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________________ भगवई मउय-फासपरिणया वि, गरुयफास- अपि, गुरुकस्पर्श-परिणताः अपि, लघु- परिणया वि, लहुयफासपरिणया वि, कस्पर्शपरिणताः अपि, शीतस्पर्शपरिणताः सीतफासपरिणयावि ,उसिण- अपि, उष्णस्पर्श- परिणताः अपि, फासपरिणया वि, णिद्धफास-परिणया । स्निग्धस्पर्शपरिणताः अपि, रूक्षस्पर्शवि, लुक्खफासपरिणया वि; संठाणओ परिणताः अपि, संस्थानतः परिमण्डलपरिमंडलसंठाण-परिणया वि, वट्ट-तंस- संस्थानपरिणताः अपि, वृत्त- त्र्यस्रचउरंस-आयतसंठाणपरिणया वि। चतुरस्रायत-संस्थानपरिणताः अपि। ये जे पज्जत्तासुहुमपुढवि एवं चेव। एवं पर्यासकसूक्ष्मपृथिवी एवं चैव। एवं जहाणुपुव्वीए नेयव्वं जाव जे यथानुपूर्व्या नेतव्यं यावत ये पर्याप्लकपज्जत्तासव्वट्ठ - सिद्धअणुत्तरो-ववाइय सर्वार्थसिद्धानुत्तरौपपातिक यावत् परिणताः जाव परिणया ते वण्णओ ते वर्णतः कालवर्णपरिणताः अपि यावत • कालवण्णपरिणया वि जाव आयतसंस्थानपरिणताः अपि। आयतसंठाणपरिणया वि॥ श.८ : उ. १ : सू. ३६-३८ गुरु स्पर्श परिणत भी हैं, लघु स्पर्श परिणत भी हैं, शीत स्पर्श परिणत भी हैं, उष्ण स्पर्श परिणत भी हैं, स्निग्ध स्पर्श परिणत भी हैं, रूक्ष स्पर्श परिणत भी हैं, संस्थान से परिमण्डल संस्थान परिणत भी हैं, वृत्त-व्यस्त्र-चतुरस्र-आयत संस्थान परिणत भी हैं। इसी प्रकार पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रियप्रयोगपरिणत की वक्तव्यता। इसी प्रकार क्रमशः ज्ञातव्य है यावत् जो पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक देव पंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत हैं वे वर्ण से काल वर्ण परिणत भी हैं यावत् आयत संस्थान परिणत भी हैं। सरीरं वण्णदिं च पडुच्च पयोग- शरीरं वर्णादि च प्रतीत्य प्रयोग- शरीर और वर्ण आदि की अपेक्षा से परिणति-पदं परिणति-पदम् प्रयोग परिणति-पद ३७. जे अपज्जत्तासुहुमपुढविक्का- ये अपर्याप्तकसूक्ष्मपृथ्वीकायिकैकेन्द्रि- ३७. जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक इयएगिदियओरालिय-तेया-कम्मा- यौदारिक - तेजस्क - कर्मकशरीरप्रयोग- एकेन्द्रिय औदारिक तैजस और सरीरपयोगपरिणया ते वण्णओ काल- परिणताः ते वर्णतः कालवर्णपरिणताः अपि कर्मशरीरप्रयोगपरिणत हैं वे वर्ण से काल वण्णपरिणया वि जाव आयतसंठाण- यावत् आयतसंस्थानपरिणताः अपि। ये वर्ण परिणत भी हैं यावत् आयत संस्थान परिणया वि। पर्याप्तकसूक्ष्मपृथ्वीकायिक एवं चैव। परिणत भी हैं। जे पज्जत्तासुहुमपुढविक्काइय एवं चेव। एवं यथानुपूर्व्या ज्ञातव्यम्, यस्य यति इसी प्रकार पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एवं जहाणुपुव्वीए नेयव्वं, जस्स जइ शरीराणि यावत् ये पर्याप्तकसर्वार्थ- एकेन्द्रिय औदारिक, तैजस और सरीराणि जाव जे पज्जत्तासव्व . सिद्धानुत्तरौपपातिक - कल्पातीतक- कर्मशरीरप्रयोगपरिणत की वक्तव्यता। ट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइयकप्पातीत- वैमानिकदेव-पञ्चेन्द्रिय-वैक्रिय-तेजस्क- इसी प्रकार यथाक्रम ज्ञातव्य है, जिसके गवेमाणिदेव -पंचिंदिय - वेउव्विय - कर्मकशरीर-प्रयोगपरिणताः। ते वर्णतः जितने शरीर हैं वे वक्तव्य हैं यावत् जो तेया-कम्मा-सरीरपयोग-परिणया। ते कालवर्ण-परिणताः अपि, यावत् आयत- पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक वण्णओ कालवण्णपरिणया वि जाव संस्थानपरिणताः अपि । कल्पातीतगवैमानिक देव पंचेन्द्रियवैक्रियआयत-संठाणपरिणया वि।। तैजस और कर्मशरीरप्रयोगपरिणत है वे वर्ण से काल वर्ण परिणत भी हैं यावत् आयत संस्थान परिणत भी हैं। इंदियं वण्णादिं च पडुच्च पयोग- इन्द्रियं वर्णादि च प्रतीत्य प्रयोग- इन्द्रिय और वर्ण आदि की अपेक्षा परिणति-पदं परिणति-पदम् प्रयोग परिणति-पद ३८. जे अपज्जत्तासुहमपुढविक्का-इय - ये अपर्यासकसूक्ष्मपृथ्वीकायिकैकेन्द्रिय- ३८. जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एगिदियफासिंदियपयोग-परिणया ते स्पर्शेन्द्रियप्रयोग परिणतास्ते वर्णतः एकेन्द्रिय स्पर्शनेन्द्रियप्रयोगपरिणत हैं वे वण्णओ कालवण्ण-परिणया वि जाव कालवर्ण-परिणताः अपि यावत् वर्ण से काल वर्ण परिणत भी हैं यावत् आयतसंठाण-परिणया वि। आयतसंस्थानपरिणताः अपि। आयत संस्थान परिणत भी हैं। जे पज्जत्तासुहुमपुढविक्काइय एवं चेव। ये पर्याप्तकसूक्ष्मपृथ्वीकायिक एवं चैव। एवं इसी प्रकार पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एवं जहाणुपुव्वीए जस्स जति इंदियाणि यथानुपूर्व्या यस्य यति इन्द्रियाणि तस्य तति एकेन्द्रिय स्पर्शनन्द्रियप्रयोगपरिणत की तस्स तति भाणियव्वाणि जाव जे भणितव्यानि यावत् ये पर्याप्तक- वक्तव्यता। इसी प्रकार यथाक्रम जिसके पज्जत्ता-सव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय- सर्वार्थसिद्धानुत्तरौपपातिककल्पातीतक- जितनी इन्द्रियां हैं उसके उतनी वक्तव्य हैं कप्पातीतग-वेमाणिय देवपंचिंदिय- वैमानिकदेव-पञ्चेन्द्रियश्रोत्रेन्द्रिय यावत् यावत् जो पर्याप्त सर्वार्थसिन्द्र अनुत्तरौप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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