिस्स वइरो- अस्ति भदन्त ! बलिनः वैरोचनेन्द्रस्य यणिंदस्स वइरोयणरण्णो तावत्ती-सगा। वैरोचनराजस्य तावतत्रिंशकाः देवा- देवातावत्तीसगा देवा? तावतत्रिंशकाः देवाः? हंता अत्थि॥ हन्त अस्ति। हां, हैं। ५३. से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ- तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते-बलिनः ५३. भंते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयण- वैरोचनेन्द्रस्य वैरोचनराजस्य तावत्- है-वैरोचनराज वैरोचनेन्द्र बलि के रण्णो तावत्तीसगा देवातावत्तीसगा त्रिंशकाः देवाः-यावत्रिंशकाः देवाः ? बायस्त्रिंशक देव त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? देवा? एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं एव खलु गौतम! तस्मिन् काले तस्मिन् गौतम! उस काल और उस समय इसी समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे समये इहैव जम्बूद्वीपे द्वीपे भारत वर्षे जम्बूद्वीप द्वीप में भारतवर्ष में बेभेल नाम बेभेले नाम सण्णिवेसे होत्था-वण्णओ। बेभेलः नाम सन्निवेशः आसीत-वर्णकः। का सन्निवेश था-वर्णक। उस बेभेल तत्थ णं बेभेले सण्णिवेसे तायत्तीसं तत्र बेभेले सन्निवेशे त्रयस्त्रिंशत् सहायाः सन्निवेश में वायस्त्रिंशक तैतीस परस्पर सहाया गाहावई समणो-वासया परिव- 'गाहावई' श्रमणोपासकाः परिवसन्ति- सहाय्य करने वाले गृहपति श्रमणोपासक संति-जहा चमरस्स जाव ताव- यथा चमरस्य यावत् तावत्त्रिंशकदेवत्वेन रहते थे-जैसे चमर की वक्तव्यता यावत् त्तीसगदेवत्ताए उववण्णा।। उपपन्नाः । त्रायस्त्रिंशक देव के रूप में उपपन्न हुए। ५४. जप्पभिई च णं भंते! ते बेभेलगा यत्प्रभृति च भदन्त ! ते बेभेलकाः ताव- तायत्तीसं सहाया गाहावई समणो- त्रिंशत् सहायाः 'गाहावई' श्रमणो- वासगा बलिस्स वइरोयणिंदस्स पासकाः बलिनः, वैरोचनेन्द्रस्य वैरो- वइरोयणरण्णो तावत्तीसगदेवत्ताए चनराजस्य तावत्रिंशकदेवत्वेन उपपन्नाः, उववन्ना, सेसं तं चेव जाव निच्चे, शेषं तच्चैव यावत् नित्यः, अव्यवच्छिअव्वोच्छित्तिनयट्ठयाए अण्णे चयंति, तिनयार्थेन अन्ये च्यवन्ते, अन्ये उपपअण्णे उववज्जति॥ द्यन्ते। ५४. भंते! जिस समय से वे बेभेलक वायस्त्रिंशक तैतीस परस्पर सहाय्य करने वाले गृहपति श्रमणोपासक वैरोचनराज, वैरोचनेन्द्र बलि के त्रायस्त्रिंशक देव के रूप में उपपन्न हुए। शेष पूर्ववत् वक्तव्य है यावत् नित्य है, अव्युच्छित्ति नय की दृष्टि से कुछ च्यवन करते हैं, कुछ उपपन्न हो जाते हैं। ५५. अत्थि णं भंते! धरणस्स नाग- कुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो तावत्तीसगा देवातावत्तीसगा देवा? हंता अत्थि॥ अस्ति भदन्त ! धरणस्य नागकुमारेन्द्रस्य ५५. भंते! नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र नागकुमारराजस्य तावत्रिंशकाः देवाः- धरण के बायस्त्रिंशक देव त्रायस्त्रिंशक देव तावत्रिंशकाः देवाः? हन्त अस्ति। हां, हैं। ५६. से केणद्वेणं जाव तावत्तीसगा देवा- तत् केनार्थेन यावत् तावत्रिंशकाः ५६. यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा तावत्तीसगा देवा? देवाः-तावत्रिंशकाः देवाः ? है-नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र धरण के गोयमा! धरणस्स नागकुमारिंदस्स गौतम! धरणस्य नागकुमारेन्द्रस्य नाग- वायस्त्रिंशक देव त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? नागकुमाररण्णो तावत्तीसगाणं देवाणं कुमारराजस्य तावत्त्रिंशकानां देवानां गौतम ! नागकुमारराज नागकुमारेन्द्र धरण सासए नामधेज्जे पण्णत्ते-जं न कयाइ शाश्वतः नामधेयः प्रज्ञप्तः-यत्न कदापि के त्रायस्त्रिंशक देवों का शाश्वत नामधेय नासी जाव अण्णे चयंति, अण्णे नासीत यावत् अन्ये च्यवन्ते, अन्ये प्रज्ञप्त है-वह कभी नहीं था यावत् कुछ उववज्जंति। एवं भूयाणंदस्स वि, एवं उपपद्यन्ते। एवं भूतानन्दस्यापि एवं यावत् च्यवन करते हैं, कुछ उपपन्न हो जाते हैं। १.भ.वृ.१०.४८। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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