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श. १० : उ. ३ : सू. ३१-३६
वीइवएज्जा, पुव्वि वा वीइवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा ॥
३१. अप्पिढिए णं भंते! असुर- कुमारे महिटियस्स असुरकुमार-स्स
मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा ?
नो इट्टे समट्ठे । एवं असुरकुमारेण वि तिणि आलावगा भाणियव्वा जहा ओहिएणं देवेण भणिया । एवं जाव थणियकुमारेणं । वाणमंतर-जोइसियवेमाणिएणं एवं चेव ॥
३२. अप्पिढिए णं भंते! देवे महिड्ढियाए देवीए मज्झमज्झेणं वीइवएज्जा ?
नो इणट्ठे समट्ठे ॥
३३. समिढिए णं भंते! देवे समिढियाए देवीए मज्झमज्झेणं वीइवएज्जा ?
एवं तहेव देवेण य देवीए य दंडओ भाणियव्वो जाव वेमाणियाए ।
३४. अप्पिढिया णं भंते! देवी महिड्डियस्स देवस्स मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा ?
एवं एसो वि ततिओ दंडओ भाणियव्वो
जाव
३५. महिड्ढिया वेमाणिणी अप्पिढियस्स वेमाणिस्स मज्झमज्झेणं वीइवएज्जा ?
हंता वीइवएज्जा |
३६. अप्पिढिया णं भंते! देवी महिड्डियाए देवीए मज्झंमज्झेणं वीइवएज्जा ?
नो इणट्टे समट्ठे । एवं समिढिया देवी समिढियाए देवीए तहेव । महिड्डिया वि देवी अप्पिटियाए देवीए तहेव । एवं एक्केक्के तिण्णि-तिण्णि आलावगा भाणियव्वा जाव
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व्रजेत् पूर्वं वा व्यतिव्रज्य पश्चात् विमोहयेत्।
अल्पर्धिकः भदन्त ! असुरकुमारः महर्धिकस्य असुरकुमारः मध्यंमध्येन व्यति व्रजेत् ?
नो अयमर्थः समर्थः । एवम् असुरकुमारेण अपि त्रयः आलापकाः भणितव्याः, यथा औधिकेन देवेन भणिता । एवं यावत् स्तनितकुमारेण । वानमन्तर- ज्योतिष्कवैमानिकेन एवं चैव ।
अल्पर्धिकः भदन्त ! देवः महर्धिकायाः देव्याः मध्यंमध्येन व्यतिव्रजेत ?
नो अयमर्थः समर्थः ।
समर्धिकः भदन्त ! देवः समर्धिकायाः देव्याः मध्यंमध्येन व्यतिव्रजेत ?
एवं तथैव देवेन च देव्या च दण्डकः भणितव्यः यावत् वैमानिकायाः ।
अल्पर्धिका भदन्त ! देवी महर्धिकस्य वैमानिकस्य मध्यमध्येन व्यतिव्रजेत् ?
एवम् एषोऽपि तृतीयः दण्डकः भणित
व्यः यावत्-
महर्धिका वैमानिकी अल्पर्धिकस्य वैमानिकस्य मध्यंमध्ये व्यतिव्रजेत् ?
हन्त व्यतिव्रजेत् ।
अल्पर्धिका भदन्त ! देवी महर्धिकायाः देव्याः मध्यमध्येन व्यतिव्रजेत् ?
नो अयमर्थः समर्थः । एवं समर्धिका देवी समर्धिकायाः देव्याः तथैव । महर्धिका अपि देवी अल्पर्धिकायाः देव्याः तथैव । एवम् एकैके त्रयः त्रयः आलापकाः भणितव्याः यावत्
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भगवई व्यतिक्रमण करता है अथवा पहले व्यतिक्रमण कर पश्चात् विमोहित करता है ।
३१. भंते! अल्पऋद्धि वाला असुरकुमार महान् ऋद्धि वाले असुरकुमार के बीच से होकर व्यतिक्रमण करता है ? यह अर्थ संगत नहीं है। इस प्रकार असुरकुमार के तीन आलापक वक्तव्य हैं, जैसे सामान्य देव के कहे गए हैं। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार की वक्तव्यता । इसी प्रकार बानमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक की वक्तव्यता ।
३२. भंते! अल्पऋद्धि वाला देव महान् ऋद्धि वाली देवी के बीच से होकर व्यतिक्रमण करता है ?
यह अर्थ संगत नहीं है।
३३. समऋद्धि वाला देव समऋद्धि वाली देवी के बीच से होकर व्यतिक्रमण करता है ?
इसी प्रकार देव और देवी का दंडक (पाठ पद्धति) वक्तव्य है यावत् वैमानिक |
३४. भंते! अल्पऋद्धि वाली देवी महान् ऋद्धि वाले देवों के बीच से होकर व्यतिक्रमण करती है ?
इस प्रकार यहां भी तृतीय दण्डक वक्तव्य है। यावत्
३५. भंते! क्या महान् ऋद्धि वाली वैमानिक देवी अल्पऋद्धि वैमानिक देव के बीच से होकर व्यतिक्रमण करती है ?
हाँ, व्यतिक्रमण करती है।
३६. भंते! क्या अल्पऋद्धि वाली देवी महान ऋद्धिवाली देवी के बीच से होकर व्यतिक्रमण करती है ?
यह अर्थ संगत नहीं है। समऋद्धि वाली देवी की समऋद्धि वाली देवी के संदर्भ में पूर्ववत् वक्तव्यता (१० / २५-२७) महान् ऋद्धि वाली देवी की अल्पऋद्धि वाली देवी के संदर्भ में पूर्ववत वक्तव्यता (१०/२८
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