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________________ भगवई देवाणं विणयविहि-पदं २४. अप्पिड्डीए णं भंते! देवे महिड्डि यस्स देवस्स मज्झंमज्झेणं वीइव एज्जा ? नो इणट्ठे समट्ठे ॥ २५. समिट्टीए णं भंते! देवे समिड्डीयस्स देवस्स मज्झंमज्झेणं वीइव एज्जा ? नो इणट्ठे समट्टे, पमत्तं पुण वीइव - एज्जा ॥ २६. से भंते! किं विमोहित्ता पभू ? अविमोहित्ता पभू ? गोयमा ! विमोहित्ता पभू, नो अविमो हित्ता पभू ॥ २७. से भंते! किं पुव्विं विमोहित्ता पच्छा वीइवएज्जा ? पुव्विं वीइ - वइत्ता पच्छा विमोहेज्जा ? गोयमा ! पुव्विं विमोहित्ता पच्छा वीज्जा, नोपुव्विं वीइवइत्ता पच्छा वीमोहेज्जा ॥ २८. महिड्डीए णं भंते! देवे अप्पिड्डि- यस्स देवरस मज्झमज्झेणं वीइव एज्जा ? हंता वीइवएज्जा ॥ २९. से भंते! किं विमोहित्ता पभू ? अविमोहित्ता पभू ? गोयमा ! विमोहित्ता वि अविमोहित्ता वि पभू॥ पभू, ३०. से भंते! किं पुव्विं विमोहित्ता पच्छा वीइवएज्जा ? पुव्विं वीइ - वइत्ता पच्छा विमोहेज्जा ? गोयमा ! पुब्वि वा विमोहेत्ता पच्छा Jain Education International ३४३ देवानां विनयविधि-पदम् अल्पर्धिकः भदन्त ! देवः महर्धिकस्य देवस्य मध्यंमध्ये व्यतिव्रजेत् ? नो अयमर्थः समर्थः । समर्धिकः भदन्त ! देवः समर्धिकस्य देवस्य मध्यं मध्येन व्यतिव्रजेत ? नो अयमर्थः समर्थः, प्रमत्तं पुनः व्यति व्रजेत् । स भदन्त ! किं विमोह्य प्रभुः अविमो प्रभुः ? गौतम ! विमोह्य प्रभुः, नो अविमोह्य प्रभुः । स भदन्त ! किं पूर्वं विमोह्य पश्चात् व्यतिव्रजेत् ? पूर्वं व्यतिव्रज्य पश्चात् विमोहयेत ? गौतम ! पूर्वं विमोह्य पश्चात् व्यतिव्रजेत्, नो पूर्वं व्यतिव्रजेत् पश्चात् विमोहयेत् । महर्धिकः भदन्त ! देवः अल्पर्धिकस्य देवस्य मध्यंमध्ये व्यतिव्रजेत् ? हन्त व्यतिव्रजेत । स भदन्त ! किं विमोह्य प्रभुः ? अविमोह्य प्रभुः ? गौतम ! विमोह्य अपि प्रभुः, अविमोह्य अपि प्रभुः । स भदन्त ! किं पूर्वं विमोह्य पश्चात् व्यतिव्रजेत् ? पूर्वं व्यतिव्रज्य पश्चात् विमोहयेत् ? गौतम ! पूर्वं वा विमोद्य पश्चात् व्यति For Private & Personal Use Only श. १० : उ. ३ : सू. २४-३० देवों का विनयविधि-पद २४. भंते! क्या अल्पऋद्धि वाला देव महान ऋद्धि वाले देव के बीच से होकर व्यतिक्रमण करता है ? यह अर्थ संगत नहीं है । २५. भंते! समऋद्धि वाला देव समऋद्धि वाले देव के बीच से होकर व्यतिक्रमण करता है ? यह अर्थ संगत नहीं है। वह समऋद्धि वाले प्रमत्त देव का व्यतिक्रमण कर सकता है। २६. भंते! क्या वह समऋद्धि वाले देव को विमोहित कर जाने में समर्थ है ? विमोहित किए बिना जाने में समर्थ है ? गौतम ! वह समऋद्धि वाले देव को विमोहित कर जाने में समर्थ है, विमोहित किए बिना जाने में समर्थ नहीं है। २७. भंते! क्या वह पहले विमोहित कर पश्चात् व्यतिक्रमण करता है? पहले व्यतिक्रमण कर पश्चात विमोहित करता है ? गौतम ! पहले विमोहित कर पश्चात् व्यतिक्रमण करता है. पहले व्यतिक्रमण कर पश्चात् विमोहित नहीं करता । २८. भंते! महान ऋद्धि वाला देव अल्पऋद्धि वाले देव के बीच से होकर व्यतिक्रमण करता है ? हां, व्यतिक्रमण करता है। २९. भंते! क्या वह विमोहित कर व्यतिक्रमण करने में समर्थ है ? विमोहित किए बिना व्यतिक्रमण करने में समर्थ है ? गौतम ! वह विमोहित कर व्यतिक्रमण करने में समर्थ है। विमोहित किए बिना भी व्यतिक्रमण करने में समर्थ है। ३०. भंते! क्या वह पहले विमोहित कर पश्चात् व्यतिक्रमण करता है? पहले व्यतिक्रमण कर पश्चात् विमोहित करता है ? गौतम! पहले विमोहित कर पश्चात www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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