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भगवई
श. ८ : उ. १ : सू. ३४-३६ वि। एवं सव्वे भाणियव्वा तिरिक्ख- अपि। एवं सर्वे भणितव्याः। तिर्यग्योनिकजोणिय-मणुस्स-देवा जाव जे मनुष्य-देवाः यावत् ये पर्याप्तकसर्वार्थपज्जत्तासव्वट्ठसिद्ध-अणुत्तरोववाइय सिद्धानुत्तरौपपातिक . कल्पातीतककप्पातीत . गवेमाणियदेव- वैमानिकदेवपञ्चेन्द्रियप्रयोगपरिणताः ते पंचिंदियपयोगपरिणया ते सो-इंदिय . श्रोत्रेन्द्रिय . चक्षुरिन्द्रिय . घ्राणेन्द्रियचक्खिंदिय · घाणिदिय-जिभिदिय : जिह्वेन्द्रिय-स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोगपरिणताः। फासिंदियपयोग-परिणया॥
पर्याप्त रत्नप्रभा पृथ्वी नैरयिक पंचेन्द्रिय प्रयोगपरिणत की वक्तव्यता। इसी प्रकार शेष सब की वक्तव्यता। तिर्यग् योनिक, मनुष्य और देव यावत् जो पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक कल्पातीतगवैमानिक देव पंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत हैं वे श्रोत्रेन्द्रिय-चक्षुरिन्द्रिय-घ्राणेन्द्रियरसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रियप्रयोगपरिणत
सरीरं इंदियं च पड़च्च पयोग-परिणति- शरीरम इन्द्रियं च प्रतीत्य प्रयोग- शरीर और इन्द्रिय की अपेक्षा प्रयोग परिणति-पदम
परिणति-पद ३५. जे अपज्जत्तासुहमपुढविकाइय- ये अपर्याप्तकसूक्ष्मपृथ्वीकायिकैकेन्द्रि. ३५. जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एगिदियओरालिय - तेया - कम्मा- यौदारिक-तेजस्क-कर्मक शरीरप्रयोग- एकेन्द्रिय औदारिक, तैजस, कर्मशरीरसरीरप्पयोगपरिणया ते फासिं- परिणताः ते स्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणताः। ये प्रयोगपरिणत है वे स्पर्शनेन्द्रियप्रयोगदियपयोगपरिणया। जे पज्जत्ता-सुहुम पर्याप्तक-सूक्ष्म एवं चैव। बादरापर्याप्सकाः । परिणत हैं। इसी प्रकार पर्याप्त सूक्ष्म एवं चेव। बादरअपज्जत्ता एवं चेव। एवं एवं चैव। एवं पर्याप्तकाः अपि।
पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक, तैजस, पज्जत्तगा वि।
कर्मशरीरप्रयोगपरिणत की वक्तव्यता। इसी प्रकार बादर अपर्याप्त पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय औदारिक-तैजस-कर्मशरीर.
प्रयोगपरिणत की वक्तव्यता। एवं एतेण अभिलावेणं जस्स जति एवम् एतेन अभिलापेन यस्य यति इन्द्रियाणि इसी प्रकार बादर पर्याप्त पृथ्वीकायिक इंदियाणि सरीराणि य तस्स ताणि शरीराणि च तस्य तानि भणितव्यानि यावत् एकेन्द्रिय औदारिक-तैजस-कर्मशरीरभाणियव्वाणि जाव जे पज्जत्ता- ये पर्याप्तकसर्वार्थसिद्धानुत्तरौपपातिक प्रयोगपरिणत की वक्तव्यता। इसी प्रकार सव्वट्ठसिद्ध . अणुत्तरोववाइयकप्पा- कल्पातीतकवैमानिकदेवपञ्चेन्द्रिय-वैक्रिय- इस अभिलाप के अनुसार जिसके जितनी तीतगवेमाणिय देवपंचि दियवेउब्विय- तेजस्क-कर्मकशरीरप्रयोगपरिणताः ते इन्द्रियां और शरीर हैं उसके वे सब तेयाकम्मासरीरप्पयोगपरिणया ते श्रोत्रेन्द्रिय . चक्षुरिन्द्रिय यावत् वक्तव्य हैं यावत् जो पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध सोइंदियचक्खिंदिय जाव स्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणताः।
अनुत्तरौपपातिक कल्पातीतगवैमानिक देव फासिंदियप्पयोगपरिणया।
पंचेन्द्रियवैक्रिय, तैजस, कर्मशरीरप्रयोग परिणत हैं वे श्रोत्रेन्द्रिय-चक्षुरिन्द्रिय यावत् स्पर्शनेन्द्रियप्रयोगपरिणत हैं
वण्णादिं पडुच्च पयोगपरिणति-पदं
वर्णादिं प्रतीत्य प्रयोगपरिणति-पदम्
वर्ण आदि की अपेक्षा प्रयोग परिणति
पद
३६. जे अपज्जत्तासुहमपुढविक्का- ये अपर्याप्तकसूक्ष्मपृथ्वीकायिकैकेन्द्रिय- ३६. जो अपर्याप्त सूक्ष्म पीकायिक इयएगिदियपयोगपरिणया ते वण्णओ प्रयोगपरिणताः ते वर्णतः कालवर्ण- एकेन्द्रियप्रयोगपरिणत हैं वे वर्ण से काल कालवण्णपरिणया वि, नील-लोहिय- परिणताः अपि, नील-लोहित-हारिद्र- वर्ण परिणत भी है, नील, लाल, पीत और हालिद्द-सुक्कि-लवण्णपरिणया वि; शुक्लवर्णपरि-णताः अपि, गन्धतः सुरभि- शुक्ल वर्ण परिणत भी हैं, गंध से सुगंध गंधओ सुब्भि-गंधपरिणया वि, दुब्भि- गन्धपरिणताः अपि, दुरभिगन्धपरिणताः परिणत भी हैं, दुर्गन्ध परिणत भी हैं, रस गंधपरिणया वि; रसओ तित्तरस- अपि, रसतः तिक्तरसपरिणताः अपि, से तिक्तरस परिणत भी है, कटुक रस परिणया वि, कडुयरसपरिणया वि, कटुकरसपरिणताः अपि, कषायरस- परिणत भी हैं, कषाय रस परिणत भी हैं, कसाय-रसपरिणया वि, अंबिलरस- परिणताः अपि, आम्लरस-परिणताः अपि, अम्ल रस परिणत भी हैं, मधुर रस परिणया वि, महररसपरिणया वि; मधुररसपरिणताः अपि, स्पर्शतः कक्खट- परिणत भी हैं, स्पर्श से कठोर स्पर्श फासओ कक्खडफासपरिणया वि, स्पर्शपरिणताः अपि, मदुकस्पर्शपरिणताः- परिणत भी हैं, मदृ स्पर्श परिणत भी हैं,
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