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________________ श.८ : उ. १ : सू. १८-२१ भगवई पज्जत्तापज्जतं पडुच्च पयोग-परिणति- पर्याप्तापर्याप्त प्रतीत्य प्रयोगपरिणति- पर्याप्त-अपर्याप्त की अपेक्षा प्रयोग पदं पदम परिणति-पद १८. सुहमपढविकाइयएगिदियपयोग- सूक्ष्मपृथ्वीकायिकैकेन्द्रियप्रयोगपरिणताः १८. भन्ने! सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रियपरिणया णं भंते! पोग्गला कतिविहा भदन्त ! पुदगलाः कतिविधाः प्रज्ञमाः? प्रयोगपरिणत पुद्गल कितने प्रकार के पण्णता? प्रज्ञाप्त है? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- गौतम! द्विविधाः प्रज्ञसाः, तद्यथा- गौतम! दो प्रकार के प्रजप्स हैं, जैसेपज्जत्तासुहमपुढविकाइयएगिदिय- पर्याप्तकसूक्ष्मपृथ्वीकायिकैकेन्द्रियप्रयोग- पर्याप्तक सूक्ष्म पृ/कायिक एकेन्द्रियपयोगपरिणया य, अपज्जत्तासुहुम- परिणताश्च, अपर्याप्तकसूक्ष्मपृथ्वीकायिकै- प्रयोगपरिणत और अपर्याप्तक सूक्ष्म पुढविकाइयएगिदियपयोगपरिणया य। केन्द्रियप्रयोग-परिणताश्च। पृथ्वीकायिक एकेन्द्रियप्रयोगपरिणत बादरपुढविकाइयएगिदियपयोगपरिणया एवं चेव, एवं जाव बादरपृथ्वीकायिकैकेन्द्रियप्रयोगपरिणताः। इसी प्रकार बादर पृ कायिक एकेन्द्रियवणस्सइकाइया। एक्केका दुविहा सुहमा एवं चैव, एवं यावत् वनस्पतिकायिकाः।। प्रयोगपरिणत यावत वनस्पतिकायिक य, बादरा य, पज्जत्तगा अपज्जत्तगा य एकके द्विविधाः सूक्ष्माश्च. बादराश्च।। एकेन्द्रियप्रयोगपरिणत की वक्तव्यता। भाणियव्वा॥ पर्याप्तकाः अपर्याप्तकाश्च भणितव्याः। इनमें से प्रत्येक दो प्रकार के है-सूक्ष्म और बादर। सूक्ष्म और बादर के दो-दो प्रकार है-पर्याप्तक और अपर्याप्तक। १९. बेइंदियपयोगपरिणयाणं पुच्छा। गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- पज्जत्तगबेइंदियपयोगपरिणया य, अपज्जत्तग जाव परिणया य। एवं तेइंदिया वि, एवं चउरिंदिया वि|| द्वीन्द्रियप्रयोगपरिणतानां पृच्छा। गौतम द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तक- द्वीन्द्रियप्रयोगपरिणताश्च, अपर्याप्तक यावत् परिणताश्च। एवं त्रीन्द्रियाः अपि. एवं चतुरिन्द्रियाः अपि। १९. द्वान्द्रियप्रयोगपरिणत की पृच्छा। गौतम' द्वान्द्रियप्रयोगपरिणत दो प्रकार के प्रज्ञाप्स हैं, जैसे-पर्याप्तक दीन्द्रियप्रयोगपरिणत और अपर्याप्सक द्वीन्द्रियप्रयोगपरिणत। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय की वक्तव्यता। २०. रयणप्पभपुढविनेरइयपयोगपरिणयाणं पुच्छा। गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- पज्जत्तगरयणप्पभ जाव परिणया य, अपज्जत्तग जाव परिणया य। एवं जाव अहेसत्तमा।। रत्नप्रभपृथिवीनैरयिकप्रयोगपरिणतानां पृच्छा। गौतम! द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथापर्याप्तक-रत्नप्रभ यावत् परिणताश्च, अपर्याप्सक यावत् परिणताश्च । एवं यावत अधःसप्तमी। २०. रत्नप्रभा पी नैरयिकप्रयोगपरिणत की पृच्छा। गौतम! रत्नप्रभा पृथ्वी नैरयिकप्रयोगपरिणत दो प्रकार के प्रज्ञाप्प है, जैसेपर्याप्तक रत्नप्रभा पृथ्वा नैरयिकप्रयोगपरिणत और अपर्याप्तक रत्नप्रभा पृथ्वी नैरयिकप्रयोगपरिणत। इसी प्रकार यावत अधःसप्तमीपर्ध्वानरयिक प्रयोगपरिणत २१. संमुच्छिमजलचरतिरिक्ख-पुच्छा। सम्मूर्छिमजलचरतिर्यक्-पृच्छा। गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- गौतम! द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-- पज्जत्तग अपज्जत्तग। एवं गब्भ- पर्याप्तकाः, अपर्याप्तकाः। एवं गर्भ- वक्कंतिया वि। संमुच्छिमचउप्पय- व्युत्क्रान्तिकाः अपि| सम्मूर्छिमचतुष्पदथलचरा एवं चेव। एवं गब्भवक्कंतिया स्थलचर: एवं चैव। एवं गर्भव्यत्क्रान्तिकाः वि। एवं जाव संमुच्छिमखहयर- अपि। एवं यावत् सम्मूर्छिमखेचरगब्भवक्कंतिया य। एक्केक्के गर्भव्युत्क्रान्तिकाश्च। एकैके पर्याप्तकाः पज्जत्तगा अपज्जत्तगा य भाणियव्वा। अपर्याप्तकाश्च भणितव्याः। २१. सम्मृर्छिमजलचर तिर्यंच की पृच्छा। गौतम संमृच्छिम जलचर तिर्यंच दो प्रकार के प्राप्त है, जैसे पर्याप्तक और अपर्याप्सक। इसी प्रकार गर्भावक्रान्तिक जलचर तिर्यंच की वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत संमूर्छिम चर और गर्भावक्रान्तिक खेचर की वक्तव्यता। प्रत्येक के पर्याप्तक और अपर्याप्तक भेद वक्तव्य हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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