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श. ९ : उ. ३४ : सू. २६०-२६३
गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए ।
२६१. वाउक्काइए णं भंते! रुक्खस्स मूलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कतिकिरिए ?
गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। एवं कंद, एवं जाव
२६२. बीयं पचालेमाणे वा-पुच्छा ?
गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए ||
२६३. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति ।।
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गौतम ! स्यात् त्रिक्रियः स्यात् चतुः क्रियः, स्यात् पञ्चक्रियः ।
वायुकायिकः भदन्त रूक्षस्य मूलं प्रचालयन् वा प्रपातयन् वा कतिक्रियः ?
गौतम! स्यात् त्रिक्रियः स्यात् चतुः क्रियः स्यात पञ्चक्रियः एवं कन्दम् एवं यावत्
बीजं प्रचालयन वा पृच्छा ?
गौतम ! स्यात् त्रिक्रियः स्यात् चतुः क्रियः, स्यात् पञ्चक्रियः ।
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ।
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भगवई
हुआ कितनी क्रिया वाला होता है? पृच्छा।
गौतम! स्यात् तीन क्रिया वाला स्यात् चार क्रिया वाला, स्यात् पांच क्रिया वाला।
२६१. भंते! वायुकायिक वृक्ष के मूल को प्रकंपित करता हुआ गिराता हुआ कितनी क्रिया वाला होता है ? गौतम! स्यात् तीन क्रिया वाला, स्यात् चार क्रिया वाला, स्यात पांच क्रिया वाला होता है। इसी प्रकार कंद यावत्
२६२. वायुकायिक बीज को प्रकंपित करता हुआ कितनी क्रिया वाला होता है? पृच्छा ।
गौतम! स्यात् तीन क्रिया वाला, स्यात् चार क्रिया वाला, स्यात् पांच क्रिया वाला होता है।
२६३. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
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