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भगवई
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२२. संमुच्छिममणुस्सपंचिंदिय-पुच्छा। गोयमा! एगविहा पण्णत्ताअपज्जत्तगा चेव॥
सम्मूर्छिममनुष्यपञ्चेन्द्रिय-पृच्छा। गौतम! एकविधाः प्रज्ञप्लाः, अपर्याप्तकाश्चैव।
श.८ : उ. १ : सृ. २२-२७ २२. संमूर्छिम मनुष्य पंचेन्द्रिय की पृच्छा। गौतम ! संमूर्छिम मनुष्य पंचेन्द्रिय एक प्रकार के ही प्रज्ञाप्त हैं-वे अपर्याप्तक ही होते
२३. गब्भवक्कंतियमणुस्सपंचिंदिय गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यपञ्चेन्द्रिय पृच्छा। पुच्छा। गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- गौतम! द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथापज्जत्तगगब्भवक्कंतिया वि, पर्याप्तकगर्भव्युत्क्रान्तिकाः अपि, अपज्जत्तग-गन्भक्कंतिया वि॥ अपर्याप्तकगर्भव्युत्क्रान्तिकाः अपि।
२३. गर्भावक्रान्तिक मनुष्य पंचेन्द्रिय की पृच्छा । गौतम! गर्भावक्रान्तिक मनुष्य पंचेन्द्रिय दो प्रकार के प्रज्ञप्स हैं, जैसे-पर्याप्तक गर्भावक्रान्तिक और अपर्याप्तक गर्भावक्रान्तिक।
२४. असुरकुमारभवणवासिदेवाणं पुच्छा। असुरकुमारभवनवासिदेवानां पृच्छा। गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- । गौतम! द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथापज्जत्तगअसुरकुमार, अपज्जत्तग- पर्याप्सकासुरकमाराः, अपर्याप्तकासरअसुरकुमार। एवं जाव थणियकुमारा कुमाराः। एवं यावत् स्तनितकुमाराः पज्जत्तगा अपज्जत्तगा य॥
पर्याप्तकाः अपर्याप्तकाश्च।
२४. असुरकुमार भवनवासी देवों की पृच्छा। गौतम! असुरकुमार भवनवासी दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पर्याप्तक असुरकुमार और अपर्याप्तक असुरकुमार। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार के पर्याप्तकअपर्याप्तक की वक्तव्यता।
२५. एवं एतेणं अभिलावेणं दुयएणं भेदेणं एवम् एतेन अभिलापेन द्विकेन भेदेन पिसाया जाव गंधव्वा। चंदा जाव पिशाचाः यावत् गन्धर्वाः। चन्द्राः यावत् ताराविमाणा। सोहम्म-कप्पोवगा जाव- ताराविमानानि सौधर्मकल्पोपगाः यावत् च्चुतो। हेछिमहेट्ठि-मगेवेज्जकप्पातीत अच्युताः। अधस्तनाधस्तनौवेयक जाव उवरिम-उवरिमगेवेज्ज। विजय- कल्पातीताः यावत् उपरितनोपरितनअणुत्तरोववाइय जाव अपराजिय। ग्रैंवेयकाः। विजया-नुत्तरौपपातिकाः यावत्
अपराजिताः।
२५. इस प्रकार इस अभिलाप के अनुसार पिशाच यावत् गंधर्व के दो-दो भेदपर्याप्तक और अपर्याप्तक वक्तव्य है। चन्द्र यावत् ताराविमान, सौधर्म कल्पोपग यावत् अच्युत, सबसे नीचे वाले ग्रैवेयक कल्पातीतग यावत् सबसे ऊपर वाले ग्रैवेयक कल्पातीतग। विजय अनुत्तरौपपातिक यावत् अपराजित।
२६. सव्वट्ठसिद्धकप्पातीत-पुच्छा। सर्वार्थसिद्धकल्पातीत-पृच्छा। गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- गौतम! द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- पज्जत्तासव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय, पर्याप्तक सर्वार्थसिद्धानुत्तरौपपातिकाः, अपज्जत्तासव्वट्ठ जाव परिणया वि॥ अपर्याप्तकसर्वार्थ यावत् परिणताः अपि।
२६. सर्वार्थसिद्ध कल्पातीतग की पृच्छा। गौतम! सर्वार्थसिद्ध कल्पातीतग दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पर्याप्तक सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक, अपर्याप्तक सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिकप्रयोगपरिणता
सरीरं पडुच्च पयोगपरिणति-पदं शरीरं प्रतीत्य प्रयोगपरिणति-पदम् शरीर की अपेक्षा प्रयोग परिणति-पद २७. जे अपज्जत्तासुहमपुढविकाइय- ये अपर्याप्तकसूक्ष्मपृथ्वीकायिकैकेन्द्रिय- २७. जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृवीकायिक
एगिदियपयोगपरिणया ते । ओरा- प्रयोगपरिणताः ते औदारिक-तैजस-कर्मक- एकेन्द्रियप्रयोगपरिणत हैं वे औदारिक, लियतेया . कम्मासरीरप्पयोग- शरीरप्रयोगपरिणताः। ये पर्याप्तकसूक्ष्म तैजस और कर्मशरीरप्रयोगपरिणत हैं। जो परिणया। जे पज्जत्तासुहम जाव. यावत् परिणताःते औदारिक-तैजस- पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रियपरिणया ते ओरालिय-तेया-कम्मा- कर्मकशरीर-प्रयोगपरिणताः। एवं यावत् प्रयोग परिणत हैं वे औदारिक, तैजस सरीरप्पयोगपरिणया। एवं जाव चतुरिन्द्रियाः पर्याप्सकाः, नवरं-ये पर्यासक- और कर्मशरीरप्रयोगपरिणत हैं। इसी चउरिंदिया पज्जत्ता, नवरं-जे बादरवायुकायिकै केन्द्रियप्रयोगपरिणताः ते प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय पर्याप्त प्रयोगपज्जत्ताबादरवाउकाइयएगिंदिय- औदारिक-वैक्रिय तैजस-कर्मकशरीरप्रयोग- परिणत की वक्तव्यता। केवल इतना प्पयोगपरिणया ते ओरालिय- परिणताः। शेषं तच्चैव।
विशेष है-जो पर्याप्त बादर वायुकायिक
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