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श. १०: आमुख
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भगवई
महावीर के द्वारा श्यामहस्ती के अभिमत का निराकरण करना एक विशिष्ट प्रसंग है। इस प्रसंग में अनेकांत दृष्टि और अव्यवच्छित्ति नय का प्रयोग हुआ है।
भगवान महावीर के द्वारा त्रायस्त्रिंश देवों की उत्पत्ति का वर्णन बहुत ही रसप्रद और मननीय है। "
प्रस्तुत आगम के अध्ययन से प्रतीत होता है कि परोक्ष के विषय में जिज्ञासा अत्यधिक रहती थी। स्थविरों ने भगवान महावीर से देवताओं की अग्रमहिषियों के विषय में प्रश्न पूछे और महावीर ने उनके उत्तर दिए। देवताओं के सुख, भोग आदि विषय भी चर्चित रहे हैं। प्रस्तुत शतक आकार में छोटा है पर विषय वस्तु के कारण काफी बोधप्रद और रसप्रद है।
१. भ. १०/५२-६२॥
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