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________________ श. ८ : उ. १ : सू. २७-३१ भगवई वेउब्वियतेयाकम्मासरीरप्पयोगपरिणया। सेसं तं चेव॥ एकेन्द्रियप्रयोग-परिणत हैं वे औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कर्मशरीरप्रयोगपरिणत हैं-शेष जो अपर्याप्त बादर वायुकायिक एकेन्द्रिय प्रयोगपरिणत है वे औदारिक, तैजस और कर्मशरीरप्रयोगपरिणत हैं। २८. ते अपज्जत्तरयणप्पभापुढविनेर- इयपंचिंदियपयोगपरिणया ते वेउब्विय- तेया-कम्मासरीरप्पयोग-परिणया। एवं पज्जत्तगा वि। एवं जाव अहेसत्तमा॥ ये अपर्याप्तरत्नप्रभापृथ्वीनैरयिक- २८. जो अपर्याप्त रत्नप्रभा पृथ्वी नैरयिक पञ्चेन्द्रियप्रयोगपरिणताः ते वैक्रिय-तैजस- पंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत है वे वैक्रिय, तैजस कर्मक-शरीरप्रयोगपरिणताः। एवं पर्याप्सकाः । और कर्मशरीरप्रयोगपरिणत हैं। इसी अपि। एवं यावत् अधःसप्तमी। प्रकार पर्याप्त रत्नप्रभा पृथ्वी नैरयिक पंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत की वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमी पृथ्वी नैरयिक पंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत की वक्तव्यता। २९. जे अपज्जत्तासमुच्छिमजलचर जाव ये अपर्यासकसम्मूर्छिमजलचर यावत् परिणया ते आरोलिय-तेया- परिणताः ते औदारिक-तैजस-कर्मकशरीर कम्मासरीर जाव परिणया। एवं यावत् परिणताः। एवं पर्याप्तकाः अपि। पज्जत्तगा वि। गब्भवक्कंतिय- गर्भव्युत्क्रान्तिकापर्याप्ताः एवं चैव। अपज्जत्ता एवं चेव। पज्जत्तगा णं एवं पर्याप्तकाः एवं चैव, नवरं-शरीरकाणि चेव, नवरं-सरीरगाणि चत्तारि जहा चत्वारि यथा बादरवायुकायिकानां पर्याप्त बादरवाउकाइयाणं पज्ज-त्तगाणं। एवं कानाम्। एवं यथा जलचरेषु चत्वारः जहा जलचरेसु चत्तारि आलावग आलापकाः भणिताः। एवं भणिया एवं चउप्पय- चतुष्पदोरपरिसर्प-भुजपरिसर्प-खेचरेषु उरपरिसप्पभुयपरिसप्पखहयरेसु वि अपि चत्वारः आलापकाः भणितव्याः। चत्तारि आलावगा भाणियव्वा॥ २९. जो अपर्याप्त संमूर्छिम जलचर तिर्यंच पंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत हैं वे औदारिक, तैजस और कर्मशरीरप्रयोगपरिणत है। इसी प्रकार पर्याप्त संमूर्छिम जलचर तिर्यंच पंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत की वक्तव्यता। इसी प्रकार पर्याप्त गर्भावक्रान्तिक जलचर तिर्यंच पंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत की वक्तव्यता। केवल इतना विशेष है कि बादर वायुकायिक की भांति शरीर चार होते हैं। जैसे-जलचर के चार आलापक कहे गए हैं वैसे ही चतुष्पद उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प और खेचर के भी चार आलापक वक्तव्य हैं। ३०. जे संमुच्छिममणुस्सपंचिंदिय- ये सम्मूर्छिममनुष्यपञ्चेन्द्रियप्रयोग- ३०. जो संमूर्छिम मनुष्य पंचेन्द्रियप्रयोगपयोगपरिणया ते आरोलिय-तेया- परिणताः ते औदारिक-तैजस-कर्मकशरीर- परिणत हैं वे औदारिक, तैजस और कम्मासरीरप्पयोगपरिणया। एवं प्रयोगपरिणताः। एवं गर्भव्युत्क्रान्तिकाः कर्मशरीरप्रयोगपरिणत हैं। इसी प्रकार गब्भवक्कंतिया वि। अपज्जत्तगा वि, अपि। अपर्याप्तकाः अपि, पर्याप्तकाः अपि गर्भावक्रान्तिक मनुष्य पंचेन्द्रियप्रयोगपज्जत्तगा वि एवं चेव, नवरं- एवं चैव, नवरं-शरीरकाणि पञ्च परिणत की वक्तव्यता। इसी प्रकार सरीरगाणि पंच भाणियव्वाणि।। भणितव्यानि। अपर्याप्तक की वक्तव्यता। पर्याप्तक की वक्तव्यता भी इसी प्रकार है। केवल इतना विशेष है कि पांच शरीर वक्तव्य ३१. जे अपज्जत्ताअसुरकुमारभवण- ये अपर्याप्तकासुरकुमारभवनवासिनः यथा वासि जहा नेरइया तहेव। एवं पज्जत्तगा नैरयिकाः तथैव। एवं पर्याप्तकाः अपि। एवं वि। एवं दुयएणं भेदेणं जाव द्विकेन भेदेन यावत् स्तनितकुमाराः। एवं थणियकुमारा। एवं पिसाया जाव पिशाचाः यावत् गन्धर्वाः। चन्द्राः यावत् ३१. जो अपर्याप्त असुरकुमार भवनवासीप्रयोगपरिणत हैं वे नैरयिक की भांति वक्तव्य हैं। इसी प्रकार पर्याप्त असुरकुमार भवनवासीप्रयोगपरिणत की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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