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भगवई
२४४. जमाली णं भंते! देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भव-क्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहि गच्छहिति ? कहिं उववज्जिहिति ? गोयमा ! चत्तारि पंच तिरिक्ख
- मस्स- देवभवग्गहणाई संसारं अणुपरियट्टित्ता तओ पच्छा सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चिहिति परिणिव्वाहिति सव्वदुक्खाणं अंतं
काहिति ॥
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जमालिः भदन्त ! देवः तस्मात् देवलोकात् आयुः क्षयेण भवक्षयेण स्थितिक्षयेण अनन्तरं चयं च्युत्वा कुत्र गमिष्यति ? कुत्र उपपत्स्यन्ते ?
गौतम! चत्वारि पञ्च तिर्यग्योनिकमनुष्य- देवभवग्रहणानि संसारम् अनुपर्यट्य ततः पश्चात् सेत्स्यति, 'बुज्झिहिति' मोक्ष्यति परिनिर्वास्यति सर्वदुःखानाम् अन्तं करिष्यति ।
भाष्य
१. सूत्र - २४२-२४४
जमालि का जीवन विरोधाभास का निदर्शन था। एक ओर वह तपस्वी था, दूसरी ओर वह मिथ्यात्व के अभिनिवेश से ग्रस्त था । जीवन का प्रत्येक पक्ष अपना अपना कार्य करता है। तपस्वी था
२४५. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति ॥
तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ।
श. ९ : उ. ३३ : सू. २४३-२४५ देवों में किल्विषक देव के रूप में उपपन्न हुआ है।
इसलिए पुण्य का संचय कर वह मृत्यु के पश्चात् स्वर्ग में उपपन्न हुआ और मिथ्यात्व का अभिनिवेश था इसलिए वह अनेक गतियों में पर्यटन करेगा।
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२४४. भंते! जमालि अनगार आयु क्षय, भव-क्षय और स्थिति-क्षय के अनन्तर उस देवलोक से च्यवन कर कहां जाएगा? कहां उपपन्न होगा ? गौतम! चार-पांच तिर्यक्योनिक, मनुष्य, देव भव ग्रहण कर, संसार का अनुपर्यटन कर उसके पश्चात् सिद्ध, प्रशांत, मुक्त, परिनिर्वृत और सब दुःखों का अंत करेगा।
२४५. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
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