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________________ भगवई आउक्काइयं आणमइ वा जाव नीससइ वा। एवं तेउक्काइयं, वाउक्काइयं, एवं वणस्सइकाइयं॥ ३२७ आनिति वा यावत् निःश्वसिति वा। एवं तेजस्कायिकं वायुकायिकम् एवं वनस्पतिकायिकम्। श. ९ : उ. ३४ : सू. २५४-२६० आन यावत् निःश्वास लेते हैं। इसी प्रकार तैजसकायिक, वायुकायिक, इसी प्रकार वनस्पतिकायिक की वक्तव्यता। २५५. आउक्काइए णं भंते! पुढ- अप्कायिकः भदन्त! पृथ्वीकायिकम् २५५. भंते ! अप्कायिक पृथ्वीकायिक का विक्काइयं आणमइ वा जाव नीससइ आनिति वा यावत् निःश्वसिति वा ? आन यावत् निःश्वास लेते हैं? वा? हंता गोयमा! आउक्काइए णं हन्त गौतम! अप्कायिकः पृथ्वीकायिकम् हां, गौतम! अप्कायिक पृथ्वीकायिक का पुढविक्काइयं आणमइ वा जाव नीससइ आनिति वा यावत् निःश्वसिति वा। आन यावत् निःश्वास लेते हैं। वा।। २५६. आउक्काइए णं भंते! आउ- क्काइयं चेव आणमइ वा? एवं चेव। एवं तेउवाउवणस्सइ-काइयं॥ अप्कायिकः भदन्त! अप्कायिकं चैव आनिति वा? एवं चैव। एवं तेजस्-वायु-वनस्पतिकायिकम्। २५६. भंते! अप्कायिक अप्कायिक का आन यावत् निःश्वास लेते हैं ? अप्कायिक अप्कायिक का आन यावत् निःश्वास लेते हैं। इसी प्रकार तैजसकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक की वक्तव्यता। २५७. तेउक्काइए णं भंते! पुढ- तेजस्कायिकः भदन्त! पृथ्वीकायिकम् २५७. भंते! क्या तैजसकायिक पृथ्वीकायिक विक्काइयं आणमइ वा? एवं जाव। आनिति वा? एवं यावत् वनस्पतिकायिकः का आन यावत् निःश्वास लेते हैं? भंते! वणस्सइकाइए णं भंते! वणस्सइ. भदन्त ! वनस्पतिकायिकं चैव आनिति वा? यावत् वनस्पतिकायिक वनस्पतिकायिक काइयं चेव आणमइ वा ? तहेव॥ तथैव। का आन यावत् निःश्वास लेते हैं? पूर्ववत वक्तव्यता। किरिया-पदं क्रिया-पदम् क्रिया पद २५८. पुढविक्काइए णं भंते! पुढवि- पृथ्वीकायिकः भदन्त ! पृथ्वीकायिकं चैव २५८. भंते! पृथ्वीकायिक पृथ्वीकायिक का क्काइयं चेव आणममाणे वा, आनन् वा, अपानन वा. उच्छ्व सन् वा, आन अथवा अपान अथवा उच्छ्वास पाणममाणे वा, ऊससमाणे वा, निःश्वसन् वा कतिक्रियः? अथवा निःश्वास लेता हुआ कितनी क्रिया नीससमाणे वा कतिकिरिए? वाला होता है? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय गौतम! स्यात् त्रिक्रियः स्यात् चतुःक्रियः, गौतम! स्यात् तीन क्रिया वाला, स्यात् चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। स्यात् पञ्चक्रियः। चार क्रिया वाला, स्यात् पांच क्रिया वाला होता है। २५९. पुढविक्काइए णं भंते! आउ. पृथ्वीकायिकः भदन्त! अप्कायिकं आनन् क्काइयं आणममाणे वा? वा? एवं चैव। एवं यावत् वनस्पतिएवं चेव। एवं जाव वणस्सइकाइयं। एवं कायिकम्। एवम् अप्कायिकेन अपि सर्वे आउक्काएण वि सव्वे भाणियव्वा। एवं भणितव्याः। एवं तैजसकायिकेन अपि, एवं तेउक्काइएण वि, एवं वाउक्काइएण वि वायुकायिकेन अपि यावत्जाव २५९. भंते! पृथ्वीकायिक अप्कायिक का आन यावत् निःश्वास लेता हुआ कितनी क्रिया वाला होता है? पूर्ववत् वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक की वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् अप्कायिक के सर्व विकल्प वक्तव्य है। इसी प्रकार तैजसकायिक और वायुकायिक की वक्तव्यता यावत् २६०. वणस्सइकाइए णं भंते! वणस्सइकाइयं चेव आणममाणे वा-पुच्छा? वनस्पतिकायिकः भदन्त! वनस्पति- २६०. भंते ! वनस्पतिकायिक वनस्पतिकायिकं चैव आनन् वा-पृच्छा? कायिक का आन यावत निःश्वास लेता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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