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________________ भगवई ३४९ अणगारेणं एवं वुत्ते समाणे संकिए अनगारेण एवमुक्ते सति शंकितः कांक्षितः कंखिए वितिगिच्छिए उट्ठाए उढेइ, उद्वेत्ता विचिकित्सकः उत्थया उत्तिष्ठति, उत्थाय सामहत्थिणा अणगारेणं सद्धिं जेणेव । श्यामहस्तिना अनगारेण साधू यत्रैव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, श्रमणः भगवान् महावीरः तत्रैव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ उपागच्छति, उपागम्य श्रमणं भगवन्तं नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी- महावीरं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत् श. १० : उ. ४ : सू. ४९-५१ पर भगवान् गौतम शंकित, कांक्षित और विचिकित्सित हो गए। वे उठने की मुद्रा में उठे, उठकर श्यामहस्ती अणगार के साथ जहां श्रमण भगवान महावीर थे, वहां आए, वहां आकर श्रमण भगवान महावीर को वंदन-नमस्कार किया, वंदन-नमस्कार कर इस प्रकार बोले ५०. भंते! क्या असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के त्रायस्त्रिंशक देव त्रायस्त्रिंशक देव ५०. अत्थि णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तावत्तीसगा देवातावत्तीसगा देवा? हंता अत्थि॥ अस्ति भदन्त! चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य तावतत्रिंशकाः देवाःतावत्रिंशकाः देवाः? हन्त अस्ति। हां, है। ५१. से केणद्वेण भंते! एवं वुच्चइ-एवं तं तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-एवं तत् ५१. भंते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा चेव सव्वं भाणियव्वं जाव जप्पभिई च चैव सर्वं भणितव्यं यावत् यत्प्रभृति च है-इसी प्रकार सर्व वक्तव्य है यावत् भंते! णं भंते! ते कायंदगा तायत्तीसं सहाया भदन्त! ते काकन्दकाः त्रयस्त्रिंशत् जिस समय से वे काकंदक बायस्त्रिंशक-- गाहावई समणो वासगा चमरस्स सहायाः 'गाहावई' श्रमणोपासकाः तैतीस परस्पर सहाय्य करने वाले असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो ताव- चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य गृहपति श्रमणोपासक असुरकुमारराज त्तीसगदेवत्ताए उववन्ना, तप्पभिई च णं तावत्रिंशकदेवत्वेन उपपन्नाः, तत्प्रभृति असुरेन्द्र चमर के त्रायस्त्रिंशक देव के रूप भंते! एवं बुच्चइ-चमरस्स असुरिंद- च भदन्त ! एवमुच्यते-चमरस्य असुरेन्द्र में उपपन्न हुए, भंते! उस समय से क्या स्स असुरकुमाररण्णो तावत्तीसगा स्य असुरकुमाराजस्य तावत्रिंशकाः इस प्रकार कहा जा रहा है-असुरकुमारदेवातावत्तीसगा देवा? देवाः तावत्रिंशकाः देवाः ? राज असुरेन्द्र चमर के बायस्त्रिंशक देव त्रायस्त्रिंशक देव हैं? नो इणद्वे समढे। गोयमा! चमरस्स णं नो अयमर्थः समर्थः। यह अर्थ संगत नहीं है। असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो ताव- गौतम! चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरकुमा- गौतम ! असुरकुमारराज असुरेन्द्र चमर के त्तीसगाणं देवाणं सासए नाम-धेज्जे रराजस्य तावत्त्रिंशकानां देवानां शाश्वतः त्रायस्त्रिंशक देवों का शाश्वत नामधेय पण्णत्ते-जं न कयाइ नासी, न कयाइन नामधेयः प्रज्ञप्तः यत् न कदापि नासीत् प्रज्ञप्त है-वह कभी नहीं था, कभी नहीं है भवइ, न कयाइ न भविस्सइ, भविंसु य, न कदापि न भवति, न कदापि न भवि- और कभी नहीं होगा, ऐसा नहीं है-वह था, भवति य, भविस्सइ य-धुवे नियए ष्यति, अभवत् च, भवति च, भविष्यति है और होगा-वह ध्रुव, नियत, शाश्वत, सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निच्चे, च-ध्रुवः नियतः शाश्वतः अक्षयःअव्ययः अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है। अव्वोच्छित्तिनयट्ठयाए अण्णे चयंति, अवस्थितः नित्यः, अव्यवच्छित्तिनयार्थेन । अव्युच्छित्ति नय की दृष्टि से कुछ च्यवन अण्णे उववति॥ अन्ये च्यवन्ते, अन्ये उपपद्यन्ते। करते हैं, कुछ उपपन्न हो जाते हैं। भाष्य १.सूत्र ४६-५१ शब्द विमर्शदेव निकायों में दस प्रकार के देव होते हैं। उनमें वायरिंवंश उग्र, उग्रविहारी-विधिपूर्वक आचार का अनुशीलन तीसरा प्रकार है। इनका स्थान मंत्री अथवा पुरोहित के समान करने वाला। उदात्त और उदात्त आचारवाला, यह वृत्तिकार माना गया है। प्रस्तुत आलापक में त्रायस्त्रिशक देवों के पूर्व का अर्थ है।' जन्म का विवरण दिया गया है। उसके साथ अव्यवच्छित्ति संविग्न, संविग्नविहारी-वैराग्यपूर्ण आचार वाला। नय की दृष्टि से बतलाया गया है-त्रायस्त्रिशक देव च्युत और पार्श्वस्थ, पार्श्वस्थविहारी-पासत्थ आदि पदों का प्रयोग उत्पन्न होते रहते हैं। प्रायः साधु के लिए हुआ है। यहां इनका प्रयोग श्रावक के प्रसंग में १.त. सू. ४/४-इन्द्रसामानिकत्रायस्त्रिशपरिषद्यात्मरक्षलोकपालानीक प्रकीर्णकाभियोग्यकिल्विषिकाश्चैकशः। २. (क) भ. बृ. १०४६-त्रायस्त्रिशाः-मन्त्रिविकल्पाः । (ख) त. सू. भा. वृ. ४/४ पृ. २७५-त्रायस्त्रिशाः-मन्त्रिपुरोहितग्थानीयाः। ३. भ. वृ. १०/४८।। ४. वव. १/२६-३०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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