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श. ९ : उ. ३३ : सू. २०९, २१०
१. सूत्र - २०८ शब्द-विमर्श
किव्विसिया - भाण्ड आदि ।' ज्ञाता की वृत्ति में इसका अर्थ पाप का फल भोगने वाले गरीब, अंधा. पंगु आदि किया है। कारोडिया - कापालिक, तांत्रिक साधना करने वाला। कारवाहिया - सेवा में व्यापृत। इसका वैकल्पिक अर्थ है करपीड़ित । *
संखिया-शंख बजाने वाला, चंदन गर्भित शंख को हाथ में लेकर चलने वाला।"
चक्किया-चक्र-अस्त्र को हाथ में रखने वाले । नगलिया - गले में सुवर्णमय हल की प्रतिकृति धारण करने
२०९. तए णं से जमाली खत्तिय कुमारे नयणमालासहस्सेहिं पेच्छि-ज्जमाणेपेच्छिज्जमाणे हियय - मालासहस्सेहिं अभिणं दिज्जमाणे- अभिणं दिज्जमाणे मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणेविच्छिप्पमाणे वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे- अभिथुव्वमाणे कंतिसोहग्गगुणेहिं पत्थिज्जमाणे- पत्थिज्जमाणे बहूणं नरनारिसहस्साणं दाहिणहत्थेणं अंजलिमाला - सहस्साई पडिच्छमाणे- पडिच्छ-माणे मंजुमंजुणा घोसेणं आपडिपुच्छमाणे- आपडिपुच्छमाणे भवण-पंतिसहस्साई समइच्छमाणे समइच्छमाणे खत्तियकुंडग्गामे नयरे मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव माहणकुंड - ग्गामे नयरे जेणेव बहुसालए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता छत्तादीए तित्थरातिसए पासइ, पासित्ता पुरिससहस्सवाहिणि सीयं ठवेइ, पुरिससहस्सवाहिणीओ सीयाओ पच्चोरुहइ ॥
२१०. तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं
१. भ. वृ. ९ / २०८ - कित्विषिका भाण्डादयः इत्यर्थः ।
२. जाता वृ. प. ६४- किल्विषिकाः पातकफलवंतो निःस्वांधपंग्वादयः
३. वही. २/ २०८ - करोडिया कापालिकाः ।
४. वही. वृ. ९ २०८ - कार - राजदेयं द्रव्यं वहन्तीत्येवंशीलाः कारवाहिनस्त एव कारवाहिकाः, करबाधिता वा ।
वही, वृ.९ २०८ - संखिया-चंदनगर्भशंखहस्ताः शंखवादका था।
६. वही. वृ. ९ २०८ - चाक्रिका:- चक्रप्रहरणाः कुंभकारादयो वा ।
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भाष्य
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वाला किसान अथवा भाट ।
मांगल्यकारिणः
ततः सः जमालिः क्षत्रियकुमारः नयनमालासहस्रैः प्रेक्ष्यमाणः प्रेक्ष्यमाणः हृदयमालासहस्रैः अभिनन्द्यमानः अभिनन्द्यमानः मनोरथमालासहस्रैः विस्पृश्यमान:विस्पृश्यमानः वचनमालासहस्रैः अभिष्ट्रयमानः - अभिष्ट्रयमानः कान्तिसौभाग्यगुणैः प्रार्थ्यमानः - प्रार्थ्यमानः बहूनां नरनारीसहस्राणां दक्षिणहस्तेन अञ्जलिमालासहस्राणि प्रतीच्छन्-प्रतीच्छन् मञ्जुमञ्जुना घोषेण आप्रतिपृच्छन्- आप्रतिपृच्छन् भवनपंक्तिसहस्राणि समतिक्रामन्समतिक्रामन् क्षत्रियकुण्डग्रामे नगरे मध्यमध्येन निर्गच्छति, निर्गत्य यत्रैव माहनकुण्डग्रामः नगरं यत्रैव बहुशालकं चैत्यं तत्रैव उपागच्छति, उपागम्य छत्रादीन् तीर्थंकरातिशयान् पश्यति, दृष्ट्वा पुरुषसहस्रवाहिनीं शिबिकां स्थापयति, पुरुषसहस्रवाहिन्याः शिबिकायाः प्रत्यारोहति ।
मुंहमंगलिया - चाटुकार | ' वद्धमाण-संस्कृत शब्दकोश में वर्द्धमान और वर्द्धमानक-ये दो
शब्द हैं।
वर्द्धमान-नृत्य में विशेष प्रकार का दृष्टिकोण रखने वाला। वर्द्धमानक-नर्तक की एक श्रेणी, जिसके सदस्य शिर अथवा हाथ में लैंप लेकर नृत्य करते हैं।" अभयदेव सूरि ने वर्द्धमान का अर्थ स्कंधारोपित पुरुष किया है। "
माण घोषणा करने वाला। अभयदेव सूरि ने इसका अर्थ मागध किया है। " खंडियगण - छात्रगण ।
ततः तं जमालिं क्षत्रियकुमारम् अम्बापितरौ
भगवई
२०९. क्षत्रियकुमार जमालि हजारों नयन - मालाओं से देखा जाता हुआ, देखा जाता हुआ, हजारों हृदय-मालाओं से अभिनंदित होता हुआ, अभिनंदित होता हुआ, हजारों मनोरथ-मालाओं से स्पृष्ट होता हुआ, स्पृष्ट होता हुआ, हजारों वचन-मालाओं से अभिस्तवन लेता हुआ, अभिस्तवन लेता हुआ, बहुत हजारों नर नारियों की हजारों अंजलि मालाओं को दाएं हाथ से स्वीकार करता हुआ स्वीकार करता हुआ, मंजु-मंजु घोष से नमस्कार करने वाले जनों की स्थिति को पूछते हुए, पूछते हुए, हजारों गृहपंक्तियों को अतिक्रांत करता हुआ, अतिक्रांत करता हुआ, क्षत्रियकुंडग्राम नगर के बीचोबीच निर्गमन कर रहा था । निर्गमन कर जहां ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर है, जहां बहुशालक चैत्य है, वहां आया। वहां आकर छत्र आदि तीर्थंकर के अतिशयों को देखा। देखकर हजारों पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिविका को ठहराया। हजार पुरुष द्वारा वहन की जाने वाली शिविका से उतरा।
२१० माता-पिता क्षत्रियकुमार जमालि को
७. वही, ९ / २०८ - नंगलिया - गलावलंबित सुवर्णादिमयनांगलप्रतिकृ धारिणो भट्टविशेषाः कर्षका वा।
८. वही, ९ / २०८ - मुहमंगलिया - मुखे मंगलं येषामस्ति ते मुखमंगलिकाः चाटुकारिणः।
९. आप्टे पृ. १३९६, ९७
१०. (क) भ. वृ. ९/२०८ - वद्धमाणाः- स्कंधारोपिनपुरुषाः ।
(ख) औप. वृ. १३८ ।
११. भ. वृ. ९/२०८-पूषमाणवाः मागधाः ।
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