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________________ भगवई वद्धमाणा २०८. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स खत्तियकुंडग्गामं नयरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छ माणस्स सिंघा डग तिय- चउक्क चच्चरचउम्मुह - महापह पहेसु बहवे अत्थत्थिया कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया किव्विसिया कारो-डिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया मुहमंगलिया पूसमाणया खंडियगणा ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं मणाभि - रामाहिं हिययगमणिज्जाहिं वग्गूहिं जयविजयमंगलसएहिं अणवरयं अभिनंदता य अभित्थुणंता य एवं वयासी - जय जय नंदा! धम्मेणं, जयजय नंदा! तवेणं, जय-जय नंदा! भदं ते अभग्गेहिं नाण- दंसण-चरित्तेहिमुत्तमेहिं, अजियाइं जिणाहि इंदियाई, जियं पालेहि समणधम्मं, जियविग्घो वि य वसाहि तं देव ! सिद्धिमज्झे, निहणाहि य रागदोसमल्ले तवेणं धितिधणियबद्धकच्छे, माहिय अट्ठ कम्मसत्तू झाणेणं उत्तमेणं सुक्केणं, अप्पमत्तो हराहि आराहणपडागं च धीर ! तेलोक्क- रंगमज्झे, पावय वितिमिरमणुत्तरं केवलं च नाणं, गच्छ य मोक्खं परं पदं जिणवरोवदिद्वेणं सिद्धि-मग्गेणं अकुडिलेणं हंता परीसहचमूं अभिभविय गामकंटकोवसग्गाणं, धम्मे ते अविग्धमत्थु त्ति कट्टु अभिनंदंति य अभित्थुणंति य ॥ Jain Education International ३०७ ततः तस्य जमालेः क्षत्रियकुमारस्य क्षत्रियकुण्डग्रामं नगरं मध्यमध्येन निर्गच्छतः श्रृंगाटक- त्रिक-चतुष्क- चत्वरचतुर्मुख - महापथ- पथेषु बहवः अर्थार्थिकाः कामार्थिकाः भोगार्थिकाः लाभार्थिकाः किल्विषिकाः कारोटिकाः कारवाहिकाः शाङ्खिकाः चक्रिका: लाङ्गलिकाः मुखमाङ्गलिकाः वर्धमानाः पुष्यमानवाः खण्डितगणाः ताभिः इष्टाभिः कान्ताभिः मनोज्ञाभिः 'मणामाहिं' मनोभिरामाभिः हृदयगमनीयाभिः वग्गूहिं जय-विजयमङ्गलशतैः अनवरतम् अभिनन्दन्तः च अभिष्टुवन्तः च एवमवादिषुः जय जय नंदा! धर्मेण, जय-जय नंदा! तपसा, जयजय नंदा! भद्रं तव अभग्नैः ज्ञान-दर्शनचारित्रैः उत्तमैः, अजितानि जय इन्द्रियाणि, जितं पालय श्रमणधर्मं, जितविघ्नोऽपि च वस त्वं देव! सिद्धिमध्ये, निजहि च रागद्वेषमल्लान् तपसा धृतिधणियबद्धकच्छः मृद्नीहि च अष्टकर्मशत्रून् ध्यानेन उत्तमेन शुक्लेन, अप्रमत्तः हर आराधनपताकां च धीर! त्रैलोक्यरंगमध्ये, प्राप्नुहि वितिमिरम् अनुत्तरं केवलं च ज्ञानम्, गच्छ च मोक्षं परं पदं जिनवरोपदिष्टेन सिद्धिमार्गेण अकुटिलेन हत्वा परीषहचमूम् अभिभूय ग्रामकण्टकोपसर्गान् धर्मे तव अविघ्नः अस्तु इति कृत्वा अभिनन्दन्ति च अभिष्टुवन्ति च । For Private & Personal Use Only श. ९ : उ. ३३ : सू. २०८ २०८. क्षत्रियकुमार जमालि का क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के बीचोबीच निष्क्रमण करते हुए शृंगाटकों, तिराहों, चौराहों, चौहटों, चार द्वार वाले स्थानों, राजमार्गों और मार्गों पर बहुत धनार्थी, कामार्थी, भोगार्थी, लाभार्थी, किल्विषिक (विदूषक) कापालिक, कर पीड़ित अथवा सेवा में व्यापृत, शंख बजाने वाले, चक्रधारी, कृषक, मंगल- पाठक, विशिष्ट प्रकार का नृत्य करने वाले घोषणा करने वाले, छात्रगण, उन इष्ट, कांत, प्रिय, मनोज्ञ, मनोहर, मनोभिराम, हृदय का स्पर्श करने वाली वाणी और जय-विजय सूचक मंगल शब्दों के द्वारा अनवरत अभिनंदन और अभिस्तवन करते हुए इस प्रकार बोले हे नंद - समृद्ध पुरुष! तुम्हारी जय हो, विजय हो धर्म के द्वारा। नंद पुरुष ! तुम्हारी जय हो विजय हो तप के द्वारा | हे नंद पुरुष ! तुम्हारी जय हो विजय हो, भद्र हो अभग्न उत्तम ज्ञान दर्शन चारित्र के द्वारा । इन्द्रियां अजित हैं, उन्हें जीतो । श्रमण धर्म जित है, उसकी पालना करो। हे देव! विघ्नों को जीतकर सिद्धि मध्य में निवास करो। धृति का सुदृढ़ कच्छा बांधकर तप के द्वारा राग-द्वेष रूपी मल्लों को निहत करो। उत्तम शुक्लध्यान के द्वारा अष्टकर्म रूपी शुत्रओं का मर्दन करो। हे धीर! इस त्रिलोकी के रंग मध्य में अप्रमत्त होकर आराधना पताका को हाथ में थामो । तम रहित अनुत्तर केवलज्ञान को प्राप्त करो । जिनवर उपदिष्ट ऋजु सिद्धिमार्ग के द्वारा, परीषह सेना को हत - प्रहत कर, इन्द्रिय समूह के कंटक बने हुए उपसर्गों को अभिभूत कर परम मोक्ष पद को प्राप्त करो। तुम्हारी धर्म की आराधना विघ्न रहित हो । इस प्रकार जन समूह क्षत्रियकुमार जमालि का अभिनंदन और अभिस्तवन कर रहा था। www.jainelibrary.org
SR No.003595
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Bhagvai Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages600
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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